हरियाणा को चंडीगढ़ में विधानसभा के लिए ज़मीन देने का मामला कांग्रेस वाली गलतियां न दोहराये भाजपा


हरियाणा द्वारा चंडीगढ़ में अपनी अलग विधानसभा बनाने के लिए 10 एकड़ ज़मीन हेतु की जा रही मांग को लेकर पंजाब तथा हरियाणा के मध्य राजनीतिक टकराव एक बार फिर तीव्र होता दिखाई दे रहा है। यह मौजूदा विवाद 19 जुलाई, 2022 को जयपुर में नार्थ ज़ोन कौंसिल की बैठक के दौरान  शुरू हुआ था। इस बैठक में हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने केन्द्रीय गृह अमित शाह से मांग की थी कि चंडीगढ़ में हरियाणा को 10 एकड़ ज़मीन अपनी नई विधानसभा बनाने हेतु दी जाये। हरियाणा का विचार है कि आने वाले समय में हरियाणा में विधानसभा क्षेत्रों का, बढ़ रही जनसंख्या के अनुसार फिर से पुनर्गठन होगा, जिस कारण विधानसभा के वर्तमान 90 क्षेत्रों की संख्या में और वृद्धि होगी। उनके अनुसार ज्यादातर विधायकों के बैठने के लिए चंडीगढ़ में हरियाणा विधानसभा की वर्तमान इमारत में स्थान नाममात्र है। इस बैठक में गृह मंत्री अमित शाह ने हरियाणा की मांग मानने की घोषणा कर दी थी तथा कहा था कि केन्द्र सरकार चंडीगढ़ में हरियाणा को नई विधानसभा हेतु ज़मीन उपबल्ध करवाएगी। 
अपनी इस मांग को और आगे बढ़ाते हुए 19 नवम्बर को हरियाणा विधानसभा के स्पीकर ज्ञान चंद गुप्ता ने पंजाब के राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित जोकि चंडीगढ़ के भी प्रशासक हैं, को मिल कर हरियाणा के मुख्य सचिव द्वारा लिखा पत्र सौंपा है, जिसमें हरियाणा को विधानसभा बनाने के लिए चंडीगढ़ में 10 एकड़ ज़मीन देने की मांग पुन: दोहराई गई है। यह जानकारी भी सामने आई है कि हरियाणा ने मध्य मार्ग के निकट रेलवे स्टेशन के पास 10 एकड़ ज़मीन की निशानदेही की है, जोकि वह नई विधानसभा बनाने के लिए हासिल करना चाहता है। इस ज़मीन के एवज में हरियाणा ने पंचकूला में चंडीगढ़ प्रशासन को 10 एकड़ ज़मीन देने की पेशकश भी की हुई है।
जब से हरियाणा की ओर से चंडीगढ़ में अपनी विधानसभा हेतु ज़मीन हासिल करने की मांग उठाना शुरू की गई है, उस समय से पंजाब की राजनीतिक पार्टियां, शिरोमणि अकाली दल, कांग्रेस तथा आम आदमी पार्टी द्वारा इसका तीव्र विरोध किया जा रहा है (पहले चाहे पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने इस संबंध में एक हास्यस्पद ब्यान दिया था कि पंजाब को भी चंडीगढ़ में नई विधानसभा बनाने के लिए ज़मीन दी जाये परन्तु अब पंजाब सरकार ने अपनी पहुंच में बदलाव कर लिया है) शिरोमणि अकाली दल ने तो नार्थ ज़ोन कौंसिल की जयपुर में हुई बैठक के दौरान जब अमित शाह ने हरियाणा को ज़मीन देने का वायदा किया था, उसके तुरंत बाद ही पंजाब के राज्यपाल को मिल कर अपना विरोध लिखित रूप में दर्ज करवा दिया था। इसके बाद पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष अमरिन्द्र सिंह राजा वड़िंग ने भी आपत्ति जताई थी। अब पंजाब विधानसभा में विपक्ष के नेता प्रताप सिंह बाजवा ने प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी को बाकायदा पत्र लिख कर हरियाणा को चंडीगढ़ में विधानसभा के लिए ज़मीन देने का विरोध किया है तथा स्पष्ट रूप में कहा है कि केन्द्र का ऐसा फैसला आग से खेलने के समान होगा तथा इससे पंजाब में अमन-कानून की खराब चल रही स्थिति और भी खराब हो जाएगी। उन्होंने यह भी कहा है कि चंडीगढ़ पंजाब की राजधानी के लिए ही बसाया गया था तथा इस पर पंजाब का ही अधिकार है। पंजाब भाजपा के नेतृत्व खास तौर पर सुनील जाखड़ ने भी हरियाणा को चंडीगढ़ में विधानसभा के लिए ज़मीन देने का विरोध किया है।
हम इस संबंध में स्पष्ट रूप में केन्द्र की भाजपा सरकार को अपील करना चाहते हैं कि स्थापित परम्परा के अनुसार देश में जब भी राज्यों का पुनर्गठन हुआ है, तो पुरानी राजधानी  पहले प्रदेश के पास ही रही है तथा नये बने प्रदेश ने ही अपनी नई राजधानी बनाई है। इसलिए केन्द्र सरकार को हरियाणा को नई विधानसभा चंडीगढ़ से बाहर बनाने के लिए प्रेरित करना चाहिए। केन्द्र सरकार इसके लिए उसे वित्तीय सहायता भी दे सकती है। हरियाणा की मौजूदा मांग उसकी ज़रूरत से ज्यादा राजनीतिक मांग प्रतीत होती है, क्योंकि वह चंडीगढ़ में ही विधानसभा के लिए ज़मीन लेकर चंडीगढ़ पर अपना दावा मज़बूत करना चाहता है। इस कारण वह पंचकूला में चंडीगढ़ प्रशासन को इसके बदले ज़मीन देने की भी पेशकश कर रहा है। इससे नि:सन्देह हरियाणा तथा पंजाब के मध्य राजनीतिक टकराव बढ़ेगा, जिसका दोनों प्रदेशों को नुकसान हो सकता है।
इस सन्दर्भ में हम केन्द्र सरकार को यह भी स्मरण करवाना चाहते हैं कि उसे पंजाब के नाज़ुक मामलों से निपटते हुए वे गलतियां नहीं करनी चाहिएं, जो इन्दिरा गांधी के नेतृत्व वाली कांग्रेस की केन्द्र सरकार ने की थीं। 1981 में जब दरबारा सिंह प्रदेश के मुख्यमंत्री थे, तब श्रीमती इन्दिरा गांधी ने पंजाब की नदियों के पानी संबंधी पंजाब, हरियाणा तथा राजस्थान के बीच जब्री एक समझौता करवा दिया था तथा इसके आधार पर 8 अप्रैल, 1982 को कपूरी (पटियाला) में सतलुज-यमुना सम्पर्क नहर का नींव पत्थर रख दिया था। इन्दिरा गांधी की इस धक्केशाही वाले कदम की पंजाब में तीव्र प्रतिक्रिया हुई थी। शिरोमणि अकाली दल ने इसका विरोध करते हुये आन्दोलन शुरू कर दिया था। आरम्भ में इस आन्दोलन में सी.पी.एम. भी शामिल थी परन्तु बाद में शिरोमणि अकाली दल ने इस आन्दोलन को दरबार साहिब समूह (अमृतसर) में परिवर्तित करके धर्म युद्ध मोर्चे का नाम दे दिया था। सतलुज-यमुना सम्पर्क नहर के निर्माण के विरोध के अलावा शिरोमणि अकाली दल ने इस धर्म युद्ध मोर्चे की मांगों में पंजाब की कुछ अन्य मांगें भी शामिल कर ली थीं। लम्बी अवधि तक यह धर्म युद्ध मोर्चा चला। इसमें हज़ारों अकाली सत्यग्रहियों ने गिरफ्तारियां दीं। केन्द्र तथा अकाली दल के नेताओं के मध्य कई बैठकें भी हुईं परन्तु कोई समझौता न हो सका। परिणामस्वरूप बाद में यह आन्दोलन हिंसक रूप धारण कर गया। श्री हरिमंदिर साहिब समूह तथा पंजाब में ऐसे हालात बने कि केन्द्र सरकार ने संत जरनैल सिंह भिंडरावालों को हरिमंदिर साहिब समूह में से बाहर निकालने  के बहाने आप्रेशन ब्लू स्टार के नाम पर सैनिक कार्रवाई कर दी। इस सैनिक कार्रवाई के दौरान जो कुछ घटित हुआ तथा इसकी प्रतिक्रिया स्वरूप इन्दिरा गांधी की हुई, हत्या के उपरांत दिल्ली तथा देश के अन्य भागों में जो सिख कत्लेआम हुआ, वह अब इतिहास का हिस्सा है। इसने बुरी तरह से पंजाब  तथा समूचे देश की राजनीति पर गहरा प्रभाव डाला। इस कारण प्रदेश के लोगों को मानवीय तथा आर्थिक रूप में बड़े संताप तथा नुकसान का सामना करना पड़ा। यह पूरा दुखद घटनाक्रम दर्शाता है कि सरकारों को जब्री किसी समाज या किसी प्रदेश पर अपने फैसले नहीं थोपने चाहिएं और यदि समय-समय पर कोई समस्या पैदा होती है तो समय पर बातचीत के ज़रिये न्यायसंगत दृष्टिकोण से मामलों को सुलझाया जाना चाहिए।
इस सन्दर्भ में हम भाजपा की मौजूदा केन्द्र सरकार को भी यह कहना चाहते हैं कि वह हरियाणा को चंडीगढ़ में विधानसभा के लिए ज़मीन देकर पंजाब तथा हरियाणा के मध्य टकराव वाली स्थिति पैदा न करे, जिससे कि पंजाब तथा हरियाणा के फिर से संबंध बिगड़ सकते हैं तथा पंजाब की राजनीतिक तथा सामाजिक स्थिति पर भी विपरीत प्रभाव पड़ सकता है। पंजाब विशेष तौर पर इस समय संकट वाली स्थिति में से गुज़र रहा है। कृषि संकट का शिकार है। इसमें आये अवसान के कारण किसान आत्महत्याएं करने हेतु विवश हैं। नशों का प्रचलन लगातार बढ़ता जा रहा है, तथा सरकारों द्वारा इसे कम करने के यत्न बुरी तरह असफल होते जा रहे हैं। प्रदेश में बेरोज़गारी शिखर पर है, जिस कारण प्लस टू (10+2) के बाद ही युवा विदेशों को पलायन करने हेतु विवश हैं। जो युवा विदेश जाने में समर्थ नहीं हो रहे, उनका एक बड़ा भाग नशे के सेवन, नशा बेचने के साथ-साथ अपराधों की दुनिया में भी प्रवेश करता जा रहा है। देश-विदेश की देश विरोधी ताकतें भी पंजाब के युवाओं को गुमराह करके अपने-अपने उद्देश्यों के लिए इस्तेमाल करने हेतु तत्पर हैं। ड्रोनों द्वारा सीमा पार से आ रहे हथियार तथा नशीले पदार्थ इस बात का प्रमाण हैं। प्रदेश में गैंगस्टरों के उभार के चाहे और भी कई कारण हो सकते हैं परन्तु एक कारण यह भी है कि प्रदेश में जो व्यापक स्तर पर बेरोज़गारी पाई जा रही है, उस कारण भी युवाओं का गैंगस्टर बनने की ओर रुझान बढ़ता जा रहा है। यदि केन्द्र सरकार इस क्षेत्र में अमन, सद्भावना तथा सुरक्षा की स्थिति को मज़बूत करना चाहती है तो उसे पंजाब के मामलों से निपटते हुए अधिक संवेदनशीलता से कार्य करना चाहिए।
बिना देरी चंडीगढ़ पर पंजाब का अधिकार मानते हुये इसे प्रदेश के हवाले करना चाहिए। भाखड़ा ब्यास प्रबन्ध बोर्ड में इंजीनियरों की मनमज़र्ी से योग्यताएं बदल कर जो पंजाब का प्रतिनिधित्व खत्म किया गया है, उसे भी पुन: बहाल किया जाना चाहिए। इसके अलावा पंजाब की कृषि में आई जड़ता को तोड़ने हेतु पंजाब सहित हरियाणा तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लिए नई कृषि नीति तैयार की जानी चाहिए, जिसके द्वारा किसानों को धान की कृषि त्याग कर दालों तथा तेल बीज़ों की कृषि करने हेतु प्रेरित करना चाहिए तथा इसके साथ ही केन्द्र सरकार को दालों तथा तेल बीज़ों का समर्थन मूल्य घोषित करके उस पर खरीद सुनिश्चित बनानी चाहिए। कृषि को लाभदायक तथा स्थिरतापूर्ण बनाने के लिए पंजाब में कृषि आधारित उद्योग भी लगाये जाने चाहिएं तथा इस उद्देश्य के लिए पहाड़ी प्रदेशों की तरह ही स्थापित होने वाले नये उद्योगों को टैक्सों से छूट तथा अन्य सुविधाएं उपलब्ध करनी चाहिएं।
इस तरह के सामूहिक प्रयासों से उत्तर भारत के इस क्षेत्र में अमन तथा सुरक्षा के वातावरण को मज़बूत किया जा सकता है तथा हालात को बिगड़ने से बचाया जा सकता है। हमारा यह भी विचार है कि पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह, सुनील जाखड़ तथा अल्पसंख्यक आयोग के चेयरमैन इकबाल सिंह लालपुरा, जो इस समय तीनों भाजपा के वरिष्ठ नेता हैं, को पहलकदमी करते हुये केन्द्र सरकार के समक्ष पंजाब का केस पूरी गम्भीरता से पेश करना चाहिए तथा पंजाब को इन्साफ दिलाने में अपना बनता योगदान डालना चाहिए। हमने यह इसलिए लिखा है, क्योंकि ये तीनों नेता पंजाब की समस्याओं को अच्छी तरह समझते हैं तथा भाजपा हाईकमान से बात करने में समर्थ हैं। यह स्मरण रखना चाहिए कि यदि पंजाब के हालात पुन: बिगड़ते हैं तो इसका ताप पहले की भांति सभी को झेलना पड़ेगा।