शिरोमणि कमेटी के प्रधान का चुनाव लड़ने हेतु दृढ़ हैं बीबी जगीर कौर

मोहब्बतें हो रही हैं ज़ख्मी किसे खबर है,
अभी मसरूफ हैं रिश्ते सारे चुनाव में।
इस बार शिरोमणि कमेटी के प्रधान के चुनाव का प्रारूप पिछले कई वर्षों से कुछ अलग होने की सम्भावनाएं बनती जा रही हैं। अब तक प्राप्त सूचनाओं के अनुसार इस बार भी चुनाव में मुख्य मुकाबला अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल द्वारा आधिकारिक रूप से खड़े किये जाने वाले उम्मीदवार तथा अकाली दल की ही नेता तथा शिरोमणि कमेटी की पूर्व प्रधान बीबी जगीर के मध्य हो सकता है। हमारी जानकारी के अनुसार चाहे बीबी जगीर कौर एक बार भी सुखबीर सिंह बादल के विरुद्ध खुल कर नहीं बोलीं परन्तु वह लगभग एक महीने से अपने तौर पर ही शिरोमणि कमेटी के सदस्यों के साथ निजी तौर पर सम्पर्क कर रही हैं। हम समझते हैं कि उनकी इस तैयारी को देखते हुए ही अकाली हाईकमान ने इस बार शिरोमणि प्रधान का चुनाव नवम्बर के शुरू में ही करवाने का फैसला कर लिया है। नहीं तो आम तौर पर यह चुनाव नवम्बर के अंत में होता है। इस दौरान बीबी जगीर कौर ने प्रधान का चुनाव 15 दिन आगे डालने की मांग करके स्पष्ट संकेत दिया है कि वह इस बार चुनाव लड़ने हेतु गम्भीर हैं। बीबी जगीर कौर का कहना है कि 9 नवम्बर तक तो लगभग सवा, डेढ़ दर्जन शिरोमणि कमेटी के सदस्य देश से बाहर हैं। वे वोट डालने नहीं पहुंच सकेंगे तथा इन दिनों में ही जत्थेदार श्री अकाल तख्त साहिब भी विदेश दौरे पर जा रहे हैं। यदि चुनाव 15 दिन आगे डाल दिये जाएं तो सभी वोट डाल सकेंगे।
परन्तु हमारी जानकारी के अनुसार अकाली दल के अध्यक्ष अब चुनाव आगे नहीं बढ़ाएंगे। इस दौरान गत दिवस बीबी जगीर कौर द्वारा अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल से भेंट करने की भी सूचना है। चाहे इस बात की जानकारी नहीं है कि यह भेंट सुखबीर सिंह बादल की ओर से ही हुई है या बीबी जगीर कौर की ओर से, परन्तु ये सूचनाएं ज़रूर हैं कि इस बैठक में बीबी ने  सुखबीर सिंह बादल को स्पष्ट कर दिया है कि वह चुनाव हर स्थिति में लड़ेंगी। बादल दल के सूत्रों का कहना है कि बीबी का प्रयास दबाव डालने का था कि सुखबीर सिंह बादल पार्टी में फूट के डर से बीबी जगीर कौर को स्वयं ही प्रधान पद का उम्मीदवार घोषित कर दें। 
हमारी जानकारी के अनुसार सुखबीर सिंह बादल भी अपनी पार्टी के शिरोमणि कमेटी के सदस्यों से सम्पर्क करके उनकी राय ले रहे हैं। कहा जाता है कि ज्यादातर सदस्यों ने उन्हें विश्वास दिलाया है कि वे पार्टी के फैसले के साथ ही खड़े होंगे। इस दौरान ऐसे संकेत भी मिले हैं कि अकाली दल की हाईकमान तथा अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल मौजूदा प्रधान हरजिन्दर सिंह धामी को ही एक बार फिर प्रधान बनाने का फैसला ले चुके हैं, क्योंकि एक तो धामी इस कठिन समय में भी पार्टी तथा अध्यक्ष के व़फादार रहे हैं। दूसरा उन्होंने शिरोमणि कमेटी के काम में सुधार लाने हेतु काफी मेहनत भी की है तथा उन पर भ्रष्टाचार आदि के आरोप भी नहीं लगे। फिर पार्टी को ऐसी स्थिति में सम्भलने हेतु शिरोमणि कमेटी की सबसे अधिक ज़रूरत है। स. धामी ऐसे अध्यक्ष हैं जो पार्टी के हितों का ध्यान भी रख रहे हैं। परन्तु इस बार एक बड़ा अन्तर यह होने की सम्भावनाएं हैं कि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल शिरोमणि कमेटी के प्रधान के चुनाव के समय कोई बंद ल़िफ़ाफा या पर्ची लिख कर किसी उम्मीदवार की घोषणा नहीं करेंगे, अपितु वह चुनाव से कुछ दिन पूर्व ही पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवार के नाम की घोषणा करेंगे।
इस दौरान इस बात की भी सम्भावना है कि बादल विरोधी अकाली दलों में से ढींडसा गुट तथा भाजपा के निकट गये अकाली गुट भी बीबी जगीर कौर की मदद करेंगे। हालांकि सुखबीर सिंह बादल को अकाली दल की अध्यक्षता से दूर करने की लड़ाई लड़ रहे मनप्रीत सिंह इयाली तथा उनके समर्थक इस लड़ाई में खुल कर कोई भूमिका अदा करते नहीं दिखाई दे रहे। जबकि अन्य बादल विरोधी गुट अभी इस बात का इन्तज़ार करते दिखाई दे रहे हैं कि कहीं अंत में सुखबीर सिंह बादल बीबी जगीर कौर को ही अपना उम्मीदवार न बना लें। परन्तु एक बात स्पष्ट प्रतीत हो रही है कि यदि बीबी जगीर कौर ने पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवार के खिलाफ चुनाव लड़ा तो अधिकतर बादल विरोधी उनका साथ देंगे, परन्तु देखने वाली बात यह होगी कि वह बादल दल जिसका शिरोमणि कमेटी में स्पष्ट बहुमत है, में से कितने शिरोमणि कमेटी सदस्यों को अपने साथ जोड़ने में सफल होते हैं।  
हिमाचल, गुजरात चुनाव तथा ‘आप’
हम समझते हैं कि हिमाचल प्रदेश तथा गुजरात के विधानसभा चुनावों के परिणाम देश की राजनीति की दिशा निर्धारित करने में बड़ी भूमिका अदा करेंगे। ये परिणाम भाजपा तथा कांग्रेस के भविष्य बारे में भी कई संकेत देंगे, परन्तु ये परिणाम आम आदमी पार्टी पर सबसे अधिक प्रभाव डालेंगे। राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि यदि इन दोनों प्रदेशों में आम आदमी पार्टी बहुत पीछे रही तो इसका सबसे अधिक लाभ पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान को होगा और वह हाईकमान के दबाव से काफी सीमा तक निजात पा लेंगे। ऐसी स्थिति में पंजाब के ‘आप’ विधायक भी व्यापक स्तर पर भगवंत मान के साथ जुड़ेंगे, परन्तु यदि इन चुनावों में आम आदमी पार्टी कोई बड़ा करिश्मा कर गई तथा वह उपरोक्त किसी भी प्रदेश में दूसरे स्थान पर भी आ गई तो फिर पंजाब में आम आदमी पार्टी पर हाईकमान की पकड़ और भी मज़बूत हो जाएगी।
परन्तु हैरानी की बात है कि आम आदमी पार्टी जो पहले हिमाचल प्रदेश के चुनाव मैदान में बड़े उत्साह से उतरी थी, अब हिमाचल में उतना उत्साह नहीं दिखा रही, अपितु उसका पूरा ज़ोर गुजरात में लगा हुआ है। पंजाब के विधायकों व चेयरमैनों को गुजरात में चुनाव प्रचार करने के लिए भेजा जा रहा है। ‘आप’ विरोधी यह आरोप भी लगा रहे हैं कि पंजाब सरकार 8 से 10 सीटों का विमान भी किराये पर गुजरात चुनाव में प्रयोग करने के लिए ही ले रही है। कुछ ‘आप’ विरोधी यह आरोप भी लगा रहे हैं कि ‘आप’ सिर्फ विरोधी वोटें बांटने के लिए और भाजपा को लाभ पहुंचाने के लिए ही पूरी रणनीति बना रही है। उनका कहना है कि ‘आप’ ने हिमाचल की जगह गुजरात में चुनाव प्रचार इसलिए अधिक तेज़ किया है, क्योंकि भाजपा के लिए गुजरात, हिमाचल से कहीं ज्यादा महत्व रखता है। परन्तु आम आदमी पार्टी के नेता इन आरोपों को बिल्कुल बेबुनियाद बता रहे हैं और वे तो यह दावा भी करते हैं कि गुजरात के लोग भी पंजाब की तरह सत्तारूढ़ पार्टी भाजपा और मुख्य विरोधी कांग्रेस दोनों से परेशान हो चुके हैं और इस बार वे केजरीवाल व आम आदमी पार्टी को मौका देने के लिए तैयार बैठे हैं। लेकिन यह सवाल सचमुच बहुत दिलचस्प है कि आम आदमी पार्टी ने एकाएक हिमाचल जहां पंजाब का पड़ोसी होने के कारण उनके लिए लड़ना ज्यादा आसान हो सकता था, में दिलचस्पी घटाकर पूरा ज़ोर गुजरात में लगाने का फैसला क्यों किया है?
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