उज्ज्वल भविष्य है बासमती की काश्त का

गत सप्ताह आईसीएआर-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान द्वारा दिल्ली में लगाए गए ‘कृषि विज्ञान मेले’ में अधिक संख्या पंजाब के किसानों की थी, जिनके द्वारा कम समय में पकने वाली पूसा बासमती-1509 के संशोधित विकल्प पूसा बासमती-1847 का बीज लेने के लिए लगी लम्बी कतारों से यह प्रतीत होता था कि इस वर्ष पंजाब में बासमती की काश्त के अधीन रकबे में काफी वृद्धि होगी। किसान नई बासमती किस्मों पूसा बासमती-1847, पूसा बासमती-1885 तथा पूसा बासमती-1886 किस्मों के बीजों की मांग करने के अतिरिक्त बासमती की काश्त संबंधी भी वैज्ञानिकों से जानकारी ले रहे थे। गत वर्ष बासमती की काश्त 4.5 लाख हैक्टेयर से अधिक रकबे पर हुई थी। विशेषज्ञों के अनुसार इस वर्ष  9-10 लाख हैक्टेयर रकबे पर काश्त किये जाने की संभावना है। बासमती की काश्त इस वर्ष काफी बड़े रकबे पर होने की उम्मीद इस लिए भी है क्योंकि बासमती उत्पादकों को बासमती किस्मों की उपज का मूल्य मंडी में लाभदायक मिला। पूसा बासमती-1121 किस्म 5300-5500 रुपये प्रति क्ंिवटल बिकने के बाद आजकल 4800 रुपये प्रति क्ंिवटल तक बिक रही है। पूसा बासमती-1718 तथा पूसा बासमती-1509 का मूल्य भी इस समय मंडी में 4400 रुपये प्रति क्ंिवटल तक है। 
पूसा बासमती-1121 किस्म जिसकी सब किस्मों से अधिक बिजाई की जाती रही है और निर्यात की जाती रही है, इसके संशोधित विकल्प पूसा बासमती-1718 तथा झुलस एवं भुरड़ रोग से मुक्त पूसा बासमती-1885 उपलब्ध हैं। नई किस्मों के चावल पूसा बासमती-1121 की तरह ही लम्बे व पतले बनते हैं। नई किस्म पूसा बासमती-1885 का उत्पादन भी पूसा बासमती-1121 किस्म के मुकाबले अधिक है। कीटनाशकों का छिड़काव भी नाममात्र करना पड़ता है। इस किस्म के बीज की भी मेले में मांग थी चाहे सबसे अधिक मांग नई विकसित पूसा बासमती-1509 के विकल्प पूसा बासमती-1847 के बीज की थी। 
पंजाब के किसान जानते हैं कि भू-जल का स्तर कम होने की बड़ी समस्या है और पूसा बासमती-1847 किस्म पकने में कम समय लेती है और जुलाई के दूसरे पखवाड़े में बिजाई करने से, जब मानसून शुरू हो जाता है, यह बारिश के पानी से भी पक जाती है। झुलस और भुरड़ रोगों से भी मुक्त है। संस्थान के डायरेक्टर एवं उप-कुलपति डा. अशोक कुमार सिंह के अनुसार मेले के उद्घाटन के दिन ही 10 हज़ार से अधिक किसानों (जिनमें अधिक संख्या पंजाब के किसानों की थी) को इस किस्म का 10-10 किलो बीज दिया गया। इससे अगले वर्ष तक राज्य में इस सफल किस्म का पूरी तरह प्रसार हो जाएगा।
चावल की गुणवत्ता एवं सवाद के पक्ष से पूसा बासमती-1401 के विकल्प पूसा बासमती-1886 किस्म की भी मेले में मांग रही। पूसा बासमती-1886 किस्म पकने को कुछ लम्बा समय लेती है, परन्तु इस पर कीटनाशकों का छिड़काव पूसा-1401 किस्म के मुकाबले बहुत कम करना पड़ता है। इस पर ब्लाइट एवं ब्लास्ट बीमारियों का हमला भी नहीं होता।
पूसा बासमती-1121 की तरह ये तीनों किस्में (पूसा बासमती-1847, 1885 तथा 1886) भारत में खपत के अतिरिक्त खाड़ी तथा अन्य दूसरे देशों को निर्यात करने के लिए बड़ी योग्य रहेंगी। पूसा बासमती-1886 के चावल की गुणवत्ता के कारण भारत की मंडी में अधिक मांग रहने की संभावना है। आल इंडिया राइस एक्सपोर्टर्स के पूर्व अध्यक्ष एवं बासमती के प्रसिद्ध एक्सपोर्टर विजय सेतिया ने बताया कि ईरान से काफी बड़ी मात्रा में बासमती के आर्डर आए हैं जिससे अगले वर्ष बासमती की मांग बढ़ेगी और किसानों को लाभदायक मूल्य मिलने की भी उम्मीद है। पंजाब में पैदा की बासमती के राज्य के भौगोलिक इंडीकेटर (जीआई) ज़ोन में होने के कारण विदेशों में मांग है और यह मांग और भी बढ़ेगी क्योंकि नई किस्मों तथा कीटनाशकों के छिड़काव बहुत कम होंगे। इस कारण पंजाब के किसान इस वर्ष बड़े रकबे पर बासमती लगा कर फसली विभिन्नता में सफलता प्राप्त करेंगे, जिससे पानी व बिजली की बचत होगी। 
किसान काफी लम्बे समय से बासमती के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) निर्धारित करने की मांग करते रहे हैं। पूरी उम्मीद है कि इस वर्ष बासमती का खुली मंडी में मूल्य 3000 रुपये प्रति क्ंिवटल से अधिक होगा और धान के मुकाबले (जिसकी पानी की ज़रूरत अधिक है) लाभदायक रहेगा। गत चार दशकों से फसली विभिन्नता के लिए प्रयास किये जा रहे हैं परन्तु सफलता नहीं मिली। बासमती की ये तीनों किस्में किसानों को उपलब्ध होने से बासमती की काश्त का भविष्य फसली-विभिन्नता लाने के पक्ष से उज्वल हो गया।