संसदीय निगरानी को सशक्त बनाती है समिति प्रणाली
भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था में विधायिकाएं केवल कानून बनाने वाली संस्थाएं नहीं हैं, बल्कि वे कार्यपालिका की निगरानी, वित्तीय अनुशासन और जनहित में प्रशासनिक कार्यों की समीक्षा करने का भी सशक्त माध्यम हैं। इन उद्देश्यों की पूर्ति के लिए विधानमंडलीय समितियां एक अनिवार्य ढांचा प्रदान करती हैं। इस समिति प्रणाली की समीक्षाए सुदृढ़ीकरण और पुनर्परिभाषा के लिए गठित विशेष समिति की एक बैठक पिछले दिनों मध्य प्रदेश विधानसभा भवन भोपाल में आयोजित की गई। बैठक का उद्देश्य समिति प्रणाली की वर्तमान कार्यप्रणाली का मूल्यांकन, उसकी दक्षता को बढ़ाने के उपाय और इसे अधिक उत्तरदायी एवं परिणामोन्मुख बनाने के लिए रणनीति तय करना था।
भोपाल बैठक का बीजारोपण दरअसल नवम्बर 2021 में शिमला में आयोजित 82वें अखिल भारतीय पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन में हुआ था। यह सम्मेलन ऐतिहासिक रूप से भी महत्वपूर्ण था, क्योंकि यह 1921 में शिमला में ही आयोजित पहले सम्मेलन के 100 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में आयोजित किया गया था। सम्मेलन के दौरान यह महसूस किया गया कि समिति प्रणाली लोकतंत्र की आत्मा है, लेकिन उसे समसामयिक प्रशासनिक और तकनीकी संदर्भों में पुन:परिभाषित करने की आवश्यकता है। इसी भावना के तहत शिमला सम्मेलन में यह प्रस्ताव पारित किया गया कि एक विशेष समिति गठित की जाए, जिसमें विभिन्न विधानसभाओं के पीठासीन अधिकारी शामिल हों। इस समिति का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि समितियां महज औपचारिक इकाइयां न रह कर कार्यपालिका की जवाबदेही तय करने का प्रभावी माध्यम बनें। शिमला सम्मेलन के इसी प्रस्ताव का मूर्त रूप है भोपाल में आयोजित जुलाई 2025 की बैठक।
भोपाल में आयोजित बैठक की अध्यक्षता मध्य प्रदेश विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर ने की और इसमें उत्तर प्रदेश विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना, राजस्थान विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी, हिमाचल विधानसभा अध्यक्ष कुलदीप सिंह पठानिया, सिक्किम विधानसभा अध्यक्ष मिंगमा नोरबू शेरपा, ओडिशा विधानसभा अध्यक्ष श्रीमति सुरमा पाढ़ी एवं पश्चिम बंगाल विधानसभा अध्यक्ष बिमान बनर्जी सहित सभी संबंधित राज्यों की विधानसभा के प्रमुख सचिव एवं अन्य अधिकारी भी शामिल हुए।
देश की लोकतांत्रिक प्रणाली में संसद एवं विधानसभाओं की महत्वपूर्ण भूमिका है। संसद या विधानसभा के सत्रों में जितनी सूक्ष्म निगरानी की आवश्यकता होती है वह सत्र में संभव नहीं हो पाता है। सत्रों की सीमित अवधि और बहसों की समयबद्धता के चलते ऐसा होना स्वाभाविक है, इसलिए विधानसभा समितियों के गठन की प्रणाली महत्वपूर्ण है। विधानमंडलीय समितियां न केवल विधेयकों की बारीकी से अध्ययन करती हैं, बल्कि सरकार द्वारा किए गए वायदों, प्रशासनिक कार्यों और योजनाओं पर भी नज़र रखती हैं। लोकसभा में भी विभिन्न समितियां गठित होती हैं, जिनमें बजट पर भी विचार-विमर्श होता है। लोकसभा में समितियां बजट का अध्ययन करके उस पर सुझाव भी देती हैं।
समितियां सदन न होने पर विधायी कार्यों के लिए विधायकात्मक शाखा की तरह काम करती हैं। समितियां विधायी, वित्तीय और प्रशासकीय क्षेत्र में विधायिका के कार्यपालिका पर नियंत्रण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। वर्तमान में कई विधानसभाओं में समितियों का गठन चुनाव के माध्यम से होता है जबकि कुछ समितियों के सदस्य अध्यक्ष द्वारा नामित किए जाते हैं।
आज जब भारत डिजिटल लोकतंत्र की ओर बढ़ रहा है, तब समिति प्रणाली को भी इस परिवर्तनशील परिप्रेक्ष्य में ढालना आवश्यक है। ई-विधान, वर्चुअल बैठकें और डिजिटल रिपोर्टिंग जैसे माध्यमों से समितियों की कार्यकुशलता को बढ़ाया जा सकता है। इसी बात को ध्यान में रखते हुए शिमला सम्मेलन में ‘एक राष्ट्र-एक विधायी मंच’ की संकल्पना रखी गई थी, जिसमें सभी विधानसभाओं को डिजिटल रूप से जोड़ने का प्रस्ताव था। इस दिशा में भी काम काफी आगे बढ़ चुका है।
भोपाल बैठक में यह विशेष रूप से विचार किया गया कि समितियों के कार्यों को ई-गवर्नेंस फ्रेमवर्क के अंतर्गत लाया जाए ताकि पारदर्शिता, समयबद्धता और सुलभता को बढ़ावा मिले। साथ ही यह सुझाव भी आया कि समितियों की रिपोर्टों को सार्वजनिक डोमेन में रखा जाए ताकि नागरिक समाज और मीडिया भी शासन की निगरानी प्रक्रिया में सहभागी बन सकें।
बैठक में यह भी विचार किया गया कि समितियों को अधिक स्वायत्तता दी जाए उनके पास विशेष अनुसंधान व विश्लेषण संसाधन उपलब्ध कराए जाएं और उनकी सिफारिशों को केवल सुझाव भर न समझा जाए बल्कि नीति-निर्माण में उनका व्यावहारिक उपयोग हो। यह विचार भी आया कि प्रत्येक राज्य की विधानसभा में मौजूद श्रेष्ठ समिति प्रथाओं को साझा कर एक राष्ट्रीय आचार संहिता या मार्गदर्शिका विकसित की जा सकती है। सभी राज्यों के विधानमंडलों की समितियों की जानकारी प्राप्त होने से इस दिशा में व्यापकता के साथ भावी रणनीति बनाई जा सकेगी। भोपाल में आयोजित यह बैठक समिति प्रणाली के गहन पुनर्मूल्यांकन की दिशा में एक ठोस कदम है और यह उम्मीद की जा सकती है कि भविष्य में विधानमंडलीय समितियां सुनिश्चित शासन और सक्रिय जन-प्रतिनिधित्व का प्रभावशाली माध्यम बनेंगी। (संवाद)