पर्यटकों को आकर्षित करता रावण का लंका मीनार 

हमारे देश में कई ऐसे धार्मिक स्थल हैं, जहां अनेकों श्रद्धालु आज भी जोड़ियों में दर्शन करने हेतु जाते हैं। कई स्थान तो ऐसे भी हैं जहां जाना शुभ माना जाता है विशेष रूप से महाराष्ट्र में शनि-शिंगणापुर यदि मामा-भांजा की जोड़ी जाये तो मनोकामना अवश्य ही पूर्ण होती है लेकिन आपको यह जानकारी पाकर हैरानी होगी कि उत्तर प्रदेश के जालौन ज़िले में बुंदेलखंड के प्रवेशद्वार कालपी में स्थित एक रावण मीनार हैं, जहां भाई-बहन का एक साथ जाना आज भी वर्जित है। यहां हर कोई जोड़े से जा सकता है, लेकिन भाई-बहन जोड़ी से नहीं जाते। यह मीनार रावण मीनार के नाम से प्रसिद्ध है। दिल्ली की कुतुबमीनार के बाद यही सबसे ऊंची मीनार हमारे देश में है। अपनी अजीबो गरीब मान्यताओं की वजह से अब यह पर्यटकों का प्रमुख आकर्षण का केन्द्र बन चुकी है। आम पर्यटक इसे दूर-दूर से देखने हेतु आते हैं। इस मीनार के भीतर लंकाधिपती रावण के पूरे परिवार के आकर्षक चित्र अंकित है। यह वही स्थान हैं जहां कालपी में ऋषि वेदव्यास ने आध्यात्मरामायण लिखी थी। 
इस मीनार की कहानी भी अतिरोचक है। जानकारी के मुताबिक यह मीनार सन् 1857 में एक रावण के अनन्य भक्त मथुराप्रसाद ने बनवाई थी। उन्होंने ही इसका नाम लंका मीनार रखा था। दरअसल मथुरा प्रसाद स्वयं एक ऐसे लोक कलाकार थे जो प्राय: रामलीला में रावण का प्रभावशाली किरदार निभाते थे। उनके जीवन पर लंकेश की ऐसी छाप पड़ी कि उन्होंने दशानन की स्मृति में ही इस अनूठी मीनार का निर्माण करवा कर इतिहास रच डाला। 
लंका मीनार उस समय 20 वर्ष की अवधि में बनकर तैयार हुई थी। इस भव्य मीनार की ऊंचाई 210 फीट है। लंका मीनार के भीतर रावण के भाई कुंभकर्ण व पुत्र मेघनाथ की कलात्मक विशाल मूर्तियां हैं। जिसमें कुंभकर्ण की मूर्ति 100 फुट ऊंची है तो मेघनाथ की 65 फुट ऊंची मूर्ति आकर्षक गड़ाईदार शैली में बनी हुई है। इस आकर्षक मीनार को बनने में उस जमाने में दो लाख रुपये खर्च हुए थे। इस कलात्मक मीनार में प्रवेश करने पर मीनार परिसर में 180 फुट लम्बे नागदेवता की मूर्ति है, तो 95 फीट की नागिन प्रवेश द्वार पर विराजित हैं। ऐसी मान्यता है कि ये मीनार की रखवाली करते हैं। मीनार के भीतर रावण के अराध्य देव भगवान शिव तथा भगवान चित्रगुप्त की भी मूर्तियां है। लंकाधिपति रावण चूंकि शिवभक्त थे, इसलिए मंदिर का वास्तुनिर्माण इस तरह से करवाया गया है की रावण अपनी लंका से भगवान शिव को 24 घंटे निहारते रहे। 
लंका मीनार देखने पर सबसे रोचक तथ्य यह सामने आया कि यहां भाई-बहन आज तक साथ नहीं जा पाये हैं। मीनार में ऊपर जाने हेतु 74 परिक्रमाओं को पूरा करना पड़ता है, जिसे आज तक कोई भी भाई-बहन पूरा नहीं कर सके। स्थानीय लोग बताते हैं कि जबसे मीनार बनी है तबसे कोई भाई-बहन जोड़े से उपर नहीं जा पाया है! अत: यहां आने वाले वर्षों से लोग इसकी पालना करते आ रहे हैं। लंका मीनार को देखने प्रतिदिन बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं। मीनार का रखरखाव होने से मीनार की भव्यता आम पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित करती है।       
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