बासमती की काश्त के अधीन रकबा क्यों नहीं बढ़ रहा ?


कृषि एवं किसान भलाई विभाग के निदेशक डा. गुरविन्दर सिंह के अनुसार इस वर्ष पंजाब में बासमती की काश्त 4.5 से 4.75 लाख हैक्टेयर के मध्य रकबे पर हुई है। पूरा अनुमान जब राजस्व विभाग द्वारा जब अंतिम आंकड़े आ गये, उस समय ही लग सकेगा। बासमती किस्मों की कटाई 95 प्रतिशत रकबे पर हो चुकी है और उत्पादन 15 लाख टन को छू गया है। बासमती की अंतर्राष्ट्रीय मांग को देखते हुए और पंजाब में भू-जल का स्तर कम होने के दृष्टिगत जो फसली विभिन्नता योजना के अधीन बासमती की काश्त आवश्यक है, उसके अनुसार बासमती की काश्त के अधीन काफी रकबा बढ़ना चाहिए। बासमती के ब्रीडर तथा आईसीएआर-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान के निदेशक डा. अशोक कुमार सिंह के अनुसार पंजाब में 89 लाख हैक्टेयर पर बासमती की काश्त किये जाने की गुंजाइश है। आल इंडिया राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष तथा एक्सपोर्टर विजय सेतिया के अनुसार रकबा लगभग 7 लाख हैक्टेयर को तो आसानी से छू सकता है। पंजाब की बासमती की विदेशों में अब गुणवत्ता मानी जाती है, जिसकी मांग प्रत्येक वर्ष बढ़ रही है। सन् 2020-21 में 29850 करोड़ रुपये की 46.31 लाख टन बासमती भारत से निर्यात की गई थी। इस वर्ष निर्यात कुछ कम हुआ है। सन् 2021-22 में 26416 करोड़ रुपये की 39.48 लाख टन बासमती का निर्यात हुआ। पंजाब का बासमती निर्यात में योगदान 40 प्रतिशत तक है।  
किसानों को बासमती की दाम बड़ा अच्छा मिल रहा है। हरियाणा में हैडेफ परम्परागत बासमती किस्म को 5500-5600 रुपये प्रति क्ंिवटल निर्यात करने हेतु खरीद रही है। पूसा-1121 किस्म 4200 रुपये प्रति क्ंिवटल बिक रही है जबकि पंजाब में 4300-4400 रुपये प्रति क्ंिवटल दाम किसानों को मिल रहा है। इस किस्म (पी.बी.-1121) का पंजाब में दाम 4800 रुपये प्रति क्ंिवटल से पुन: नीचे आ गया है। पूसा बासमती-1718 किस्म हरियाणा में 3600 रुपये तथा पंजाब में 3900-4000 रुपये प्रति क्ंिवटल बिक रही है। इसी प्रकार पूसा बासमती 1509 किस्म हरियाणा में 3500-3600 रुपये तथा पंजाब में 3700-3800 रुपये प्रति क्ंिवटल बिक रही है। बासमती की आमद मंडी में कम हो रही है। सन् 2019-20 में 25.54 लाख टन बासमती की फसल मंडी में आई थी जो सन् 2020-21 में 18.34 लाख टन रह गई। इस वर्ष और भी कम हो गई। घरेलू खपत के लिए भारत में बासमती की मांग प्रत्येक वर्ष बढ़ रही है। बासमती की मांग बढ़ने तथा इसकी पानी की ज़रूरत कम होने के बावजूद काश्त के अधीन रकबे में कोई खास वृद्धि नहीं हो रही, क्यों? एक तो बासमती का न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं है जिस कारण किसानों को लाभदायक दाम मिलने की उम्मीद नहीं बंधती। दो वर्ष पहले मंडी में बासमती की कीमत बहुत नीचे चली गई थी जिससे किसानों को नुकसान उठाना पड़ा था। न्यूनतम समर्थन मूल्य तय करने की मांग किसानों द्वारा कई वर्षों से की जा रही है परन्तु भारत सरकार इस संबंधी कोई अधिक उत्साह नहीं दिखा रही। न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद न होने पर सेतिया सुझाव देते हैं कि सरकार द्वारा ऐसी नीति बनाई जाये कि एक विशेष कीमत से अधिक कीमत पर खरीदी जाने वाली बासमती की ही निर्यात किया जाए। इससे किसानों को कम से कम कीमत मिलनी सुनिश्चित हो जाएगी और वे अपनी लाभ-हानि देख कर बासमती की काश्त के अधीन रकबा लाने का निर्णय कर सकेंगे।
बासमती की काश्त के अधीन रकबा न बढ़ने का दूसरा कारण बासमती की काश्त में ‘बकाने’ (झंडा रोग) जैसी बीमारी का आना है। बासमती की काश्त बढाने में यह बीमारी एक बहुत बड़ी समस्या है। इसका हमला झाड़ का काफी नुक्सान करता है। आई.सी.ए.आर.-आई.ए.आर.आई. के ब्रीडर और डायरैक्टर डा. अशोक कुमार सिंह कहते हैं कि इस रोग के होने का कारण किसानों द्वारा बीज और पौध की जड़ों का संशोधन न करना है। आम तौर पर किसान बीज को तो संशोधित कर लेते हैं परन्तु पौध की जड़ें बाविस्टन या प्रोवैक्स के साथ ट्रीट नहीं करते। ऐसा करना इस रोग को दूर रखने के लिए बहुत ज़रूरी है। अगेती फसल लगाने वाले किसानों के खेतों में भी इस रोग का हमला ज्यादा देखने को मिलता है। ‘बकाने’ (झंडा रोग) एक फफूंद के साथ लगने वाली बीमारी है। बीमारी वाले बीज का इस्तेमाल करना इस बीमारी का मुख्य कारण है। वैसे तो ऐसी किस्में विकसित करने पर भी ज़ोर दिया जा रहा है जिनको ‘बकाने’ का रोग न आये। पूसा संस्थान द्वारा जो पूसा बासमती -1847, पूसा बासमती-1885 और पूसा बासमती-1886 किस्में पिछले साल ही विकसित की गई हैं। यदि उनके बीज व जड़ों को सही ट्रीट करके बीजा जाए तो इन किस्मों के खेत जहां बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट और भुरड़ रोगों से मुक्त होंगे। ‘बकाने’ की बीमारी भी इन किस्मों के खेतों में नहीं देखी गई।
बासमती की काश्त का खर्च दिन ब दिन बढ़ रहा है। खेत मज़दूर महंगे हो गए हैं। पंजाब सरकार ने 9 पैस्टीसाइडस की बिक्री तथा इन चावलों के लिए इस्तेमाल करने पर रोक लगा दी है। इसके विकल्प कई गुणा महंगे हैं। बासमती की काश्त के अधीन रकबे को बढ़ाने के लिए किसानों को लाभदायक कीमत का मिलना ज़रूरी है। चाहे इस साल कीमत बड़ी लाभकारी मिल रही है, परन्तु इसे सुनिश्चित करने के लिए बासमती किस्म का न्यूनतम समर्थन मूल्य तय किया जाना चाहिए। 
इस समय पंजाब में 20 लाख टन बासमती प्रोसैस करने के लिए मिलों की शक्ति है परन्तु उत्पादन कम होने के कारण दूसरे राज्यों से बासमती पंजाब में आ रही है क्योंकि उन राज्यों में बासमती का दाम किसानों को कम मिलता है। दूसरे राज्यों से बासमती आने में काफी मुश्किल आ रही है। शंभू सीमा पर ट्रकों की लाइनें लगी हुई हैं और इनकी बहुत सख्त चैकिंग हो रही है, परमल धान की आमद रोकने के लिए। परमल धान पंजाब में न्यूनतम समर्थन मूल्य 2046 रुपये प्रति क्ंिवटल सरकार द्वारा खरीदा जा रहा है। जबकि कई दूसरे राज्यों में किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य नहीं मिल रहा। इस लिए वह अपनी धान की फसल को छिप कर पंजाब, हरियाणा में लाकर बेचने के इच्छुक हैं। इसलिए सीमा पर सख्त चैकिंग है जिस कारण बासमती खरीदने और दूसरे राज्यों से बासमती लाकर बेचने वालों को परेशानी हो रही है। समाधान पंजाब में बासमती की काश्त अधीन क्षेत्र बढ़ाने में है। इसका भविष्य उज्ज्वल नज़र आ रहा है।