ईरान के परमाणु ठिकाने नष्ट होने संबंधी स्थिति अभी स्पष्ट नहीं
आखिरकार दुनिया का थानेदार समझे जाने वाले अमरीका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने अपने मित्र यहूदी देश इज़रायल की शांति के लिए चुनौती बन चुके कट्टरपंथी इस्लामिक राष्ट्र ईरान के तीन प्रमुख परमाणु ठिकानों पर हवाई हमले करके इज़रायल-ईरान युद्ध को एक नया मोड़ दे दिया था। अपनी इस अप्रत्याशित कार्रवाई से उनकी थानेदारी को महज बयानी चुनौती देने वाले रूस, चीन व उत्तर कोरिया आदि देशों को भी एक स्पष्ट संदेश दे दिया कि अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में अपनी हद में रहो अन्यथा अंजाम और भी बुरे हो सकते हैं। इस प्रकार ईरान के परमाणु ठिकानों पर अमरीकी हमले के वैश्विक मायने स्पष्ट हैं जो एक ध्रुवीय विश्व को बहु-ध्रुवीय बनाने के प्रयासों की विफलता को उजागर करते हैं।
ईरान पर हुए अमरीकी हमले से एक बार फिर यह स्पष्ट हो चुका है कि मौजूदा एक ध्रुवीय विश्व में अमरीका के सजग और शातिर नेतृत्व को मौके पर चुनौती देने का दमखम अभी रूस, चीन व उत्तर कोरिया गुट के पास के पास नहीं है, खासकर अपने ऊपर आश्रित राष्ट्रों के लिए भी। ऐसा इसलिए कि जहां अमरीका अपने मित्र नाटो देशों—इंग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान व ऑस्ट्रेलिया आदि को विश्वास में लेकर अपने इज़रायल व यूक्रेन जैसे सहयोगियों के पक्ष निर्णायक फैसला करता रहता है, वहीं रूस, चीन व उत्तर कोरिया जैसे देश ऐन मौके पर सीरिया व ईरान जैसे अपने सहयोगियों पर आई आफत को दूर करने के लिए त्वरित एकजुटता प्रदर्शित करने और अपेक्षित सैन्य पलटवार शुरू करने के मुद्दे पर घबरा जाते हैं। रूस, चीन व उत्तर कोरिया की कथनी व करनी में बहुत अंतर पाया जाता है। वे आपस में कोई सटीक निर्णय नहीं ले पाते हैं। यही वजह है कि कभी अफगानिस्तान, कभी सीरिया और कभी ईरान जैसे मुल्क इनके हाथों से निकल जाते हैं और वहां पर पुन: अमरीका का दबदबा बढ़ जाता है। अपने देखा होगा कि जब इज़रायल-ईरान युद्ध में मिसाइल हमलों में ईरान ने इज़रायल पर बढ़त ले ली और इज़रायल के एयर डिफेंस सिस्टम में भी सुराग लगा दिया तो अचानक अमरीका उसके पक्ष में उतरा और ईरान के फोर्दो, नतांज और इस्फहान स्थित न्यूकलियर साइटों को निशाना बनाया।
इस अमरीकी हमले का एक खास मकसद था जिसे उसके अलावा कोई अन्य नाटो देश इसे कदापि पूरा नहीं कर सकता था। उल्लेखनीय है कि फोर्दो परमाणु ठिकाना इसमें बेहद महत्वपूर्ण है जो तेहरान के दक्षिण में एक पहाड़ के नीचे स्थित है और बेहद गहराई पर बना है। इसे इंग्लिश चैनल टनल से भी गहरा माना जाता है। यही वजह है कि अमरीका ने अपने हमले में जीबीयू-57 मैसिव ऑर्डनेंस पेनिट्रेटर (एमओपी) नामक भारी बम का इस्तेमाल किया जो 13,000 किलोग्राम वजनी होता है और 61 मीटर मिट्टी या 18 मीटर कंक्रीट को भेद सकता है, लेकिन इससे इस केंद्र को कितना नुकसान पहुंचा, कुछ समय बाद पता चलेगा जब सही आंकड़े व फोटो ईरान सरकार द्वारा जारी किए जाएंगे।
अमरीकी हमले के प्रभाव की पूरी जानकारी अभी तक सामने नहीं आई है, लेकिन इतना तो कहा ही जा सकता है कि निश्चित तौर पर ईरान को पिछले कई सालों से अपने न्यूकलियर रिसर्च सेंटरों पर हमले की आशंका थी। इसलिए ईरान ने अपनी गुप्त रणनीति के अनुरूप कोई वैकल्पिक व्यवस्था ज़रूर की होगी। यही वजह है कि खुद ईरानी अधिकारियों ने दावा किया है कि परमाणु ठिकानों को पहले ही खाली कर दिया गया था और ज़रूरी परमाणु रिसर्च उपकरणों को हटा दिया गया था। यदि ऐसा है तो यह अमरीका-इजरायल के लिए किसी दु:स्वप्न जैसा है।
अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का कहना है कि परमाणु ठिकानें पूरी तरह से नष्ट कर दिए गए हैं, लेकिन कई पूर्व अमरीकी राजनयिकों का मानना है कि यह कहना अभी जल्दबाज़ी होगा कि ईरानी न्यूक्लियर रिसर्च सेंटर पूरी तरह से नष्ट हो गए हैं। हो सकता है कि राष्ट्रपति ट्रम्प ने इज़रायल को संतुष्ट करने के लिए या महज दिखावे के लिए न्यूक्लियर रिसर्च सेंटरों पर हमला किया हो, क्योंकि ट्रम्प व्यापारी है, व्यापार उनकी प्राथमिकता है और अमरीका को पूर्ण युद्ध में वह शायद शामिल नहीं करना चाहते। यही वजह है कि ईरान प्रशासन को उन्होंने पहले ही आगाह कर दिया था कि वह उनके परमाणु ठिकाने पर हमला करेंगे लेकिन अमरीकी राष्ट्रपति पर इज़रायल पब्लिक अफेयर्स कमेटी और यहूदी काउंसिल फॉर पब्लिक अफेर्यस का दबाव है, जो रिपब्लिकन और डेमोक्रेट दोनों को फंड करती है।
वैसे तो ईरान को न्यूक्लियर रिसर्च सेंटरों पर हमले की संभावना लम्बे समय से व्यक्त की जा रही थी, इसलिए ज़रूरी न्यूक्लियर रिसर्च उपकरणों को बचाने का वैकल्पिक इंतज़ाम ईरान ने पहले ही कर रखा होगा।
ईरान पर हमले के बाद अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने राष्ट्र को संबोधित किया और ईरान और इज़रायल के युद्ध पर खुलकर बात की। ट्रम्प ने कहा कि ईरान के परमाणु ठिकानों को निशाना बनाना कठिर था, लेकिन अमरीकी सेना ने यह कर दिखाया। अब तेहरान का सबसे महत्वपूर्ण परमाणु ठिकाना फोर्डो तबाह हो चुका है। (अदिति)