भारत-ब्रिटेन मुक्त व्यापार समझौता दोनों देशों के लिए लाभप्रद

1914 के प्रथम महायुद्ध से ठीक पहले के वर्षों में लिखते हुए, प्रसिद्ध ब्रिटिश अर्थशास्त्री, जॉनमेनार्डकीन्स ने इस बात पर गर्व किया था कि लंदन में अपने बिस्तर से उठे बिना ही वे दुनिया भर से बेहतरीन चीज़ें, जिनमें भारतीय चाय भी शामिल है, मंगवा सकते थे। उसके बाद के वर्षों में दुनिया विपरीत दिशा में चली गई और टैरिफ बाधाओं और व्यापार प्रतिबंधों के कारण बेहतरीन सामान मंगवाना लगभग असंभव हो गया। वैश्वीकरण के प्रसार के बावजूद, टैरिफ ने विभिन्न देशों के बीच वस्तुओं की आवाजाही को रोक दिया था और उसने उपभोक्ता संतुष्टि के समग्र स्तर को कम कर दिया था। उम्मीद है कि इस प्रक्रिया का उल्टा होना शुरू हो गया है।
भारत और ब्रिटेन ने 24 जुलाई को एक मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) पर हस्ताक्षर किए। आदर्श रूप से एक मुक्त व्यापार समझौता एक बेहद सरल और एक पंक्ति का समझौता हो सकता है- हम दोनों देशों के बीच वस्तुओं और सेवाओं की आवाजाही पर लगने वाले सभी शुल्कों को समाप्त कर देते हैं। व्यापारिक शब्दावली में भारत को 99 प्रतिशत टैरिफ लाइनों पर शुल्क मुक्त पहुंच प्राप्त होगी, जो उसके लगभग अधिकांश निर्यातों को कवर करती हैं। दूसरी ओर ब्रिटेन को 90 प्रतिशत टैरिफ लाइनों को समाप्त करने या कम करने का लाभ मिलेगा, जो उसके 85 प्रतिशत निर्यातों को कवर करती हैं। इस प्रकार शुरुआत में ब्रिटिश कारें और व्हिस्की भारतीय खरीदारों के लिए सस्ती होंगी, जबकि ब्रिटिश उपभोक्ता समुद्री खाद्य पदार्थों, प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों और यहां तक कि दवाओं सहित विभिन्न भारतीय वस्तुओं पर कम भुगतान करेंगे।
व्यवहार में एक व्यापार समझौता कहीं अधिक जटिल होता है। एक मुक्त व्यापार समझौता वस्तुओं और सेवाओं के विनियमित प्रवेश का प्रावधान करता है, जिसमें अर्थव्यवस्था के प्रत्येक क्षेत्र के लिए बारीक विवरण होते हैं। व्यापार वार्ताकार अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करते हुए अपने उत्पादों और वस्तुओं के लिए अधिकतम प्रवेश की मांग करते हुए अत्यंत लगन से अपना काम करते हैं। दोनों पक्ष एक-दूसरे की व्यापार कूटनीति से अवगत हैं और एक-दूसरे के प्रति सम्मान के साथ ही एक वास्तविक रूप से प्रभावी और निष्पक्ष व्यापार समझौता संपन्न हो सकता है। आशा है कि भारत-ब्रिटिश व्यापार समझौते ने अपना काम बखूबी किया है, जैसा कि विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने समय और लाभ के संदर्भ में कहा था। यह बात बुनियादी है लेकिन अर्थशास्त्रियों ने हमेशा यह माना है कि देशों के बीच व्यापार समग्र लाभ को बढ़ाता है। व्यापार किसी देश के तुलनात्मक लाभ के अंतर्निहित सिद्धांत के अनुसार होता है। यह संभवत: स्वीकार किया जा सकता है कि कोई एक देश अपने हर काम में अच्छा या सर्वश्रेष्ठ नहीं हो सकता।
यह एक में तुलनात्मक रूप से बहुत अच्छा हो सकता है, और दूसरे में कम अच्छा। शास्त्रीय अर्थशास्त्रियों ने अक्सर ब्रिटेन और पुर्तगाल के बीच व्यापार के मॉडल का इस्तेमाल किया था। जहां ब्रिटेन ऊनी कपड़ों में अच्छा था, वहीं पुर्तगाल उत्कृष्ट पोर्ट वाइन का उत्पादन करता था। इसलिए वे निर्मित ऊनी कपड़ों का व्यापार पोर्ट वाइन के साथ करते थे। अन्य जोड़ियों के लिए इसे कई गुना बढ़ाया जा सकता है। कम से कम दोनों देशों भारत और ब्रिटेन के लिए पूर्व साम्राज्य और औपनिवेशिक स्वामी ने अब एक व्यापार समझौता किया है जो अधिकांश वस्तुओं और सेवाओं की आवाजाही को मुक्त करता है। प्रारंभिक अनुमानों के अनुसार लगभग 99 प्रतिशत व्यापारिक मूल्य अब टैरिफ मुक्त प्रवेश या कम से कम 10 प्रतिशत के न्यूनतम टैरिफ पर कर दिया गया है। कई मामलों में दोनों देशों के उपभोक्ताओं के लिए इन्हें वहनीय बनाने के लिए अत्यधिक टैरिफ दरों में भारी कटौती की जाएगी।
प्रथमदृष्टया, ब्रिटेन और भारत के बीच सहमत व्यापार समझौते से एक-दूसरे के लिए कुछ उत्पादों तक तुरंत बेहतर पहुंच उपलब्ध होनी चाहिए। इस प्रकार वर्तमान स्थिति के अनुसार ब्रिटिश कारों- जिनमें जगुआर और लैंड रोवर्स का सबसे अधिक उल्लेख किया जाता है- को भारतीय बाजार में आसानी से प्रवेश मिल जाना चाहिए, जबकि भारतीय चाय और कई अन्य कृषि उत्पादों को ब्रिटिश बाजारों में अधिक लाभ होगा, क्योंकि टैरिफ समायोजन तुरंत शुरू होंगे। दोनों देशों के विकास की गतिशीलता को देखते हुए बाज़ार संरचना और मांग एक-दूसरे से जुड़ी होगी और भविष्य में ये परिवर्तन यह निर्धारित करेंगे कि प्रत्येक देश को कैसे लाभ और हानि होगी।
यह कल्पना करना संभव है कि भारत की तेज़ विकास दर और उसकी बढ़ती समृद्धि को देखते हुए, ब्रिटेन में भारतीय चाय या कृषि उत्पादों की मांग की तुलना में भारत में लग्ज़री कारों की मांग तेज़ी से बढ़ेगी। सच तो यह है कि जैसे-जैसे किसी देश की कुल आय बढ़ती है, आप कारों की कुल मांग से ज्यादा चाय और कृषि उत्पादों का उपभोग नहीं कर सकते। निश्चित रूप से भविष्य में ब्रिटेन को कई वस्तुओं पर कम टैरिफ मिलेंगे, जिनकी मांग तेज़ी से बढ़ रही है। इसका मतलब यह नहीं है कि भारत को नुकसान उठाना पड़ेगा। जैसे-जैसे उसकी आर्थिक ताकत बढ़ेगी, भविष्य में भारत का विनिर्माण आधार और क्षमता काफी बढ़ेगी। उसका विनिर्माण और मूल्यवर्धन बड़ा और अधिक परिष्कृत होता जाएगा, जिससे भविष्य के ब्रिटिश बाज़ार में प्रवेश अपेक्षाकृत आसान हो जाएगा। साथ ही, यह हमेशा सच रहेगा कि ब्रिटेन का बाज़ार काफी छोटा है और भविष्य में यह भारत की तुलना में कहीं ज्यादा छोटा होना चाहिए। भारत के भविष्य का यही आकर्षण है कि अमरीका सहित अधिकांश अन्य देश भारत के साथ व्यापार समझौतों पर नज़र गड़ाए हुए हैं। ये भारत के भविष्य की आर्थिक संभावनाएं हैं। भारत, जो अस्थिर डोनाल्ड ट्रम्प को भी भारत पर बड़े टैरिफ लगाने से रोक रहा है, जिससे भारत के साथ चल रही व्यापार वार्ता में बाधा आ सकती है। उम्मीद है कि भारत आगे बढ़ता रहेगा। (संवाद)

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