बरसात में बढ़ जाता है सर्पदंश का खतरा
बरसात खुशियों के साथ कई आपदाएं भी अपने साथ लेकर आती है। इनमें एक आपदा सर्पदंश की भी है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार बारिश के मौसम में देशभर में सर्पदंश की घटनाएं बढ़ गई है। सर्पदंश से होने वाली मौतों को जागरूकता के साथ रोका जा सकता है, बशर्तें आप किसी झाड़ फूंक के चक्कर में नहीं फंसे। बारिश के मौसम में अत्यधिक गर्मी और उमस से सर्प अपना बिल छोड़ देते है और इसी कारण सर्पदंश की घटनाएं होने लगती है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक देश में आये दिन कहीं न कहीं सर्पदंश की घटनाएं हो रही है। अनेक स्थानों पर लोगों की जान जा रही है। अभी तक खेतो में जंगलों में सर्पदंश की घटनाएं सुनने मिलती थी लेकिन देखने में आ रहा है कि अब सांप घरों में घुसकर काट रहे हैं। चिकित्सकों के मुताबिक सर्पदंश के बाद व्यक्ति को भागना नहीं चाहिए, क्योंकि इससे रक्त का संचार बढ़ने से जहर तेज़ी से फैलने लगता है। घटना के बाद व्यक्ति को तुरंत बैठ जाना चाहिए और डसने वाले स्थान पर पांच से छह इंच ऊपर कपड़ा बांध देना चाहिए, ताकि जहर आगे न बढ़े। तत्काल पीड़ित को ऐसे डॉक्टर के पास ले जाना चाहिए जहां एंटी स्नेक वेनम के अतिरिक्त सांस और दिल के सहायता संबंधी उपकरण उपलब्ध हों।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दुनियाभर में हर साल 50 लाख से अधिक लोग सर्पदंश के शिकार हो जाते है। इनमें से करीब एक लाख 38 हजार से अधिक लोग सांप के काटने से मर जाते हैं। भारत की बात करें तो हर साल भारत में 58 हजार लोग सांप काटने से अपनी जान गंवा देते हैं, जिनमें से सबसे अधिक मौतें उत्तर प्रदेश में होती हैं। भले ही प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों पर एंटीस्नेकवेनम को ‘आवश्यक’ दवाओं में शामिल किया गया हो, लेकिन फिर भी केंद्रों पर एंटीवेनम की कमी का सामना करना पड़ता है। आश्चर्य की बात है भारत एंटीवेनम के प्रमुख उत्पादकों में से एक है लेकिन यहां के ग्रामीण स्वास्थ्य केंद्रों को एंटीवेनम की भारी कमी का सामना करना पड़ता है, जो सांप काटने से होने वाली मौतों का एक प्रमुख कारण है। विशेषज्ञों के मुताबिक भारत में लगभग 70 प्रतिशत सर्प जहरीले नहीं होते, साथ ही उनका विष कोई गंभीर हानि नहीं पहुंचाता। ग्रामीण क्षेत्रों में सर्प काटने पर लोग अस्पताल नहीं जाकर झाड़ फूंक करवाने में अधिक विश्वास करते है जिससे कई बार ठीक होने के बजाये मौत हो जाती है।
जब कोई सांप किसी को काट लेता है तो इसे सर्पदंश या सांप का काटना कहते हैं। विषैले सांपों के सर्पदंश से कुछ ही मिनटों में मृत्यु तक हो सकती है। कुछ सांप विषैलें होते और कुछ विषैले नहीं होते हैं। देश और दुनियां में विषैले सर्प भी कई प्रकार के होते हैं। विषैले सांपों की प्रजातियों में कोबरा, काला नाग, नागराज, करैत, कोरल वाइपर, रसेल वाइपर, ऐडर, डिसफालिडस, मॉवा, वाइटिसगैवौनिका, रैटल स्नेक, क्राटेलसहॉरिडस आदि हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार भारत में सर्प की 240 प्रकार की प्रजातियां पाई जाती हैं। बारिश के मौसम में सांप के बिलों में पानी भर जाने से वे बाहर आकर सुरक्षित स्थान तलाशते हैं। ऐसे में कई बार वे हमारे घरों में घुसकर आश्रय खोजते हैं। ऐसे हालात में सर्पदंश की घटनाएं बढ़ जाती हैं। डॉक्टर्स का कहना है कि सर्पदंश के मामले में लापरवाही न बरतें व तुरंत नजदीकी अस्पताल या डिस्पेंसरी के आपातकालीन वार्ड में पीड़ित का ईलाज कराएं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक पूरी दुनिया में हर वर्ष सवा लाख के करीब लोग सांप के काटने से मर जाते हैं। मृतकों में करीब आधे भारतीय होते हैं। हमारे यहां हर वर्ष करीब 50 हजार लोग सर्पदंश के कारण अपनी जान गंवा देते हैं।
इनमें से 60 प्रतिशत मौतें अकेले जून से सितंबर के महीनों में होती हैं। इनमें से भी 97 प्रतिशत मौतें ग्रामीण क्षेत्रों मंत जबकि तीन प्रतिशत मौतें शहरी क्षेत्रों में होती हैं। राष्ट्रीय प्रतिनिधि मृत्यु दर अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार भारत में पिछले 20 वर्षों में सर्पदंश से मरने वालों की संख्या 12 लाख दर्ज की गई है। बताया गया है कि भारत में अधिकांश मृत्यु जहरीले रसेल वाइपरसक्रिटस तथा कोबरा जैसे सांपों के काटने से होती हैं। इनमें से अधिकतर मामलों में लोग सांप के जहर से नहीं बल्कि डर और अंधविश्वास के कारण मरते हैं। देश के नौ राज्यों के ग्रामीण क्षेत्रों में सर्पदंश के कारण लगभग 70 प्रतिशत मौतें देखी गई है, जिनमें बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, ओडिशा, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, राजस्थान तथा गुजरात राज्यों के ग्रामीण क्षेत्र शामिल है। पक्षी विज्ञानियों के मुताबिक सर्प बहरा होने के कारण सुनते नहीं हैं। आंखों के सहारे हिलती-डुलती चीज़ को देखकर और धरती के कंपन के अनुमान पर आक्रमण करते हैं। जानकार बताते हैं कि जुलाई के महीने में कोबरा, करैत आदि सांपों का प्रजनन काल होता है। वह मादा के साथ जोड़े बनाते हैं तब आस-पास किसी का हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं करते। ऐसे समय में वह आक्रामक हो जाते हैं। ऐसे में तीन माह तक विशेष सावधानी बरतनी चाहिए। सर्प जब हमलावर दिखें तो भागने की बजाय उस पर कपड़ा या रूमाल फेंकना चाहिए। जिससे वह उसमें फंस जाएं।