वायु-प्रदूषण मानवता के लिए बड़ा खतरा
भारत में वायु प्रदूषण के बड़ी तेजी से बढ़ते कदम अब सीमाओं को लांघने लगे हैं। वायु प्रदूषण का खतरा यूं तो वैश्विक धरातल पर मौजूद है, किन्तु भारत में इस खतरे ने सरकार, समाज और धर्म-क्षेत्र, सभी को चौंकाया है। वायु प्रदूषण के खतरे की आंच आज देश को दरपेश किसी भी अन्य खतरे से कहीं अधिक है। वायु-प्रदूषण के कारण देश और समाज में दमा, अस्थमा और हृदय-रोग जैसी बीमारियों का ़खतरा निरन्तर बढ़ता जा रहा है। विशेषज्ञों के अनुसार हवा में निरन्तर बढ़ते जाते विषाक्त तत्वों के कारण लोगों में हृदय-आघात जैसे रोग ़खतरा भी निरन्तर बढ़ता जाता है। इसके कारण फेफड़े के कैंसर और कई अन्य सम्बद्ध रोगों के बढ़ने का अंदेशा भी है। सांस लेने से सम्बद्ध कई रोगों का ़खतरा भी इसी प्रदूषण के कारण होता है। स्थिति इस कारण इतनी गम्भीर हो गई है कि एक अन्तर्राष्ट्रीय विश्लेषण संस्था द्वारा प्रसारित आंकड़ो के अनुसार भारत में प्रत्येक वर्ष 18 लाख लोग इस वायु प्रदूषण के कारण काल के गाल में समा जाते हैं। इनमें सर्वाधिक अर्थात लगभग साढ़े 14 लाख से लेकर लगभग 17 लाख लोग हृदय-जनित रोगों का शिकार हो कर मरते हैं। लगभग दो लाख लोग फेफड़े से सम्बद्ध दमे आदि रोगों से भी मर जाते हैं। इस समस्या का एक और अति गम्भीर होता जाता पक्ष यह भी है कि वायु-प्रदूषण से उत्पन्न होने वाले रोग युवाओं और बच्चों को भी अपनी गिरफ्त में लेते जा रहे हैं।
इसी संस्था की एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार भारत में बहुत पहले दिल्ली, मुम्बई और गुरुग्राम जैसे कई महानगर अत्याधिक प्रदूषित शहरों में आते थे, किन्तु मौजूदा ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार आज मेघालय सर्वाधिक प्रदूषित प्रांतों में शुमार हो गया है। दूसरे स्थान पर राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली और तीसरे स्थान पर पंजाब का मुल्लांपुर क्षेत्र आता है। पंजाब में कभी लुधियाना को भी प्रदूषित शहरों में शुमार किया जाता था, किन्तु इस रिपोर्ट के अनुसार मुल्लांपुर इस मामले में अग्रणी हो गया है। बढ़ते प्रदूषण के विरुद्ध प्राय: सरकारें प्रभावी निरोधक पग उठाती रहती हैं, और इसके लिए मुकद्दमे भी दर्ज किये जाते हैं, तथा जुर्माने आदि का दण्ड भी आयद किया जाता है। प्रदूषण की रोकथाम को लेकर सर्वाधिक 30,870 मुकद्दमे तमिलनाडू में दर्ज हुए जबकि दूसरे स्थान पर राजस्थान में 9,529 मामले दर्ज किये गये। यह भी एक अकाट्य तथ्य है कि ऐसे मामलों में सज़ा का प्रावधान अवश्य होता है किन्तु यह दण्ड अथवा जुर्माना इतना कम होता है कि दोषी व्यक्ति इसकी अदायगी करके पुन: इस कानून-विरोधी कृत्य में संलग्न हो जाते हैं।
वायु प्रदूषण के अनेक कारण हो सकते हैं किन्तु मुख्यतया वृक्षों की अवैध और अन्धाधुंध कटाई, उद्योगों से निकलता धुआं, कूड़े-कचरे को आग लगाये जाने की घटनाएं और गैसों के निष्क्रमण में वृद्धि इसके लिए ज़िम्मेदार होती हैं। वृक्षों की वैध-अवैध कटाई की समस्या प्राय: देश के सभी प्रांतों में है। देश भर में वृक्षारोपण की अनेक सरकारी और सामाजिक धरातल की योजनाओं के बावजूद, वन क्षेत्रों और अन्य स्तरों पर वृक्षों का काटा जाना जारी है। यह स्थिति किसी एक देश में नहीं, विश्व धरातल पर भी ऐसा ही हो रहा है। विश्व के अनेक छोटे-बड़े देशों में वनों का आकार कम हुआ है। विश्व की बढ़ती आबादी को समाने के लिए भी वन काटे जा रहे हैं जिसका असर वायु-प्रदूषण पर पड़ना बहुत स्वाभाविक है। खुले-बन्दों कहना चाहें, तो देश में न सामाजिक और धार्मिक धरातल पर तथा न ही राजनीतिक धरातल पर इस समस्या की रोकथाम हेतु कोई सक्रियता दिखाई देती है। प्राय: सभी राज्यों में इस समस्या के प्रति एक जैसी स्थिति और नज़रिया है। पहले शहरों में दरख्त कटते थे। सड़कों के नव-निर्माण और मुरम्मत के नाम पर भी दरख्त कटते हैं, किन्तु अब खेतों में से भी दरख्त काटे जा रहे हैं। वनों में एकाधिक वन माफिया आज भी सक्रिय हैं। वनों से वृक्षों की कटाई अंधा-धुंध तरीके से जारी है, किन्तु नये वृक्षारोपण की ओर अधिक ध्यान नहीं दिया जाता। हम समझते हैं कि देश में जंगल कानूनों में बार-बार के संशोधन से भी वृक्षों के अवैध कटान को बल मिलता है। नि:संदेह यदि हमें विश्व की नई पीढ़ी को स्वच्छ मन और स्वस्थ शरीर वाला बनाना है तो एक ओर जहां वृक्षों के कटान को रोक कर वनीकरण को बढ़ाना होगा, वहीं वायु प्रदूषण को रोक कर, अपने लोगों को स्वच्छ पर्यावरण प्रदान करना भी उतना ही ज़रूरी होगा। मौजूदा स्थिति तो केवल दम-घोटू वातावरण को बढ़ाने जैसी है।