छिपा खजाना

सुदर्शन बाबू सुबह का वक्त अपने अध्ययन-लेखन में ही बिताना पसंद करते हैं, फिर भी जब उन्होंने दरवाजे पर सरोज और सुकुमार को देखा तो उन्हें अच्छा ही लगा।
सरोज और सुकुमार ऐसे युवा दंपत्ति थे जो सदा अपने गांव में किसी न किसी भले व सार्थक कार्य को आगे बढ़ाने में लगे रहते थे, और ऐसे युवाओं को प्रोत्साहित करने में सुदर्शन बाबू का बहुत मन लगता था।
उन्होंने बहुत प्यार से दोनों को बिठाया और चाय-नाश्ते का आग्रह किया। सरोज ने कहा- नहीं, सर अभी नहीं। अभी तो हम जल्दी में हैं और केवल आपसे आशीर्वाद लेने आए हैं।
- मेरा आशीर्वाद तो सदा तुम्हारे साथ है। फिर भी क्या कोई विशेष कार्य आरंभ करने जा रहे हो।
- जी सर, आज हमें संस्था से 10 लाख रुपए का ग्रांट मिलना है गांवों में फूड बैंक शुरू करने के लिए।
- बहुत बधाई हो।
- जी! और इसलिए हमने सोचा कि आपका आशीर्वाद लेकर ही शुभ कार्य को आरंभ करें।
- बहुत, बहुत सफल हो आपका यह सुप्रयास। फिर कब मिलना होगा?
- यह भी मैं कहने ही वाली थी। दोपहर को हमारा फंक्शन समाप्त हो जाएगा, तो फिर गांव लौटने से पहले क्या हम आपसे मिलने आ सकते हैं?
- हां, हां क्यों नहीं।
- तो फिर उसी समय आपसे फूड बैंक के बारे में सलाह भी हो जाएगी। बेसिक आईडिया तो यह है कि किसी भी परिवार को भूखा न सोना पड़े, उसके लिए अनाज का एक कोष सदा गांव में रहे।
- ज़रूर।
जब दोपहर में कुछ देरी से सरोज और सुकुमार वापस लौटे तो सुदर्शन बाबू यह देखकर हैरान हो गए कि दोनों के चेहरे कुम्हलाए हुए थे। ज़रूर कुछ गड़बड़ है, सुदर्शन ने सोचा, सुबह तो उमंग और उत्साह से भरे हुए थे।
खैर वे सब बैठे तो सरोज और सुकुमार इधर-उधर की छोटी-मोटी बातें ही करते रहे।
अंत में सुदर्शन को ही पूछना पड़ा - और उस फूड बैंक के ग्रांट का क्या हुआ?
सुकुमार ने कहा- सर यह तो हमारे साथ बहुत धोखा हुआ। संस्था ने पक्का वायदा आज के लिए किया था, पर आज साफ मना कर दिया।
- क्यों?
- कारण तो कुछ बताया ही नहीं, पर चर्चा में है कि हमने जो मजदूर आंदोलन में इतना बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। इसके कारण हमें वे आगे से भी सहायता नहीं देंगे।
- ओह!
माहौल बड़ा भारी हो गया था। सुकुमार और सरोज का दर्द समझा जा सकता था क्योंकि वे इस संस्था की सहायता से कई सार्थक कार्यक्रम चला रहे थे।
सुदर्शन कुछ देर चुप रहे, फिर धीरे से बोले - पर यदि आप चाहें तो यह फूड बैंक अभी भी शुरू हो सकता है।
- कैसे सर?
- अच्छा यह बताओ कि गांव में 15 वर्ष से अधिक आयु के कितने पुरुष होंगे?
दोनों ने आपस में सलाह की, फिर सरोज ने कहा- यही कोई 3000 के आसपास सर।
- और इनमें से कितने शराब पीते होंगे?
दोनों ने फिर कुछ मंत्रणा की।
 - कोई 1500 के करीब सर।
- अच्छा जो शराब पीता है, वह औसत एक दिन में शराब पर कितना खर्च कर देता है।
- सर शराब के साथ कुछ नमकीन वगैरह भी चलता है। कोई कम पीता है, कोई ज्यादा। फिर भी औसतन पीने वाले एक दिन में सौ रूपए तो खर्च कर ही देते हैं।
- तो इसका मतलब एक दिन में डेढ लाख रुपया गांव से बाहर शराब पर खर्च होकर जाता है।
दोनों हैरानी से सुदर्शन बाबू को देखने लगे। उन्होंने इस दृष्टि से कभी सोचा नहीं था।
- इसका अर्थ है 45 लाख रुपए एक महीने में गांव से बाहर शराब पर खर्च के रूप में जाता है।
सुकुमार और सरोज अवाक से उन्हें देखते रहे।
- इसका अर्थ है के एक वर्ष में 540 लाख रुपए यानि 5 करोड़ 40 लाख रूपए शराब पर खर्च के रूप में बाहर जाता है।
अब तो सरोज और सुकुमार हैरान ही रह गए। सुकुमार ने धीरे से कहा (क्रमश:)

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