राहुल की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ का संदेश


पिछले 5 माह से राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ की बड़ी चर्चा रही है। इसका एक कारण पार्टी प्रबंधकों द्वारा इसके लिए हर पक्ष से पूरी तैयारी किए जाना था, हर दिन कैसे इसको केन्द्रीय बिंदू बनाई रखना है, उसके लिए भी हर स्तर पर पूरे प्रबंध किये गये थे। इसके दौरान राहुल ने अपना मुख्य लक्ष्य प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ-साथ भाजपा और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को बनाये रखा। इस बात का प्रचार करने पर भी विशेष ध्यान दिया गया कि उक्त विरोधियों द्वारा फैलाई जा रही नफरत और अलहिदगी की भावना के उलट वह देश को जोड़ने और प्यार बांटने की बात कर रहे हैं। हर पड़ाव और हर दिन किन महत्वपूर्ण लोगों ने राहुल के साथ मिलकर चलना है और आम लोगों में से समाज के अलग-अलग वर्गों के कितने लोगों ने उसके साथ कदम मिलाना है, इस बारे भी लगातार पार्टी द्वारा पूरी तैयारी की जाती रही है। इस यात्रा ने जहां राजनीति में राहुल का कद बढ़ाया है, वहीं पहले काफी दिनों से बने उसके नकारात्मक प्रभाव में भी फर्क पड़ा है और यह भी प्रभाव दिया है कि उसकी पहुंच प्रौढ़ हो गई है। इसके साथ ही पिछले लम्बे समय से धरातल में जा रहे कांगे्रसियों और मायूस हुए उनके प्रशंसकों में दोबारा से ऊज़र्ा का संचार हुआ है और राजनीति के तौर पर भी उनके हौसले बुलंद हुए हैं। 
बेशक कांग्रेस ने देश में लम्बा समय शासन किया है परन्तु पिछले एक दशक से देश भर में इसका समूचा प्रभाव गिरता ही गया है। मिसाल के तौर पर कभी बहुत से प्रदेशों में इनकी सरकारें थीं लेकिन इसका स्थान गिरकर दो राज्यों राजस्थान और छत्तीसगढ़ तक ही सीमित होकर रह गया था। अभी तीसरा राज्य हिमाचल प्रदेश इसकी कतार में शामिल हुआ है। वर्ष 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में इसको निराशाजनक हार का सामना करना पड़ा था। देश के आज़ाद होने के बाद यह 543 सदस्यीय लोकसभा में सिर्फ 44 और दूसरी बार 52 सीटों तक ही सीमित रह गई थी। सोनिया गांधी ने लम्बी अवधि तक पार्टी प्रधान बने रहने के बाद दो वर्ष के लिए राहुल को पार्टी प्रधान बनाया था लेकिन वर्ष 2019 में हुई करारी हार के बाद राहुल ने इस पद से त्यागपत्र दे दिया था। उसके बाद भी सोनिया गांधी ने पार्टी पर अपना कब्ज़ा नहीं छोड़ा था बल्कि वह कार्यकारी प्रधान बनी रही थीं। इस स्थिति के कारण पार्टी हलकों में बड़ी निराना पैदा हो गई थी। बहुत से नेताओं ने अपनी यह नाराज़गी खुले रूप में प्रकट करनी शुरू कर दी थी। पार्टी के 23 बड़े नेताओं ने सोनिया गांधी को पत्र लिख कर उनकी कार्यशैली को चुनौती दी थी। यहीं बस नहीं वर्ष 2022 में गुजरात में हुए चुनावों में भी पार्टी कोई अच्छी कारगुज़ारी नहीं दिखा सकी थी। इसके विधायकों की संख्या 77 से 17 तक खिसक गई थी। इससे भी पहले उत्तर प्रदेश में इसका उस समय पूरी तरह सफाया हो गया जब राज्य की 403 सीटों में यह सिर्फ 2 तक की सिमट कर रह गई थी। प्रियंका गांधी ने उस समय इस राज्य में धुआंधार प्रचार भी किया था। इसी प्रकार असम, उत्तराखंड तथा गोवा में हुए चुनावों में भारतीय जनता पार्टी ने पुन: जीत प्राप्त कर ली थी। इस समय के दौरन ही पार्टी के ज्योतिरादित्य सिंधिया, चेतन प्रसाद और आर.पी.एन. सिंह जैसे नेता पार्टी छोड़ गये थे। पंजाब में आम आदमी पार्टी ने गत वर्ष मार्च में हुए चुनावों में इससे सत्ता छीन ली थी। आखिर दो दशकों के बाद सोनिया गांधी को अपने ही वफादार मल्लिकार्जुन खड़गे को अध्यक्ष की कुर्सी पर बिठाना पड़ा था। 
मई, 2022 में राजस्थान के उदयपुर में कांग्रेस ने ‘चिंतन शिविर’ का आयोजन किया था, जिसमें पार्टी द्वारा लोगों के साथ सम्पर्क करने के लिए देश भर में यात्रा करने की घोषणा की गई थी। बाद में इस यात्रा की कमान राहुल को सौंप दी गई। इन निराशाजनक परिस्थितियों में से पार्टी को उभारने के लिए ही यह यात्रा की गई है। इस दौरान राहुल ने साम्प्रदायिक एजैंडे के साथ-साथ बढ़ती महंगाई, बेरोज़गारी तथा कुछ पूंजीपतियों को मोदी सरकार द्वारा देश का खज़ाना लुटाने की भी चर्चा की है। इसी दौरान सोशल मीडिया पर भी राहुल के प्रशंसकों की संख्या में लाखों की वृद्धि हुई है। कांग्रेस ने यह भी यत्न किया था कि इस यात्रा के साथ दूसरी विपक्षी पार्टियों को जोड़ा जाए परन्तु अधिकतर पार्टियों के नेता इस यात्रा के लिए शुभइच्छाएं भेजने तक ही सीमित रहे। इसी प्रकार कांग्रेस ने श्रीनगर में इस यात्रा के समापन समारोह के समय 21 विपक्षी पार्टियों को इसमें शामिल होने हेतु निमंत्रण पत्र भेजा था, परन्तु अधिकतर बड़ी पार्टियों ने इसके प्रति दिलचस्पी नहीं दिखाई। 
परन्तु इसके बावजूद इस यात्रा ने पार्टी में उत्साह पैदा करने के साथ-साथ राजनीतिक मंच पर कांग्रेस बारे एक उम्मीद पैदा की है। परन्तु इसी वर्ष हो रहे विधानसभा चुनावों वाले 9 राज्यों में मिला यह समर्थन किस प्रकार वोट में बदलता है, यह देखा जाना शेष है। इन राज्यों में राजस्थान तथा छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार है। मध्य प्रदेश तथा कर्नाटक दो अन्य बड़े राज्य हैं, जिनमें इसका भाजपा से चुनावी-टकराव होगा। तेलंगाना में भी अभी तक भाजपा का पलड़ा भारी प्रतीत होता है। मेघालय, नागालैंड, मिज़ोरम तथा त्रिपुरा चाहे छोटे राज्य हैं, परन्तु विपक्षी पार्टी के रूप में कांग्रेस को इनमें भी अपना प्रभाव बनाने के लिए बड़ा प्रयास करना होगा। आगामी समय में यात्रा से बने इस अच्छे प्रभाव को राहुल गांधी के नेतृत्व में पार्टी कैसे बनाए रखती है, इसके लिए इसे कड़ी मेहनत की ज़रूरत होगी। 
     

      —बरजिन्दर सिंह हमदर्द