हिमाचल ने लगाया नदियों के पानी पर सैस पंजाब का दृष्टिकोण क्या हो ?

पंजाब का दृष्टिकोण क्या हो?
तौबा का तकल्लुफ कौन करे,
हालात की नीयत ठीक नहीं।
रहमत का इरादा बिगड़ा है,
बरसात की नीयत ठीक नहीं।
अब्दुल हमीद अदम का यह शे’अर मुझे उस समय याद आया जब मैंने यह समाचार पढ़ा कि हिमाचल प्रदेश सरकार ने पन-विद्युत् परियोजनाओं के लिए उपयोग किये जाते पानी पर सैस नामक टैक्स लगाने का फैसला करते हुए एक अधिसूचना जारी कर दी है। चिन्ताजनक बात यह है कि इसकी सीमा में पंजाब के भाखड़ा ब्यास प्रबन्धक बोर्ड तथा पंजाब स्टेट पॉवर  सप्लाई लिमिटेड के कई पन-बिजली प्रोजैक्ट भी आएंगे। चाहे पंजाब के दो मंत्रियों ने इसका विरोध किया है तथा इसे अनदेखा करने की बात भी की है। परन्तु वास्तव में हिमाचल का यह अध्यादेश पंजाब के लिए किसी समस्या से कम नहीं है। पंजाब को इसके विरुद्ध कानूनी लड़ाई लड़नी ही पड़ेगी, क्योंकि हिमाचल प्रदेश सरकार पंजाब में जारी पन-विद्युत परियोजनाओं पर टैक्स नहीं लगा सकती क्योंकि पंजाब, हिमाचल तथा पंजाब में बहती नदियों का रिपेरियन कानून होने के कारण हकदार प्रदेश है। प्रत्येक वह प्रदेश अन्तर्राष्ट्रीय स्तर से मान्यता प्राप्त तथा भारत में भी प्रमाणित रिपेरियन कानून के अनुसार उस नदियों के पानी का मालिक है, जिस की धरती से वह नदी गुज़रती है तथा अपने उफान के समय उसका नुकसान करती है। इसलिए हिमाचल का पंजाब में किसी तरह भी उपयोग किए जाने वाले नदियों के पानी पर किसी भी प्रकार का कोई टैक्स या सैस लगाने का कोई अधिकार नहीं बनता।
ज़ेहमत को रहमत में बदलें
नि:सन्देह ऊपर से यह स्थिति पंजाब के लिए नई ज़महत दिखाई देती है परन्तु यदि ध्यान से देखा जाए तो इस स्थिति ने पंजाब को अपनी आर्थिक मुश्किलों से निकलने का नया रास्ता दिखा दिया है। पंजाब के लिए यह ज़ेहमत रहमत में बदली जा सकती है। गौतरलब है कि इससे पहले उत्तराखंड तथा जम्मू-कश्मीर भी इस तरह का सैस लगा कर अपने प्रदेशों की पन-विद्युत् परियोजनाओं से कमाई कर रहे हैं। हिमाचल प्रदेश ने सैक्शन 17 (1) के तहत अपने अधिकारों का उपयोग करते यह सैस लगाने के लिए हाइड्रो पॉवर जनरेशन अध्यादेश 2023 जारी किया है। जिससे अब वह 30 मीटर तक के प्रोजैक्टों  से उपयोग किये जाते पानी पर 10 पैसे प्रति घन-मीटर सैस, 60 मीटर तक के पन-बिजली प्रोजैक्टों से 25 पैसे, 90 मीटर तक के प्रोजैक्टों से 35 तथा 90 मीटर से अधिक गहराई या ऊंचाई वाली परियोजनाओं से 50 पैसे प्रति घनमीटर की वसूली कर सकेगा। इस उद्देश्य के लिए वह स्थायी कानून बनाने के लिए विधानसभा में प्रस्ताव भी पारित कर रहा है। इस तरह हिमाचल प्रति वर्ष 1000 करोड़ रुपये के अन्य टैक्स वसूलने के योग्य हो जाएगा।
हालांकि पंजाब के कैबिनेट मंत्री अमन अरोड़ा ने कहा है कि पंजाब सरकार इसका विरोध करेगी तथा पंजाब के वित्त मंत्री हरपाल सिंह चीमा ने इसे पूरी तरह अनदेखा करते हुए कहा है कि हिमाचल क्या करता है उससे हमें कोई मतलब नहीं है।
परन्तु हम समझते हैं कि बिल्ली को देख कर कबूतर की भांति आंखें बंद करने से काम नहीं चलेगा। पंजाब को इसके विरुद्ध रिपेरियन कानून के तहत कानूनी लड़ाई तो लड़नी ही पड़ेगी। नहीं तो हिमाचल पानी के मामले में भविष्य में पंजाब के लिए और नई समस्याएं भी पैदा कर सकता है तथा यह स्थिति खरगोश के गुज़रने से खेत को कोई फर्क नहीं पड़ता जैसी नहीं, अपितु खरगोश के गुज़रने के रास्ते पर पहिया बनने जैसी स्थिति हो सकती है। 
परन्तु यदि पंजाब सरकार  हौसले तथा सूझबूझ से काम ले तो इस ज़ेहमत को रहमत में परिवर्तित कर सकती है, क्योंकि पंजाब स्वयं तो एक रिपेरियन प्रदेश होने के चलते हिमाचल द्वारा लगाए गए सैस से बच सकता है परन्तु हिमाचल की ही तज़र् पर पंजाब अपने टैक्स लगाने के अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए पंजाब के पानी पर टैक्स या सैस लगा सकता है। इसलिए कानून विशेषज्ञों से परामर्श लेकर ऐसा कानून बनाया जा सकता है कि पंजाब की धरती से  होकर जाते पानी जिसके लिए बनाई गई नदियों पर खर्च भी पंजाब ही करता है और ये नदियां नुक्सान भी पंजाब का ही करती हैं, में से गुज़रते पानी पर कोई टैक्स या सैस लगा कर गैर-रिपेरियन प्रदेशों राजस्थान, हरियाणा तथा दिल्ली से वसूली करे। 
वैसे तो पंजाब विधानसभा दो बार, एक बार कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के मुख्यमंत्री होते हुए तथा एक बार प्रकाश सिंह बादल के मुख्यमंत्री होते हुए सरकार को निर्देश दे चुकी है कि इन प्रदेशों से पानी का रायल्टी लेने के लिए कार्रवाई करे, परन्तु अभी तक ऐसा पंजाब की किसी भी सरकार ने नहीं किया। 
हालांकि 29 जनवरी, 1955 को केन्द्रीय सिंचाई एवं ऊर्जा मंत्रालय की जिस बैठक में राजस्थान को 80 लाख एकड़ फुट पानी देने का फैसला किया गया था, उसी बैठक की कार्रवाई के पैरा नम्बर 5 में लिखा गया था कि पानी की कीमत बारे फैसला एक अलग बैठक करके लिया जाएगा, परन्तु आश्चर्य की बात है कि 67 वर्ष बीत जाने के बाद भी वह बैठक किसी ने नहीं बुलाई। जबकि इससे बहुत पहले 1873 में सरहिंद नहर जिसका पानी पटियाला, नाभा, जींद तथा मालेरकोटला रियासतों को दिया गया था, भी बाकायदा कीमत लेकर दिया गया था। विचारणीय है कि यदि पटियाला, नाभा, जींद तथा मालेरकोटला की रियासतें रिपेरियन रियासतें नहीं थीं तो उन्हें पानी की कीमत लेनी पड़ी थी तो राजस्थान, हरियाणा तथा दिल्ली कैसे मुफ्त पानी के हकदार हैं। इसके साथ ही उस समय की विश्व की सबसे बड़ी नदी गंग नदी की उदाहरण भी हमारे सामने है, जो आज राजस्थान का भाग है, परन्तु इस समय यह नदी बीकानेर रियासत के लिए बनाई गई थी। इस गंग नहर में जाते पानी के लिए भी रियॉलटी दी जाती थी। चलो ़खैर, यह आज़ादी से पूर्व की उदाहरणें हैं परन्तु नर्मदा जल विवाद में राजस्थान को चाहे कुछ पानी मिलता है परन्तु नर्मदा पानी विवाद ट्रिब्यूनल ने राजस्थान के दावों को ़गैर-राइपेरियन राज्य होने के कारण ही नहीं माना था।
परन्तु सच यह है कि चाहे पंजाब के पानी की रियॉलटी पर पंजाब का अधिकार है परन्तु जिस तरह समय-समय की केन्द्र सरकारों के रवैये तथा पंजाब के शासकों की लापरवाही के डर ने स्थिति बना दी है, उस कारण पानी की रियॉलटी लेना कोई आसान नहीं। इसके लिए लम्बी लड़ाई लड़नी पड़ेगी, जिसके लिए कितने वर्ष लगेंगे, कुछ कहा नहीं जा सकता। नि:सन्देह यह लड़ाई लड़नी ही चाहिए, परन्तु तब तक शीघ्र लाभ के लिए पंजाब हिमाचल की ओर से पैदा की गई समस्या से सबक लेते हुए अपने टैक्स लगाने के अधिकारों का उपयोग करके नदियों में जाते पानी पर टैक्स लगा कर अपनी बुरी तरह लड़खड़ा रही अर्थ-व्यवस्था को सुधार सकता है तथा इस ज़ेहमत को पंजाब के लिए रहमत में बदल सकता है।
ज़ेहमत जो तुम ने दी हमें मंज़ूर नहीं है,
ज़ेहमत को रहमत तो हम बना के दिखाएंगे।
पंजाब कांग्रेस करे खुलकर विरोध
नि:सन्देह पंजाब की सभी पार्टियों को पंजाब के पन-विद्युत् घरों पर हिमाचल द्वारा लगाए जाने वाले सैस का विरोध करना चाहिए परन्तु क्योंकि हिमाचल में इस समय कांग्रेस की सरकार है इसलिए पंजाब कांग्रेस को अपना पंजाब के प्रति समर्पण साबित करते हुए हिमाचल के मुख्यमंत्री को मिल कर यह सैस पंजाब की पन-विद्युत् परियोजनाओं पर लागू न करने हेतु मनाना चाहिए। नहीं तो याद रखें यह जालन्धर उप-चुनाव में ही नहीं, आगामी 2024 के लोकसभा चुनावों में भी पंजाब कांग्रेस के विरुद्ध एक बड़ा मुद्दा बन जाएगा।
-1044, गुरु नानक स्ट्रीट, समराला रोड, खन्ना
मो. 92168-60000