भारत की ओर से अच्छी पहल

विगत दिवस चीन के शहर किंगदाओ में शंघाई सहयोग संगठन में शामिल सदस्य देशों के रक्षा मंत्रियों की हुई बैठक में कोई संयुक्त वक्तव्य इसलिए जारी नहीं किया जा सका, क्योंकि भारत ने इस पर हस्ताक्षर करने से इन्कार कर दिया था। इस सम्मेलन में पाकिस्तान में बलोच विद्रोहियों द्वारा की जाने वाली कार्रवाइयों की आलोचना को तो शामिल किया गया था परन्तु भारत में आतंकवादियों द्वारा पहलगाम में पर्यटकों पर हुए हमले का ज़िक्र नहीं किया गया था। इसलिए यह संयुक्त वक्तव्य जारी नहीं हो सका, परन्तु इस दौरान देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की हुईं दो और अहम भेंटवार्ता का ज़िक्र किया जाना ज़रूरी बनता है।
रूस चाहे पिछले तीन वर्ष से अपने पड़ोसी यूक्रेन के साथ लड़ाई में उलझा हुआ है परन्तु भारत का वह हमेशा सहयोगी और मित्र रहा है। भारत के लिए भी इस लड़ाई के संबंध में संतुलन बना कर रखना बेहद कठिन था परन्तु वह अब तक इसमें सफल हुआ प्रतीत होता है। रक्षा मंत्रियों के इस सम्मेलन से हट कर भारतीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह की रूस के रक्षा मंत्री आंद्रे बेलोसोव के साथ हुई विस्तारपूर्वक बातचीत इसलिए महत्त्वपूर्ण रही है, क्योंकि भारत समय-समय पर बड़ी संख्या में तरह-तरह के हथियार रूस से खरीदता रहा है। इस बातचीत में सुखोई जैटों के साथ-साथ मिसाइल प्रणालियों में भी और सुधार करने संबंधी चर्चा हुई है। भारत ने हमेशा रूसी हथियारों को प्राथमिकता दी है और आगामी समय में भी दोनों देशों में प्रत्येक तरह के मेल-मिलाप को बढ़ाने संबंधी सहमति बनी है। इसके साथ-साथ राजनाथ सिंह ने अलग रूप से चीन के रक्षा मंत्री डोंग जून के साथ भी विस्तारपूर्वक बातचीत की और चीन को द्विपक्षीय सीमा विवाद का स्थायी हल निकालने के लिए कहा। दोनों देशों के संबंध पिछले कई दशकों से बनते-बिगड़ते रहे हैं। लगभग 63 वर्ष पहले 1962 में प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू के होते चीन द्वारा हमला करके सीमांत मामलों को और भी जटिल बना दिया गया था, जो उस समय से ही तनाव का कारण बन चुका है। इस कारण दोनों देशों में बार-बार टकराव की सम्भावनाएं बनती रहती हैं।
चीन आज विश्व की दूसरी बड़ी आर्थिक शक्ति बन गया है और भारत भी आर्थिक शक्ति बनने के मार्ग पर है। पड़ोसी देश होने के कारण यदि दोनों में सीमांत मामलों के प्रति आपसी सहमति बन जाती है तो इसका दोनों देशों को ही बड़ा लाभ मिलेगा। मई 2020 में सीमांत मामले को लेकर दोनों देशों के सैनिकों की हुई आपसी झड़प के बाद तनाव और भी बढ़ गया था। यह सीमांत मामला विशेष रूप से लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश के साथ लगती सीमाओं के साथ जुड़ा हुआ है, जिस के बीज भारत में ब्रिटिश शासन के समय से ही बोए गए थे, परन्तु इसके बाद दोनों देशों ने अच्छी सूझबूझ से बड़ी सीमा तक सीमाओं के तनाव को कम करने के लिए काफी यत्न किए हैं। इसके साथ ही पिछले 6 वर्ष के अंतराल के बाद कैलाश मानसरोवर की यात्रा भी पुन: शुरू हो गई है। चाहे चीन ने भारत-पाकिस्तान युद्ध में पाकिस्तान का समर्थन किया था परन्तु फिर भी राजनाथ सिंह ने अपने चीनी समकक्ष को पैदा हुई इस स्थिति संबंधी भारतीय दृष्टिकोण से अवगत करवाने को महत्त्व दिया है। 
हम राजनाथ सिंह की ओर से सीमांत मामले के स्थायी हल की बात चीन के रक्षा मंत्री के समक्ष रखने को एक अच्छा कदम समझते हैं, क्योंकि यह पेशकश भारत की किसी कमज़ोरी से नहीं निकली, अपितु अपने पड़ोसी देश के साथ अर्थपूर्ण संवाद रचाने से निकली है, जो भारत की परिपक्व विदेश नीति का प्रकटावा है। इस विवाद को सुलझाया जाना इसलिए भी ज़रूरी है कि इससे दोनों देशों के करोड़ों लोगों की नियति जुड़ी हुई है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द

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