ईडी के राजनीतिक इस्तेमाल का सुप्रीम कोर्ट ने भी लिया संज्ञान

प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) को लेकर केंद्र सरकार पर अब तक जो आरोप विपक्षी दल लगाते रहे हैं, उनकी पुष्टि अब एक तरह से सुप्रीम कोर्ट ने भी कर दी है। प्रधान न्यायाधीश बी.आर. गवई ने गत सोमवार ईडी को जो फटकार लगाई है, वह असल में केंद्र सरकार के लिए ही है। न्यायाधीश गवई ने जब कहा कि राजनीतिक लड़ाई अदालत में नहीं बल्कि जनता के बीच लड़ी जानी चाहिए, तो उनका इशारा ईडी की ओर नहीं, बल्कि केंद्र सरकार और केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा की ओर था। मामला कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया की पत्नी बी.एम. पार्वती से जुड़ा हुआ था। मैसुरू शहरी विकास प्राधिकरण से जुड़े मामले में पार्वती को हाईकोर्ट से मिली राहत को ईडी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी। 
ईडी की याचिका को खारिज करते हुए प्रधान न्यायाधीश गवई और न्यायाधीश के. विनोद चंद्रन के पीठ ने साफ  कर दिया कि सिद्धारमैया और उनकी पत्नी के खिलाफ  मामला राजनीति से जुड़ा हुआ है। प्रधान न्यायाधीश ने यह भी कहा कि राजनीतिक लड़ाइयों के लिए ईडी का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए। इसके बाद एडिशनल सॉलिसीटर जनरल ने याचिका वापस ले ली। प्रधान न्यायाधीश की नाराज़गी यहीं पर नहीं थमी। उन्होंने वकीलों को समन भेजे जाने के मामले में भी कहा कि ईडी ने सारी सीमाएं पार कर दी हैं। वरिष्ठ वकील अरविंद दातार और प्रताप वेणुगोपाल को समन भेजे जाने के लिए ईडी को फटकार लगाई और कहा कि वह किसी को सलाह देने या कोर्ट में उसकी पैरवी करने के लिए वकीलों को समन नहीं भेज सकती है। 
भाजपा का सामना फिर बांग्ला अस्मिता से
पश्चिम बंगाल में भाजपा को एक बार फिर ममता बनर्जी के बांग्ला अस्मिता वाले दांव का सामना करना होगा। पिछले विधानसभा चुनाव में भी ममता बनर्जी ने इस दांव के सहारे भाजपा को चित किया था। उन्होंने ‘खेला होबे’ का नारा दिया और साथ ही जय श्रीराम के बरक्स जय मां काली का नारा भी लगवाया था। वह इस बार फिर ‘मां माटी मानुष’ के नारे पर काम कर रही हैं। उन्होंने 21 जुलाई को शहीद दिवस के कार्यक्रम में देवियों और बांग्ला अस्मिता का मुद्दा उठा कर अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव का एजेंडा तय कर दिया। ममता ने आरोप लगाया कि बांग्ला बोलने वालों को भाजपा शासित राज्यों में प्रताड़ित किया जा रहा है। ममता बनर्जी ने भाजपा पर भाषायी आतंकवाद फैलाने का आरोप लगाया। सबको पता है कि भाषा का मुद्दा दक्षिण भारत की तरह पश्चिम बंगाल में भी बहुत संवेदनशील है। भाजपा की मुश्किल यह है कि ममता की इस राजनीति का जवाब देने के लिए उसके पास बांग्ला अस्मिता वाला कोई मज़बूत नेता नहीं है। ममता ने दूसरा दांव दुर्गा आंगन का चला है। उन्होंने कहा है कि जैसे दीघा में जगन्नाथ धाम का निर्माण कराया है, वैसे ही दुर्गा आंगन का निर्माण भी होगा, जहां लोग हर समय मां दुर्गा का दर्शन-पूजन कर सकेंगे। गौरतलब है कि अभी साल में एक बार दुर्गा पूजा के लिए लोग पंडालों में जाते हैं। ममता जानती हैं कि भाजपा मंदिर और जय श्रीराम का नारा लगाएगी। इसलिए उन्होंने काली और दुर्गा के साथ बांग्ला अस्मिता को जोड़ दिया है।
जस्टिस वर्मा पर बदला कांग्रेस का रुख 
इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज जस्टिस यशवंत वर्मा का मामला बहुत दिलचस्प हो गया है। कांग्रेस ने इस मामले में अपना रुख बदल लिया है। पहले कांग्रेस के नेता कह रहे थे कि सुप्रीम कोर्ट की जांच के आधार पर महाभियोग की कार्रवाई शुरू नहीं हो सकती। इसी तरह कांग्रेस के नेता यह भी कह रहे थे कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के दूसरे जज जस्टिस शेखर यादव के खिलाफ महाभियोग लाने के प्रस्ताव पर अगर भाजपा साथ नहीं देती है तो जस्टिस वर्मा के मामले में विपक्ष साथ नहीं देगा। गौरतलब है कि जस्टिस शेखर यादव ने विश्व हिंदू परिषद् के कार्यक्रम में साम्प्रदायिक बयान दिया था, लेकिन उनके खिलाफ लाए गए प्रस्ताव को राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने रोक दिया था। अब कांग्रेस ने इन दोनों मुद्दों को छोड़ दिया है और महाभियोग प्रस्ताव पर दस्तखत कर दिए हैं। दोनों सदनों में विपक्ष के 215 सांसदों के समर्थन से महाभियोग प्रस्ताव रखा गया है। अब सवाल है कि कांग्रेस ने क्यों अपना रुख बदल लिया? दरअसल कांग्रेस को लग रहा है कि जस्टिस यशवंत वर्मा को लेकर जनता की राय बन गई है और लोग उनके घर से मिले पांच-पांच सौ रुपये के नोटों के बंडल को सही मान रहे हैं। ऐसे में अगर कांग्रेस तकनीकी आधार पर जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग का विरोध करती है तो यह धारणा बनेगी कि कांग्रेस भ्रष्टाचार का समर्थन कर रही है। इसलिए कांग्रेस ने महाभियोग का समर्थन करने का फैसला किया।
पूर्व प्रधान न्यायाधीशों का नया ठिकाना
भारत सरकार के वरिष्ठ अधिकारी अब सेवानिवृत्त नहीं होते हैं, क्योंकि सेवानिवृत्ति से पहले ही उनके लिए सेवा विस्तार की योजना तैयार रहती है। ग्रेट इंडियन एक्सटेंशन प्लान के तहत वे सेवानिवृत्त ही नहीं होते हैं और अगर सेवानिवृत्त हो जाते हैं तो कहीं न कहीं उनके पुनर्वास का अच्छा इंतज़ाम हो जाता है। हाल ही में केंद्रीय गृह सचिव को एक साल का सेवा विस्तार मिला है। पहले सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीश भी रिटायर होते थे तो उनको कहीं अच्छी जगह मिलती थी, लेकिन अब तो राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष का पद भी उनसे दूर हो गया है। पहले उस पद पर सेवानिवृत्त प्रधान न्यायाधीश ही नियुक्त होते थे, लेकिन न्यायाधीश अरुण मिश्र से यह परम्परा टूटी और अब राजनीतिक नियुक्ति होने लगी है। इसलिए पूर्व प्रधान न्यायाधीशों का नया ठिकाना बनी हैं नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी। अभी हाल में सेवानिवृत्त हुए दो प्रधान न्यायाधीश दो नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी में प्राध्यापक बने हैं। सुप्रीम कोर्ट के प्रधान न्यायाधीय पद से सेवानिवृत्त हुए न्यायाधीश संजीव खन्ना अब नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी हिमाचल प्रदेश में कानून के छात्रों को पढ़ाएंगे। उनसे पहले प्रधान न्यायाधीश के पद से सेवानिवृत्त हुए जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूढ़ को नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी दिल्ली में प्राध्यापक का पद मिला था। न्यायाधीश संजीव खन्ना और न्यायाधीश चंद्रचूड़ दोनों विशेष प्राध्यापक नियुक्त हुए हैं।
देश भर में होंगे संघ के शताब्दी समारोह 
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना के 100 साल पूरे होने जा रहे हैं और इस मौके पर उसने कई बड़े समारोहों की तैयारी शुरू कर दी है। पिछले दिनों संघ के प्रांत प्रचारकों की एक अहम बैठक दिल्ली में हुई थी, जिसमें शताब्दी वर्ष के कार्यक्रमों को लेकर चर्चा हुई। बताया जा रहा है कि संघ के मुख्यालय नागपुर से लेकर देश के हर हिस्से में लगने वाली शाखा तक शताब्दी समारोह मनाया जाएगा। 
दिल्ली की बैठक में एक अहम बात यह तय हुई कि संघ खुल कर महात्मा गांधी को अपनाएगा। गौरतलब है कि संघ की स्थापना 1925 में विजयादशमी के दिन हुई थी। अत: हर साल अंग्रेज़ी कैलेंडर की बजाय हिंदी कैलेंडर के मुताबिक विजयादशमी के दिन संघ का स्थापना दिवस मनाया जाता है, जो इस साल दो अक्तूबर को यानी महात्मा गांधी की जयंती के दिन आ रहा है। उस दिन एक तरफ संघ की पारम्परिक शस्त्र पूजा होगी तो दूसरी ओर महात्मा गांधी की रामधुन भी बजाई जाएगी। यह तय किया गया है कि संघ मुख्यालय में और बड़े शहरों में समारोह होंगे और साथ ही जहां भी संघ की शाखा लगती है वहां निश्चित रूप से शाखा लगा कर कार्यक्रम होंगे। सभी पुराने स्वयंसेवकों को शाखा में पहुंचने को कहा जा रहा है। इसी तरह जिस शाखा में सौ या उससे ज्यादा सक्रिय सदस्य होंगे वहां पथ संचलन होगा।

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