हरियाणा की राजनीति में शह-मात का खेल

हरियाणा की राजनीति में अचानक उठे एक नये तूफान ने नि:संदेह अपने आस-पास के मुआशिरे में हलचल तो मचाई है, यह अपने पीछे अपने होने के निशान भी अवश्य छोड़ जाएगा। प्रदेश की राजनीति के जानकार लोगों को इस तूफान की विगत कुछ समय से निरन्तर प्रतीक्षा भी थी। हलचल की आशंका तो तभी उत्पन्न हो गई थी जब विगत 12 मार्च को पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर  लाल खट्टर के निर्देश पर सन् 2019 के विधानसभा चुनावों के बाद 10 विधायकों वाली जननायक जनता पार्टी की भागीदारी से गठित गठबंधन वाली उनकी सरकार के सभी मंत्रियों ने अपने त्याग-पत्र राज्यपाल को सौंप दिये थे। अगले ही दिन भाजपा आला कमान के निर्देशानुसार पार्टी और पूर्व मुख्यमंत्री के व़फादार नायब सिंह सैनी ने पांच अन्य मंत्रियों के साथ नई सरकार बना ली थी, किन्तु इस नई सरकार में चूंकि जननायक जनता पार्टी का कोई सदस्य शामिल नहीं किया गया था, किन्तु सरकार ने सात में से छह निर्दलीय विधायकों एवं हलोपा के एकमात्र विधायक के मौखिक समर्थन के साथ अगले ही दिन अपना बहुमत भी सिद्ध कर दिया था। भाजपा ने बेशक एक तीर से दो शिकार किये थे, और अपनी सरकार को बचाने के अतिरिक्त सरकार के लिए शेष बचते लगभग एक वर्ष से भी कम समय में कभी भी खतरा बन सकती जननायक जनता पार्टी के पांच सदस्यों को अपनी ही पार्टी के विरोधी नेतृत्व में ला खड़ा किया था। जननायक जनता पार्टी अर्थात जजपा और भाजपा के बीच इस घटनाक्रम से बहुत पहले ही मिशन-2024 लोकसभा चुनाव हेतु सीटों के बटवारे को लेकर तलवारें खिंचना शुरू हो गई थीं, और इससे पहले कि जजपा अपनी ओर से प्रहार करती, भाजपा ने उसी के वार को बूमरैंग करके उसे विभाजन के कगार की ओर धकेल दिया।
नायब सिंह सैनी सरकार के गठन के समय मंत्री पद की आस तो समर्थन देने वाले सभी निर्दलीयों को थी, किन्तु मंत्रिमंडलीय गठन के समय केवल रणजीत चौटाला को ही मंत्री बनाया गया। चौटाला पूर्व की खट्टर सरकार में भी मंत्री रहे थे। लिहाज़ा नई सैनी सरकार को मंत्री-पद के लालच में समर्थन देने वाले निर्दलीयों में रोष का उपजना बहुत स्वाभाविक था। अब मौका देख कर तीन निर्दलीय विधायकों द्वारा समर्थन वापिस ले लेने और मनोहर लाल खट्टर एवं निर्दलीय रणजीत चौटाला की ओर से विधायक पद से त्याग पत्र दे दिये जाने के दृष्टिगत स्वाभाविक रूप से नायब सिंह सैनी सरकार अल्प मत में आ गई है। स्थिति अब यह है कि एक ओर तो जजपा की ओर से पूर्व उप-मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने नायब सिंह सैनी की सरकार को गिराने के लिए कांग्रेस को सहयोग हेतु खुली पेशकश कर दी है। जजपा ने तो राज्यपाल बंडारू दत्तात्रेय को पत्र लिख कर विधानसभा में तत्काल शक्ति-परीक्षण कराने की भी मांग की है। दुष्यन्त चौटाला ने तर्क दिया है कि राज्यपाल विशेष शक्तियों के तहत शक्ति-परीक्षण करा सकते हैं। दुष्यन्त चौटाला ने प्रदेश में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने की मांग भी की है। 
वहीं हरियाणा विधानसभा के भीतर की स्थिति का आंकड़ा गणित यह है कि 2019 में सम्पन्न हुए विधानसभा चुनावों के दौरान 90 सदस्यीय विधानसभा में अब 88 विधायक रह गये हैं। भाजपा के पास 41 और कांग्रेस के पास 30 विधायकों की संख्या है। जजपा के 10 और निर्दलीय सात विधायक हैं, किन्तु सभी ओर से तीर चलने के बावजूद मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी की कुर्सी को कोई खतरा नहीं है। प्रदेश की पूर्व सरकार के विरुद्ध कांग्रेस ने पहले भी विगत 22 फरवरी को बजट सत्र के दौरान अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था जो पारित नहीं हो सका था। संवैधानिक प्रक्रिया के अनुसार अगले 6 मास अर्थात 22 अगस्त तक प्रदेश की भाजपा सरकार के विरुद्ध कोई और अविश्वास प्रस्ताव पेश नहीं किया जा सकता। वैसे भी हरियाणा प्रदेश विधानसभा का मौजूदा कार्यकाल इसी वर्ष अक्तूबर तक खत्म होने वाला है, और कोई अतिरिक्त खतरा उत्पन्न होने पर मुख्यमंत्री दो मास पूर्व भी विधानसभा को भंग करने की सिफारिश कर सकते हैं।
अब महाभारत के रण की भू्मि हरियाणा मौजूदा राजनीति का एक और रण बनने की ओर तेज़ी से अग्रसर हो गई है। कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री रहे भूपिन्द्र सिंह हुड्डा अपनी पूरी शक्ति के साथ सैनी सरकार को पटखनी देने में जुट गये हैं। दुष्यन्त चौटाला और अजय चौटाला के नेतृत्व में जजपा भी अपने तीरों को कमान पर चढ़ाये किसी भी क्षण प्रहार करने को तैयार खड़ी है। निर्दलीयों में से भी कुछ भाजपा की वायदा-खिलाफी के बैनर उठाये दिखाई दिये हैं। नई सरकार के गठन के समय असंतुष्ट हुए एक-दो भाजपा विधायक, उसके पूर्व मंत्री भी खुन्नस पाले हुए हैं, किन्तु इसके बावजूद नायब सिंह सैनी सुरक्षित मचान पर बैठे हैं। आंकड़ों का गणित कुछ भी कहे, किन्तु संवैधानिक छतरी मुख्यमंत्री सैनी के हाथ में है। जजपा के असंतुष्ट 6 में से 4 विधायक कभी भी सरकार की ओर पाला बदल सकते हैं। दो अन्य निर्दलीय विधायकों को भी समर्थन बदलने हेतु मनाया जा सकता है। एक तीसरा विकल्प यह भी है कि जजपा के छह विधायक यदि अनुपस्थित भी रहते हैं, तो भी संख्या संतुलन में 82 विधायकों के बीच 43 का आंकड़ा भाजपा के पक्ष में ही रहेगा। तथापि विपक्ष यदि सचमुच एकजुट होता है, तो उसकी संख्या 45 हो जाएगी, और यहीं पर सैनी सरकार की नींवों को वो खतरा बन जाएगा, जो उसके लिए मात मिलने का कारण बन सकता है। तथापि, बात निकली है तो यह दूर तलक जाएगी ही। यह तूफान अब किस ओर को रुख करता है, यह अगले कुछ दिनों में स्पष्ट हो जाएगा।