आखिर ट्रम्प को भारतीयों से क्या परेशानी है ?

अपने अनिश्वित स्वभाव के अनुरूप अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने वैश्विक व्यापार व्यवस्था के साथ बहुत अधिक खिलवाड़ किया है। राष्ट्रपति ट्रम्प का ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ अभियान प्रवासी विरोधी बनता जा रहा है। ट्रम्प की टेक कम्पनियों को उनकी ताज़ा चेतावनी इसी का प्रमाण है। जिसे देश के प्रधानमंत्री का बेहतर मित्र कहा जा रहा हो, वह राष्ट्रपति भारत के खिलाफ लगातार आग उगल रहा है। हालांकि ट्रम्प की ऐसी हर कोशिश उनके ही देश को नुकसान पहुंचाएगी। डोनाल्ड ट्रम्प ने जब से अमरीकी राष्ट्रपति पद को संभाला है, भारत के खिलाफ ही काम कर रहे हैं। 
एक बार फिर उन्होंने भारत के खिलाफ ज़हर उगला और कहा कि अब वो दिन लद गए जब अमरीकी कम्पनियां भारतीयों को नौकरी दें। इससे पूर्व अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने दुनिया की बड़ी टेक कम्पनियों को एक कड़ा संदेश दिया है, जिसमें भारत से हायरिंग करने को मना किया है। ऐसे कई फैसले हैं,जो उन्होंने भारत को हानि पहुचाने वाले लिए है। 
दूसरे कार्यकाल की शुरुआत ही धमकियों से करने वाले ट्रम्प चाहते हैं कि अमरीकी कंपनियां केवल अमरीकियों को ही नौकरी दें। उनका कहना है कि ‘हमारी कई बड़ी टेक कम्पनियों ने अमरीकी आज़ादी का फायदा उठाते हुए चीन में फैक्ट्रियां लगाईं, भारत में कर्मचारियों को नौकरी दी और आयरलैंड में मुनाफा बचाया...।’ कुछ अरसा पहले ही ट्रम्प ने एप्पल को चेतावनी दी थी कि अगर उसने भारत में निर्माण किया, तो आईफोन पर 25 प्रतिशत टैरिफ  लगा दिया जाएगा। ट्रम्प चाहते हैं कि अमरीका में बिकने वाला हर सामान अमरीका में ही बने और उसे बनाएं भी अमरीकी नागरिक, लेकिन क्या यह संभव है? वैश्वीकरण के इस दौर में जब मुक्त व्यापार की बात हो रही है, तब कोई अर्थव्यवस्था खुद में सिमट कर नहीं रह सकती। सबसे अहम बात है कि अमरीकी कम्पनियां इसलिए भारत या चीन में प्लांट लगाना चाहती हैं, क्योंकि यहां उत्पादन करना सस्ता पड़ता है। इसी तरह, सिलिकॉन वैली या दूसरे अमरीकी उद्योगों में भारतीयों ने अपनी बुद्धिमत्ता से जगह बनाई है। दर्जनों विश्व विख्यात कम्पनियों के मुख्य कर्ताधर्ता भारतीय मूल के लोग है।
सिलिकॉन वैली के करीब एक तिहाई टेक एम्प्लॉई भारतीय मूल के हैं। फॉर्च्यून 500 की लगभग डेढ़ दर्जन कम्पनियों में शीर्ष स्थान पर भारतीय बैठे हैं। ये भारतीय अमरीकी अर्थव्यवस्था के इंजन हैं। 2024 में 72 यूनिकॉर्न स्टार्टअप भारतीय मूल के लोगों के थे और इनकी कुल कीमत 195 अरब डॉलर आंकी गई थी। इन कम्पनियों में अमरीकी भी काम करते हैं। इसी तरह अमरीका में भारतीय लोग 5-6 प्रतिशत आयकर अदा करते हैं। 
अमरीकी की टेक इंडस्ट्री या सिलिकॉन वैली आज अगर वैश्विक स्तर पर राज कर रही है, तो इसमें प्रवासियों का बड़ा योगदान है। दुनियाभर की मेधा, खासकर भारत की, ने मिलकर इस इंडस्ट्री को सींचा है। एलन मस्क की टेस्ला को जब ऑटोपायलट सॉफ्टवेयर में सफलता मिली, तो उन्होंने भारतीय मूल के एक रोबोटिक्स इंजीनियर अशोक एल्लुस्वामी का ही नाम पहले लिया था। ट्रम्प उस वैश्वीकरण को खत्म करने की बात कर रहे हैं, जिससे सबसे ज़्यादा फायदा अमरीका को ही हुआ है। उनके पास इंडस्ट्री की मांग को पूरा करने लायक श्रम शक्ति नहीं है। भारत के बिना उनका ‘मेक अमेरिका ग्रेट अगेन’ पूरा नहीं हो सकता। वैसे भी जब से ट्रम्प ने पद सम्भाला है तब से अमरीका का व्यापार परिदृश्य एक बड़े बदलाव के दौर से गुज़र रहा है, क्योंकि राष्ट्रपति ट्रम्प अपने दूसरे कार्यकाल में  20 से ज्यादा देशों में अपने टैरिफ  अभियान का विस्तार कर रहे हैं। 
50 प्रतिशत तक के प्रतिशोधात्मक शुल्कों के साथ, ऑटोमोबाइल और एल्युमीनियम से लेकर तांबा और ई-कॉमर्स तक, सभी क्षेत्र इस टकराव में फंस गए हैं। इसके लिए कनाडा, ब्राज़ील और भारत जैसे देश छूट हासिल करने के लिए 1 अगस्त की समय सीमा के खिलाफ दौड़ रहे हैं जबकि व्यवसाय और उपभोक्ता इसके बाद के झटकों के लिए तैयार हैं यानि इतना तो तय है कि या तो ट्रम्प किसी सनक का शिकार हो गए हैं या फिर उनको तानाशाही करने में मज़ा आ रहा है, लेकिन हिन्दुस्तान में यह कहावत आम है कि अकेल चना भाड़ नही फोड़ सकता। ट्रम्प को इसका आभास जल्द ही हो जाएगा।

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