गाज़ा पर हमलों के विरोध में अमरीका में भड़का छात्र आंदोलन

गाज़ा पर इज़रायल हमलों के विरोध में अमरीका के सर्वश्रेष्ठ व विख्यात विश्वविद्यालयों में छात्र आंदोलन भड़क उठा है। इज़रायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू व अमरीका के रूढ़िवादियों (कंजरवेटिव्स) ने इस आंदोलन को एंटी-सेमिटिक (सामी यानी यहूदी विरोधी) कहते हुए इस पर विराम लगाने के लिए कहा है और सत्ता संघर्ष में फंसे कुछ कॉलेज प्रशासनों ने पुलिस की मदद से कड़ी कार्यवाही भी की है। इस आंदोलन में बड़ी संख्या में फैकल्टी के सदस्य भी छात्रों के साथ शामिल हैं। कैलिफोर्निया व टेक्सास सहित अमरीका के अनेक विश्वविद्यालयों ने प्रदर्शनों को रोकने व गिरफ्तारी कराने के लिए पुलिस को बुलाया है। लेकिन अमरीका के एक तट से दूसरे तट तक आंदोलन बढ़ता ही जा रहा है। पुलिस प्रशासन पर दबाव इसलिए भी बढ़ रहा है क्योंकि मई में स्कूलों में ग्रेजुएशन समारोह होने आरंभ हो जायेंगे। नेतन्याहू का बयान आग में घी का काम कर सकता है। उन्होंने छात्र आंदोलन की घेराबंदी करते हुए उसे एंटी-सेमेटिक के रूप में पेश करने का प्रयास किया है। उनके बयान से न सिर्फ सामाजिक विभाजन बढ़ सकता है बल्कि रिपब्लिकन को बारूद भी मिल सकता है, जिन्होंने विश्वविद्यालय प्रशासकों व डेमोक्रेट्स पर आरोप लगाया है कि वह यहूदी छात्रों को हमलों से सुरक्षित रखने में असफल रहे हैं।  नेतन्याहू ने कहा है, ‘अमरीका के कॉलेज कैम्पसों में जो कुछ हो रहा है वह भयावह है। एंटी-सेमिटिक भीड़ ने प्रमुख विश्वविद्यालयों पर कब्ज़ा कर लिया है। वह इज़रायल को खत्म करने की मांग कर रहे हैं। वह यहूदी छात्रों पर हमले कर रहे हैं। वह यहूदी फैकल्टी पर हमले कर रहे हैं।’ नेतन्याहू के बयान पर छात्रों की प्रतिक्रिया अभी तक नहीं मिल सकी है; क्योंकि वह एकल गुट में संगठित नहीं हैं। इसका अर्थ यह है कि जो कुछ गाज़ा में हो रहा है, उसके विरोध में छात्रों का गुस्सा स्वत: ही फूटा है। दरअसल, जब सरकारें अपने स्वार्थ के चलते न्यायपूर्ण नीति नहीं अपनाती हैं तो संवेदनशील छात्रों का संयम टूट ही जाता है और वह खुद ही सिस्टम को दुरस्त करने का प्रयास करते हैं। दुनिया भर में छात्रों का एक्टिविज़्म आम बात है। लेकिन क्या इससे वास्तव में कोई परिवर्तन आता है? उत्तर इस बात पर निर्भर करता है कि आपके लिए परिवर्तन का अर्थ क्या है।  4 जून, 1989 को चीन में लोकतंत्र के समर्थन में छात्रों के नेतृत्व वाले आंदोलन को थियानमेन चौक पर टैंकों के नीचे रौंद दिया गया था। तब से बीजिंग कैम्पसों पर कड़ी निगाह रखता है कि कहीं से कोई क्रांति का झंडा बुलंद न हो जाये। 
अमरीका में जो छात्रों के विभिन्न गुट कैम्पस आंदोलन का आयोजन कर रहे हैं, उन्होंने स्पष्ट कहा है कि वह हिंसा व एंटी-सेमेटिकइज़्म की निंदा करते हैं। लेकिन कुछ प्रदर्शनों में यहूदी विरोधी व इज़रायल विरोधी नारे लगे हैं और धमकाने वाली भाषा का भी प्रयोग हुआ है। कुछ यहूदी छात्रों ने कहा है कि वह असुरक्षित महसूस कर रहे हैं। न्यूयॉर्क की कोलम्बिया यूनिवर्सिटी में छात्रों ने उसी जगह अपना डेरा जमाया हुआ है, जहां कुछ सप्ताह के भीतर उनमें से अधिकतर अपने परिवारों के सामने ग्रेजुएट होंगे। डेरा हटाने के लिए कोलम्बिया ने छात्रों से कई चक्र वार्ता की, जो असफल रही, 100 से अधिक छात्रों को गिरफ्तार भी कराया गया, जिसका अभी तक कोई असर नहीं पड़ा है, लेकिन कुछ विश्वविद्यालयों ने प्रदर्शनकारी छात्रों को निलम्बित भी किया है। आंदोलन तेज़ी से कानून व्यवस्था का मामला बनता जा रहा है। यूनिवर्सिटी ऑफ साउथर्न कैलिफोर्निया में प्रदर्शनकारी छात्रों की गिरफ्तारी से पहले ही तनाव व्याप्त था; क्योंकि विश्वविद्यालय ने सुरक्षा चिंताओं का बहाना लेते हुए विदा लेने वाले उन छात्रों के विदाई भाषणों को रद्द कर दिया था, जो सार्वजनिक तौर पर फिलिस्तीन का समर्थन करते हैं।  छात्रों की गिरफ्तारी के बाद विश्वविद्यालय ने कैम्पस को बंद कर दिया है। टेक्सास में गवर्नर के आदेश पर कैम्पस से छात्रों को गिरफ्तार किया गया है। यही हाल अमरीका के लगभग सभी प्रमुख विश्वविद्यालयों में है। टेक्सास में तीसरे वर्ष के एक छात्र ने कैम्पस पर पुलिस की मौजूदगी व गिरफ्तारियों को ‘ओवररिएक्शन’ कहा है। उसके अनुसार, ‘प्रदर्शन शांतिपूर्ण रहता अगर पुलिस को न बुलाया जाता। इन गिरफ्तारियों की वजह से अधिक प्रदर्शन होंगे।’ कैलिफोर्निया स्टेट पॉलिटेक्निक यूनिवर्सिटी, हमबोल्ट में पुलिस ने घेराबंदी करके छात्रों को तीन दिन तक बिल्डिंग के अंदर ही कैद रखा। 
विश्वविद्यालय ने कैम्पस को बंद करके क्लासेज वर्चुअल कर दी हैं। मैसाचुसेटस में हारवर्ड यूनिवर्सिटी ने प्रदर्शनों को रोकने के उद्देश्य से हारवर्ड यार्ड में एक्सेस सीमित किया और टेंट व टेबल लाने की अनुमति नहीं दी, लेकिन छात्रों ने हारवर्ड अंडरग्रेजुएट फिलिस्तीन सॉलिडेरिटी कमेटी को स्थगित करने के विरोध में छात्रों ने फिर भी 14 टेंट्स के साथ अपना डेरा डाल ही लिया। हारवर्ड के छात्र मांग कर रहे हैं कि विश्वविद्यालय इज़रायल से वित्तीय संबंध समाप्त करें और उन कम्पनियों से अलग हाें जो गाज़ा में हिंसा को बढ़ावा दे रही हैं। छात्र आंदोलन से अमरीका के राष्ट्रपति पर मध्य पूर्व में शांति स्थापित करने के लिए कितना दबाव पड़ता है यह तो समय ही बतायेगा, लेकिन फिलहाल अमरीकी कैम्पसों में तनाव बहुत है।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर