शंघाई सहयोग संगठन की भावना
चीन के शहर किंगदाओ में इस वर्ष हुई शंघाई सहयोग संगठन के सदस्य देशों के रक्षा मंत्रियों की बैठक कुछ देशों के आपसी तनाव के दृष्टिगत ज्यादा भावपूर्ण नहीं हो सकी। पिछले 24 वर्ष से यह संगठन आपसी तालमेल के साथ काम ज़रूर करता रहा है परन्तु इसी दौरान इन देशों का अक्सर आपसी तनाव भी सामने आता रहा है। वैसे शंघाई सहयोग संगठन (एस.सी.ओ.) अन्य अन्तर्राष्ट्रीय संगठनों के मुकाबले में स्वयं में कई कारणों के कारण प्रभावशाली ज़रूर बना रहा है। वर्ष 2001 में इस संगठन को नया रूप दिया गया था और इस समय में इसमें 10 देश भारत, रूस, बेलारूस, चीन, ईरान, पाकिस्तान, कज़ाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताज़िकस्तान और उज़्बेकिस्तान आदि शामिल हैं। इनमें से ज्यादातर देश कभी सोवियत यूनियन का हिस्सा रहे थे।
इन देशों का मुख्य उद्देश्य प्रत्येक तरह का आपसी सहयोग बढ़ाना और राजनीति व आर्थिक सहयोग के साथ-साथ आपसी सुरक्षा को भी सुनिश्चित बनाना था। 24 वर्ष पहले जब यह संगठन बना था तो इसमें चीन और रूस के साथ कज़ाकिस्तान, किर्गिस्तान, ताज़िकस्तान और उज़्बेकिस्तान ही शामिल थे, परन्तु वर्ष 2017 में इस संगठन में भारत, पाकिस्तान और बेलारूस को भी शामिल किया गया, जहां भारत और पाकिस्तान में लगातार दशकों से 36 का आंकड़ा चला आ रहा है, वहां पहले सोवियत यूनियन में शामिल रहे और अब स्वतंत्र देशों के रूप में इस संगठन में शामिल कई देशों के बीच कई तरह के आपसी विवाद भी उत्पन्न होते रहे हैं। इस वर्ष किंगदाओ में इन देशों के रक्षा मंत्रियों की बैठक में चाहे अन्य मुद्दों पर तो काफी सीमा तक सहमति बनती दिखाई दी थी परन्तु भारत और पाकिस्तान के बीच विगत अवधि में घटित घटनाक्रम का साया इस बैठक पर लगातार पड़ता रहा। यहां तक कि भारत के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह और पाकिस्तान के रक्षा मंत्री ख्वाजा आस़िफ ने इस समारोह में आपसी दुआ सलाम भी नहीं किया। हम इसमें भारत की ओर से उठाये गए उस मुद्दे को स्पष्ट और वज़नदार समझते हैं, जिसमें राजनाथ सिंह ने सीमा पार से आतंकवाद को लगातार समर्थन देने के लिए पाकिस्तान को निशाने पर लिया और यह भी आरोप लगाया कि वह आतंकवादियों, उनके संगठनों और उन्हें आर्थिक सहायता देने वालों के साथ लगातार खड़ा रहा है और उन्होंने इस बात पर भी ज़ोर दिया कि शांति, खुशहाली और आतंकवाद एक साथ नहीं चल सकते। इस सम्मेलन में पाकिस्तान द्वारा बलोचिस्तान की स्थिति का मुद्दा उठाने का संज्ञान लेते हुए सम्मेलन द्वारा पहलगाम के गोलीकांड को नज़रअंदाज़ करने पर भी एतराज़ जताया। राजनाथ सिंह ने स्पष्ट रूप में कहा कि इस संगठन को दोहरा मापदंड नहीं अपनाना चाहिए। यदि इस पर संयुक्त वक्तव्य में बलोचिस्तान में बलोची जांबाज़ों द्वारा ज़ाफर एक्सप्रैस गाड़ी के अपहरण की बात को शामिल किया गया है तो पहलगाम हमले को भी इसमें शामिल किया जाना ज़रूरी है और यह भी कि आतंकवादियों को पाकिस्तान की ओर से लगातार दी जा रही शह की भी आलोचना की जानी चाहिए।
इस कारण भारत ने इस संयुक्त वक्तव्य पर हस्ताक्षर करने से इन्कार कर दिया, जिस कारण रक्षा मंत्रियों का यह सम्मेलन बिना किसी संयुक्त बयान के खत्म हो गया। हम समझते हैं कि शंघाई कार्पोरेशन आर्गेनाइजेशन जिसमें शामिल सदस्य देश दुनिया के 24 प्रतिशत क्षेत्रफल के हिस्सेदार हैं और संगठन के इन देशों में दुनिया के 42 प्रतिशत लोग भी रहते हैं, के कामकाज को और भी सहमति-भरपूर बनाने का यत्न किया जाना चाहिए। आपसी टकराव वाले और अन्य ज्वलंत मामलों के प्रति संतुलित सोच का प्रकटावा ही इस संगठन के भविष्य का जामिन हो सकता है। यदि ऐसा सम्भव न हो सका तो यह संगठन अर्थपूर्ण नहीं रहेगा और इसका प्रभाव भी कमज़ोर होता दिखाई देने लगेगा। एक साझी सोच बनाने के लिए पहले ज्वलंत आपसी मामलों को सन्तोषजनक ढंग से हल करने की ज़रूरत होगी।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द