कृषि क्षेत्र को ऋण नहीं आर्थिक सहायता चाहिए
‘हम एमएसपी न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की मांग कर रहे हैं, लेकिन वह किसानों को ऋण के नीचे दबाना चाहते हैं। हमें अपनी फसल का दाम चाहिए, पानी व बिजली सस्ते दामों पर चाहिए, ढेर सारा ऋण नहीं।’ भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) नेता राकेश टिकैत की यह पहली प्रतिक्रिया थी, जब उन्होंने देखा कि किसानों के लिए एमएसपी गारंटी योजना व ब्याज-रहित कृषि ऋण योजना का केन्द्रीय बजट 2023-24 में कोई उल्लेख तक नहीं था। टिकैत की इस समीक्षा से असहमत होना कठिन है, क्योंकि दोनों बजट डॉक्यूमेंट व वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण का भाषण निजी निवेश, स्टार्टअप्स व कृषि क्षेत्र में क्रेडिट (उधार) की ओर झुकता हुआ प्रतीत होता है, बजाय सरकारी खर्च के। इस भाषण से एक दिन पहले यानी 31 जनवरी, 2023 को संसद में पेश की गई आर्थिक समीखा रिपोर्ट 2022-23 में भी यह दिखाया गया था कि कृषि में सरकारी निवेश कम हुआ है कि 2011-12 में 5.4 प्रतिशत से घटकर 2020-21 में 4.3 हुआ, जबकि निजी निवेश लगभग 9.3 प्रतिशत है। आज बजट राजनीतिक की बजाय कॉर्पोरेट हो गया है, इसलिए ऐसा होना स्वाभाविक भी था।
इसमें कोई दो राय नहीं हैं कि पहले कम से कम किसानों का दिल रखने के लिए वित्त मंत्री अपने बजट भाषण में एमएसपी का उल्लेख तो कर दिया करते थे, लेकिन इस बार तो उन योजनाओं को ही बंद कर दिया गया है, जिनसे एमएसपी सुनिश्चित हो सकती थी। इसलिए हैदराबाद स्थित एक किसान संगठन रायथू स्वराज्य वेदिका के सह-संस्थापक किरण विस्सा कहते हैं, ‘किसानों को उनकी फसल के उचित दाम सुनिश्चित करने के संदर्भ में सरकार गंभीर नहीं है।’ गौरतलब है कि सरकार ने 2022 तक किसानों की आय दुगनी करने का महत्वकांक्षी लक्ष्य रखा था। हालांकि इस वायदे पर तो बजट भाषण में पूर्ण शांति थी यानी उसका उल्लेख ही नहीं किया गया, लेकिन दो मुख्य योजनाओं—बाज़ार हस्तक्षेप योजना व मूल्य समर्थन (एमआईएस-पीएसएस) और प्रधानमन्त्री अन्नदाता आय संरक्षण योजना (पीएम-आशा), जिनसे एमएसपी सुनिश्चित किया जाना संभव हो सकता था, में भारी कटौती की गई है। एमआईएस-पीएसएस को तो एक तरह से पूर्णत: अनदेखा किया गया है कि उसका आवंटन 1500 करोड़ रुपये से घटाकर एक लाख रुपये कर दिया गया है, जोकि लगभग 100 प्रतिशत कटौती है। पीएम-आशा योजना के आवंटन को भी एक करोड़ रुपये से घटाकर एक लाख रुपये कर दिया गया है। बहरहाल, प्रधानमन्त्री किसान सम्मान निधि (पीएम-किसान) में आवंटन पहले की ही तरह 60,000 करोड़ रूपये रखा गया है। इस योजना के तहत खेत मालिक किसानों के लिए नकद प्रत्साहन है। ऐसा प्रतीत होता है कि किसान आंदोलन के दबाव में तीन विवादित कृषि कानून वापस लेने के बाद सरकार ने अपना फोकस किसानों से हटाकर मध्य वर्ग, विशेषकर वेतनधारियों को रिझाने की ओर कर दिया है, जोकि भाजपा के परम्परागत मतदाता हैं। शायद इसलिए कि यह 2024 के आम चुनाव से पहले अंतिम पूर्ण बजट है। कृषि के हिस्से में भारी गिरावट देखने को मिली। पिछले साल कृषि के लिए कुल बजट का 3.36 प्रतिशत हिस्सा आवंटित किया गया था, जिसे इस बार के बजट में घटाकर 2.7 प्रतिशत कर दिया गया है। हालांकि अनुमान तो यह था कि बजट में कृषि क्षेत्र को उच्च वरीयता दी जायेगी, लेकिन उसे इस हद तक अनदेखा कर दिया गया है कि सरकार की फ्लैगशिप योजनाओं को भी नाममात्र आवंटन ही दिया गया है।
वित्त वर्ष 2022-23 में कृषि क्षेत्र के लिए रिवाइज़्ड एस्टिमेट्स (आरई) में 1,10,254.53 करोड़ रुपये का आवंटन था, जबकि वित्त वर्ष 2023-24 में इस क्षेत्र के लिए 1,15,531.79 करोड़ रुपये ही रखे गये हैं, जोकि बहुत मामूली इज़ाफा है, मात्र 4.7 प्रतिशत। कृषि शोध व शिक्षा विभाग के लिए भी आवंटन में केवल मामूली वृद्धि की गई है 1,18,913.42 करोड़ रुपये (आरई 2022-23) को बढ़ाकर 1,25,035.79 करोड़ रुपये (2023-24) किया गया है। लेकिन 2022-23 के बजट में जो प्रस्ताव रखा गया था उसकी तुलना में तो यह आवंटन लगभग 7 प्रतिशत कम है। दूसरी ओर कृषि क्षेत्र में निजी निवेश को बढ़ाने के लिए वित्त मंत्री ने अनेक योजनाओं की घोषणा की, जैसे ग्रामीण क्षेत्रों में युवा उद्यमियों द्वारा एग्री-स्टार्टअप्स को प्रोत्साहित करने हेतु ‘एग्रीकल्चर एक्सेरेटर फंड’ की स्थापना। सीतारमण के अनुसार, ‘इस फंड का उद्देश्य किसानों के समक्ष चुनौतियों का समाधान करने के लिए नये व सस्ते विकल्प लाना है। इससे किसानी करने के लिए आधुनिक टेक्नोलॉजी आयेगी, जिससे उत्पादन व लाभ बढ़ेंगे।’
वित्त मंत्री ने अपने भाषण में कृषि के लिए ‘डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्कचर’ का भी उल्लेख किया ताकि किसानों को फसल योजना, क्रेडिट, बीमा, मार्किट इंटेलिजेंस आदि के बारे में उचित जानकारी मिल सके, उनकी समस्याओं का समाधान हो सके। लेकिन दूसरी ओर किसानों का कहना है कि उनके लिए विस्तृत आवंटन करने की बजाय नये फंड्स की घोषणाएं की जा रही हैं, केवल अखबरों में सुर्खियां बटोरने के लिए, क्योंकि इनमें से अधिकतर फंड्स ऋण व क्रेडिट के रूप में ही हैं, जबकि किसानों को ऋण नहीं आय चाहिए। फूड एंड एग्रीकल्चर पालिसी विशेषज्ञ देविंदर शर्मा का कहना है, ‘बजट में किसानों की आय बढ़ाने के मुद्दे को संबोधित नहीं किया गया है। यह बजट मध्य वर्ग व रईसों के लिए है, इसमें कृषि के लिए कुछ नहीं है। यह साफ तौर पर देखा जा सकता है कि कृषि क्षेत्र में निवेश करने का कोई इरादा नहीं है। स्टार्टअप्स बुनियादी तौर पर बिचौलिया हैं और वह स्वयं संकट में हैं । वह इस क्षेत्र को पूरी तरह नहीं संभाल सकते ।
अधिकतर घोषणाएं कृषि व्यापारियों के लिए हैं जोकि किसान नहीं हैं। प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना भी सरकार की फ्लैगशिप योजना है। पिछले साल इसके लिए 15,500 करोड़ रुपये आवंटित किये गये थे, जो आरई में 12,375 करोड़ रुपये रह गये और इस बार के बजट में इसके लिए सिर्फ 13,625 करोड़ रुपये के आवंटन का प्रस्ताव है। शर्मा के अनुसार, इसी वजह से इस बीमा योजना में किसानों की दिलचस्पी नहीं रही। संक्षेप में तथ्य यह है कि सरकार की अधिकतर योजनाएं ये हैं कि किसान सब्सिडी की बजाए ऋण लेकर अपनी आर्थिक स्थिति में सुधार करे, जबकि किसानों को लगता है कि वे इससे उबरेंगे नहीं बल्कि ऋण के बोझ तले दबते जायेंगे।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर