इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन पहुंचे शुभांशु शुक्ला

अंतरिक्ष यान ‘ड्रैगन’ के अंतरिक्ष प्रयोगशाला से जुड़ने के साथ ही बृहस्पतिवार को भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला और तीन अन्य यात्री अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (आईएसएस) पहुंच गए। अंतरिक्ष यान उस समय अंतरिक्ष स्टेशन से जुड़ा जब यह भारतीय समयानुसार 4:01 बजे उत्तरी अटलांटिक महासागर के ऊपर से गुजर रहा था। यह पहली बार है जब कोई भारतीय अंतरिक्ष यात्री आईएसएस की यात्रा पर गया है। अमरीकी अंतरिक्ष एजेंसी ‘नासा’ ने कहा कि बृहस्पतिवार को सुबह 6:31 बजे (भारतीय समयानुसार शाम 4:01 बजे) एक्सिओम मिशन-4 के तहत स्पेसएक्स ड्रैगन अंतरिक्ष यान चौथे निजी अंतरिक्ष यात्री मिशन के लिए अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर पहुंचा। नासा के एक लाइव वीडियो में अंतरिक्ष यान को अंतरिक्ष स्टेशन के पास आते हुए दिखाया गया और ‘डॉकिंग’ प्रक्रिया भारतीय समयानुसार अपराह्न 4:15 बजे पूरी हुई। 
25 जून 2025 ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला के लिए सबसे बड़ा दिन था। लखनऊ के सीएमएस ऑडिटोरियम में उनके पिता शंभू दयाल व माता आशा शुक्ला पहली पंक्ति में अपनी नज़रें स्क्रीन पर गड़ाये बैठी थीं। जैसे ही भारतीय समय के अनुसार दोपहर के 12.01 बजे पर फ्लोरिडा के कैनेडी स्पेस सेंटर (जहां केप कैनवेरल में अंधेरा छाया हुआ था, क्योंकि उस समय वहां सुबह के 2.31 बज रहे थे) से फाल्कन-9 राकेट लिफ्ट-ऑफ हुआ, तो ऑडिटोरियम का सन्नाटा हर्ष-ओ-उल्लास के शोर से गूंज उठा। भारतीय स्पेस इतिहास में एक नई सुबह का सूरज निकाल आया था। ऑडिटोरियम में ‘हिप हिप हुर्रे’ के नारे लगाते हुए दर्शक भांगड़ा करने लगे। शंभू दयाल ने एक पल में गर्व, खुशी व आंसुओं का अनुभव किया और बोले शुभांशु हमेशा से फोकस्ड, अनुशासित व देशभक्त रहा। शुभांशु के कंधे पर तिरंगा भी बता रहा था कि वह अपनी यात्रा में अकेले नहीं थे बल्कि हम सभी को साथ लेकर चल रहे थे। 
शुभांशु ‘ड्रैगन’ एक्सिओम-4 स्पेस कैप्सूल की पायलट सीट में थे, जो उन सहित चार सदस्यों की क्रू को बृहस्पतिवार को इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (आईएसएस) लेकर पहुंचा, भारतीय समय के अनुसार शाम 4.30 पर। स्पेस में प्रवेश करने के कुछ मिनट बाद ही शुभांशु ने पृथ्वी को रेडियो संदेश भेजा, ‘नमस्कार मेरे प्यारे देशवासियों। क्या राइड है! हम पृथ्वी की कक्ष में 7.5 किमी प्रति सेकंड के वेग (27,000 किमी प्रति घंटा) से चल रहे हैं।’ 39 वर्षीय शुभांशु के साथ मिशन विशेषज्ञ हंगरी के 33 वर्षीय टिबोर कापू, अमरीका की 65 वर्षीय कमांडर पेगी विटसन और पोलैंड के मिशन विशेषज्ञ 41 वर्षीय स्लावोस्ज़ उज्नांसकी हैं। इस 14 दिनों के मिशन में शुभांशु, विटसन के बाद सेकंड-इन-कमांड हैं। उनकी ज़िम्मेदारी निगरानी की है और अगर ऑटोमेशन फेल होता है तो वह हस्तक्षेप करेंगे। लांच, डॉकिंग, पुन:प्रवेश व लैंडिंग के दौरान वह स्पेसक्राफ्ट ऑपरेशन, नेविगेशन व नियंत्रण में मदद करेंगे। आईएसएस में डॉकिंग के बाद वह प्रयोगों, टेक डेमो आदि में हिस्सा लेंगे। 
गौरतलब है कि 3 अप्रैल 1984 को विंग कमांडर राकेश शर्मा सोवियत सोयूज़ टी-11 पर स्पेस में गये थे और वहां से तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के इस सवाल पर कि स्पेस से भारत कैसा दिखायी देता है, उन्होंने जवाब दिया था, ‘सारे जहां से अच्छा हिंदुस्तान हमारा।’ अब लगभग 41 वर्ष बाद एक दूसरे भारतीय शुभांशु ने कार्मन रेखा पार की है। शर्मा की स्पेस उड़ान से मानवों का स्पेस में जाने का कार्यक्रम आरंभ नहीं हुआ था, लेकिन इस बार गगनयान का काम चालू है और इसमें शुभांशु का अनुभव काम आयेगा। शुभांशु ने स्पेस से संदेश दिया, ‘यह आईएसएस को मेरी यात्रा का आरंभ नहीं है बल्कि भारत के मानव स्पेस उड़ान कार्यक्रम की शुरुआत है।’ इससे भारत की महत्वाकांक्षा प्रतिविम्बित होती है कि वह 2035 तक अपना स्पेस स्टेशन स्थापित करना चाहता है और चांद व उससे आगे तक क्रू मिशन ले जाना चाहता है। 
इसमें कोई दो राय नहीं हैं कि पिछले चार दशक के दौरान दुनिया बदल गई है और भारत की स्पेस महत्वाकांक्षा भी। राकेश शर्मा शीत युद्ध डिप्लोमेसी की वजह से स्पेस में गये थे, शुभांशु अलग ही लहर पर सवार हैं, जोकि कमर्शियल स्पेस क्रांति से प्रेरित है और साथ ही देशज मानव स्पेसफ्लाइट कार्यक्रम की भी तैयारी चल रही हैं। हालांकि शुभांशु प्राइवेट अमरीकन स्पेसक्राफ्ट पर गये हैं, लेकिन इससे भारत का मानव स्पेसफ्लाइट युग आरंभ होगा। शुभांशु के स्पेस में जाने के प्रतीकों को अनदेखा नहीं किया जा सकता। वह भारतीय वायु सेना के अधिकारी हैं और अब ऑर्बिट में अपने ग्लोबल समकालीनों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हुए हैं। लेकिन यह केवल प्रतीकात्मक डिप्लोमेसी नहीं है, यह क्षमता का प्रदर्शन है। यह सही है कि गगनयान- इसरो का मानव स्पेसफ्लाइट प्रोजेक्ट, को अभी अपना पहला क्रू मिशन लांच करना शेष है, लेकिन शुभांशु की उड़ान एक तरह से पूर्व-परीक्षण है, प्रक्रिया टेस्ट करने, स्पेस के अनुकूलन होने, माइक्रोग्रेविटी को समझने के लिए और वह भी भारत के झंडे तले उड़ान भरते हुए। 
राकेश शर्मा जब 1984 में स्पेस में गये थे, तब भारत के पास मानव स्पेस कार्यक्रम के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर का अभाव था। इसलिए शर्मा का युग (अगर युग कहना ठीक है तो) भाड़ में अकेला चना जैसा था। लेकिन आज गगनयान अगले कुछ वर्षों में क्रू लांच की तैयारी कर रहा है। भारत के पास अब ठोस स्पेस नीति है। शुभांशु का मिशन भूमिका है- भारतीयों की स्पेस में निरंतर मौजूदगी की। कोविड-19 व तकनीकी बाधाओं के कारण गगनयान में देरी अवश्य हुई है, लेकिन उसकी बुनियादें ठोस हैं। इस प्रोजेक्ट में देशज क्रू मोडयूल, एस्केप सिस्टम्स और विश्वसनीय एलवीएम-3 राकेट का बेहतर परिवर्तित रूप शामिल हैं। अगर यह कामयाब हो जाता है, जिसकी पूरी उम्मीद है, तो भारत कुलीन क्लब में शामिल हो जायेगा। इस बीच शुभांशु की उड़ान इसरो के लिए डाटा एकत्र करने का अवसर है। भारत को क्रू ट्रेनिंग प्रोटोकॉल्स, कक्षा में मैडीकल निगरानी और बंद स्थितियों के तहत व्यवहार विज्ञान के सिलसिले में महत्वपूर्ण जानकारी मिलेगी। यह सबक गगनयान के अंतिम चरण में बहुत काम आयेंगे।
यहां एक अन्य परत भी है। गगनयान से पहले एक भारतीय एस्ट्रोनॉट को आईएसएस में भेजकर भारत अपने आपको अंतरिक्ष यात्रा करने वाले उन देशों की कतार में शामिल कर लेगा, जिन्हें पहिये का अविष्कार नहीं करना है, लेकिन उपलब्ध मॉडलों से बहुत जल्द सीख लेते हैं, भले ही वह नासा का कमर्शियल क्रू फ्रेमवर्क हो या यूरोप के मिशन डिज़ाइन सिद्धांत। इसे ही प्राइवेट सेक्टर लम्बी छलांग लगाना कहता है। बहरहाल, इस उड़ान को भू-राजनीति के चश्मे से देखना भी ज़रूरी है। हम स्पेस में ज़बरदस्त पॉवर प्रतिद्वंदिता के युग में प्रवेश कर रहे हैं, जिसमें पृथ्वी की निचली कक्षा (एलईओ) का निरंतर कॉमर्शियल व सैन्यकरण होने से भीड़ बढ़ती जा रही है। चीन का तियनगोंग स्पेस स्टेशन चालू है। आईएसएस पर रूस व नासा असहज पार्टनर्स हैं। अमेरिका का आर्टेमिस कार्यक्रम तेज़ी पकड़े हुए है। चांद रणनीति का मुख्य केंद्र बन गया है। 
भारत आर्टेमिस पर अमरीका के साथ सहयोग करता है। बिना पूर्ण तालमेल के फ्रांस के साथ उपग्रह डाटा साझा करता है। अब जब शुभांशु ने अमेरिका-स्थित प्लेटफार्म से अंतरिक्ष की यात्रा की है, तो यह भारत व अमेरिका के बीच बढ़ती स्पेस साझेदारी को ज़ाहिर करता है, जिसके सैन्य, कॉमर्शियल व वैज्ञानिक पहलू हैं। अमरीका द्वारा भारतीय एस्ट्रोनॉट को बोर्ड पर लाने का अर्थ केवल एक दूसरे पर विश्वास ही नहीं है बल्कि स्पेस में चीन के बढ़ते प्रभाव को चुनौती भी है। भारत के लिए अवसर है कि वह 21वीं शताब्दी की इस महान अंतरिक्ष दौड़ में मात्र दर्शक होने की बजाय खुद को गंभीर खिलाड़ी के रूप में साबित करे। राकेश शर्मा स्कूली पाठ्यक्रम के हीरो तो बन गये थे, लेकिन भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम कुछ खास आगे न बढ़ सका था। शुभांशु डिजिटल मीडिया के दौर में हैं, इसलिए वह इस स्थिति में हैं कि नई पीढ़ी के भारतीय इंजीनियरों, वैज्ञानिकों को प्रेरित कर सके और भारत अंतरिक्ष की दौड़ में मज़बूत खिलाड़ी के रूप में सामने आ जाये, जिसकी संभावनाएं प्रबल हैं।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर 

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