अब गुबारे को लेकर अमरीका व चीन के बीच बढ़ा तनाव
अंततः अमरीकी सेना ने ब् फरवरी, ख्ख्फ् को राष्ट्रपति जो बाइडन के आदेश के बाद अमरीकी आसमान में उड़ रहे चीनी गुबारे को मार गिराया। अमरीकी वायुसेना ने हाई-टेक एफ-ख्ख् रैप्टर एयरक्राट के जरिये दोपहर बाद ख् बजकर फ्- मिनट पर एआईएम-- एस सुपरसोनिक हीट सीकिंग मिसाइल से चीनी गुबारे को शूट कर दिया। अमरीका के मुताबिक यह गुबारा उसकी जासूसी कर रहा था, जबकि चीन का कहना था कि यह मौसम संबंधी आंकड़े एकत्र करने के लिए आसमान में छोड़ा गया था, जो कि दिशा भटक कर अमरीका पहुंच गया। बहरहाल अमरीका इसे चीन की सभी सफाईयों के बावजूद जासूसी गुबारा ही मानता रहा और इसके शूट करने पर अमरीका पर किसी तरह का खतरा न पैदा हो, इसके लिए इसे साउथ कैरोलिना समुद्रतट से करीब -.म् किलोमीटर अंदर अटलांटिक महासागर के ऊपर शूटडाउन किया। अमरीका के इस कदम से चीन तिलमिलाकर रह गया है। चीन के विदेश मंत्रालय ने म् फरवरी, ख्ख्फ् को अपने जारी एक वतव्य में कहा, 'रास्ता भटक गये चीनी गुबारे को मार गिराने के अमरीकी फैसले ने दोनों देशों के राजनायिक रिश्तों में बहुत गंभीर असर डाला है या कहना चाहिए कि रिश्तों को क्षतिग्रस्त कर दिया है।' लेकिन इससे अमरीका कतई सहमत नहीं है। हालांकि चीन के इस गुबारे को अमरीकी वायुसेना ने ब् फरवरी को मार गिराया, लेकिन अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने तो इसे पहले ही मार गिराने का आदेश दे दिया था, लेकिन राष्ट्रपति के इस आदेश के बाद अमरीका के रक्षा मंत्रालय पेंटागन ने राष्ट्रपति से दो दिनों तक इंतज़ार करने के लिए सिफारिश की थी। उसे आशंका थी कि कहीं इस चीनी गुबारे में खतरनाक विस्फोटक न भरे हों, जिससे अमरीका को खतरा पैदा हो। बहरहाल ब्त्त् घंटों के भीतर अमरीकी वायुसेना ने राष्ट्रपति के आदेश के मुताबिक इस गुबारे को शूटआउट करके अमरीका को किसी भी तरह के आशंकित खतरे से बचा लिया। इस पर अमरीकी राष्ट्रपति ने सार्वजनिक रूप से कहा था, 'मैं अपने एविएटर्स को इसके लिए बधाई देता हूं।'
इस मामले में चीन की बातें काफी विरोधाभासी भी हैं। अगर यह गुबारा अपना रास्ता भटक कर अमरीका पहुंचा था तो फिर यह पूरी दुनिया के या खास तौर पर अमरीका के आसमान के मौसम संबंधी आंकड़े यों एकत्र कर रहा था, योंकि हवा में गुबारे के भटकने के लिए कहना तो आसान है, लेकिन यह नहीं भूलना चाहिए कि चीन और अमरीका के बीच दूरी बहुत ज्यादा है। इसलिए महज धोखे से भटक कर कोई गुबारा इतनी दूर नहीं जा सकता॥
हालांकि चीन सही कह रहा है या अमरीका, यह तो मार गिराये गये गुबारे के लगभग स्त्र मील समुद्र के ऊपर फैले मलबे को एकत्र करने और उसकी जांच के बाद ही कुछ स्पष्ट होगा, लेकिन जिस तरह से गत वर्षों में अमरीका और चीन के राजनयिक रिश्ते लगातार बिगड़ते रहे हैं, उसको देखते हुए इसमें कोई दो राय नहीं कि यह फूटा गुबारा इनके रिश्तों को और ज्यादा खराब करेगा। वास्तव में द्वितीय विश्व युद्ध के बाद अमरीका ने दुनिया मंे अगर किसी देश को अपने बराबर का प्रतिद्वंदी समझा था, तो वह पूर्व सोवियत संघ था, लेकिन लगातार सोवियत संघ के विरुद्ध वैश्विक कूटनीति के जरिये अंततः उसने सोवियत संघ को बखेर दिया, उसके बाद से अमरीका ने दुनिया के किसी दूसरे देश को अपना प्रतिद्वंदी समझना ही हेठी मानता है। इसलिए वह चीन की तमाम आर्थिक और औद्योगिक प्रगति के बावजूद उसे दुनिया की एक बड़ी ताकत और खासकर उसको मुकाबला दे सकने वाली हैसियत वाला देश स्वीकार करने को तैयार नहीं है।
जबकि लगभग एक दशक पहले ही दुनिया की सबसे गंभीर समझी जाने वाली आर्थिक पत्रिका 'द इकोनॉमिस्ट' ने घोषणा कर दी थी कि ख्क्वीं शतादी चीन की है और चीन के नेतृत्व में एशिया की है। द इकोनॉमिस्ट के मुताबिक तकनीकी रूप से भले अमरीका दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हो, लेकिन व्यवहारिक रूप में सच्चाई यही है कि तेजी से उभरता चीन अमरीका से कहीं बड़ी आर्थिक ताकत बन चुका है या बनने वाला है। अमरीका को इस तरह की तुलनाएं बहुत चिढ़ाती हैं। लबे समय से दुनिया की एकल महाशति होने का तमगा पाये अमरीका को स्वीकार नहीं है कि चीन उसे किसी भी तरह की वास्तविक या अनुमानित टकर दे। जबकि देखा जाए तो साफ -साफ अमरीका और चीन के आर्थिक रिश्तों में चीन का पलड़ा भारी है। चीन और अमरीका के कारोबार में दोनों देशों की वही स्थिति है, जो भारत और चीन के कारोबार में है।
अमरीका और चीन की बीच जिस तरह लगातार तनाव बना हुआ है, उसको देखते हुए तो यही कहा जा सकता है कि अगर अमरीका को पता भी होता या उसे विश्वास भी हो जाता कि चीन का गुबारा वाकई मौसम संबंधी आंकड़े इकट्ठा कर रहा है, तो भी वह उसे शूट किये बिना नहीं मानता, योंकि इसके बहाने अमरीका को चीन के खिलाफ एक वैश्विक मोर्चाबंदी बनाने में मदद मिलती है। अतः यह देखने वाली बात है कि अमरीकी वायुसेना ने जो चीनी गुबारा मार गिराया है, उसका मलबा कूटनीति में कहां कहां तक फैलेगा?
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