आवारा पशुओं का ़खौफ

देश की राजधानी दिल्ली में दो सगे मासूम भाइयों को आवारा कुत्तों द्वारा नोंच-नोंच कर मार देने की घटना ने पूरे राष्ट्र के जन-साधारण का ध्यान एक बार फिर बड़ी शिद्दत के साथ आवारा पशुओं एवं खास तौर पर आवारा कुत्तों की बेहद गम्भीर होती जाती समस्या की ओर आकृष्ट किया है। इस वीभत्स और हृदय-विदारक घटना में दोनों मासूम भाइयों में से एक की आयु सात वर्ष और दूसरे की पांच वर्ष बताई जाती है। यह भी इस घटना का एक त्रासद पक्ष है कि बड़े भाई को इन लगभग दस खूंखार कुत्तों ने विगत शुक्रवार को नोंचा जबकि दूसरे छोटे भाई को दो ही दिन बाद रविवार को मार डाला। दोनों बार कुत्तों ने इतने भीषण तरीके से बच्चों को नोंचा कि दोनों का कई जगहों से अंग-भंग हो गया। यह घटना चूंकि दिन-दहाड़े हुई बताई जाती है, अत: बहुत स्वाभाविक है कि इस कारण दहशत का माहौल भी व्यापक रूप से सृजित हुआ। जालन्धर में दसवीं के एक छात्र को परीक्षा देने जाते समय कुत्तों द्वारा नोंच लेने की घटना को अभी एक ही दिन हुआ है।
आवारा खूंखार कुत्तों द्वारा इस प्रकार बच्चों को नोंच-नोंच कर मार देने की मौजूदा घटना नई बेशक हो, परन्तु आवारा पशुओं और कुत्तों के कारण होने वाली इस प्रकार की घटनाओं और मौतों को लेकर उत्तर भारत और खासकर पंजाब में चिरकाल से दुहाई दी जाती आ रही है। अभी पिछले मासांत में ही फगवाड़ा में आवारा पशु के कारण हुई एक भीषण सड़क दुर्घटना में दो लोगों की मौत हो गई थी। एक रिपोर्ट के अनुसार पंजाब की सड़कों पर लगभग डेढ़ लाख आवारा पशु हर समय घूमते पाये जाते हैं। आवारा जानवरों में बेसहारा गायों और नकारा बैलों की समस्या पहले केवल गांवों तक ही देखी-सुनी जाती थी किन्तु अब तो शहरों में भी आवारा गायें बड़ी संख्या में इधर-उधर घूमते और कूड़े-कचरे में मुंह मारते देखी जा सकती हैं। गांवों में विचरण करते सांड अब आबादी और आवासीय क्षेत्र बढ़ने से शहरों में भी उत्पात मचाने लगे हैं, और कई बार इनकी आपसी लड़ाई के कारण लोगों की मृत्यु तक हो जाने की सूचनाएं भी मिलती रही हैं। सांडों की आपसी लड़ाई की ताज़ा-तरीन घटना गत दिवस पिंजौर में देखने को मिली जहां एक मासूम 6 वर्षीय बच्ची एक सांड के पांवों तले कुचल कर मारी गई। इनके उत्पात के कारण जन-सम्पत्ति को नुक्सान होने की घटनाएं तो अनगिनत होती रहती हैं। आवारा पशुओं के कारण बड़ी सड़कों और यहां तक कि राष्ट्रीय मुख्य मार्गों पर भी दुर्घटनाएं होती रहती हैं। इनमें से कई तो गम्भीर किस्म की हो जाती हैं जिनमें से जान और माल का बड़े स्तर पर नुक्सान भी हो जाता है। मुख्य मार्गों पर रात्रि-काल में वाहनों की गति अधिक रहती है, और अक्सर दिन के विपरीत रातों को रोशनी कम होने से भी दुर्घटनाओं की स्थितियां एवं अवसर बढ़ जाते हैं। 
ग्रामीण मुआशिरे में कृषि के अधिकाधिक आधुनिकीकरण होते जाने से एक ओर जहां बैलों और सांडों की बहुतायत हुई है, वहीं डेयरी उद्योग के प्रसार से दूध न दे पाने वाली गायों को खुला छोड़ देने की बढ़ती घटनाओं के कारण भी आवारा घूमने वाले पशुओं की संख्या बढ़ी है। गांवों के बढ़ते शहरीकरण और रिहायशी क्षेत्रों की सीमा सुदूर खेतों तक पहुंच जाने से मृत पशुओं के लिए बनी हड्डा रोड़ियों के मानवीय आबादी के भीतर तक आ जाने से कुत्तों की संख्या और उनकी खूंखारता भी बढ़ी है। ऐसे कुत्ते केवल बच्चों पर ही हमला नहीं करते अपितु युवाओं और व्यस्क लोगों को भी शिकार बनाने लगे हैं। संगरूर, अमृतसर और फाज़िल्का में पिछले दिनों एक साथ ऐसी तीन-तीन घटनाएं होने की सूचना मिली है जहां युवा तक आवारा कुत्तों का शिकार बने। शहरों की सब्ज़ी मंडियों और कूड़ा-कचरे के पहाड़ भी आवारा पशुओं और कुत्तों की नर्सरियां बनते हैं। अक्सर इन केन्द्रों पर आवारा पशु कूड़े के ढेरों पर मुंह मारते दिख जाते हैं।
आवारा पशुओं और खूंखार कुत्तों की समस्या देश के अन्य प्रांतों और क्षेत्रों में भी पाई जाती है, किन्तु कृषि-प्रधान और सम्पन्न राज्य होने के कारण पंजाब में यह समस्या कुछ अधिक ही विकराल और गम्भीर हुई दिखाई देती है। पंजाब में इस समस्या के प्रति प्रत्येक समय की सरकार के काल में चेताया जाता आ रहा है, किन्तु अक्सर सरकारें इस अति गम्भीर हो गई समस्या को लेकर कन्नी काटते दिखाई देती हैं। मौजूदा सरकार से भी इस समस्या को लेकर किसी प्रकार की बड़ी योजनाबंदी की आशा और अपेक्षा नहीं की जा सकती क्योंकि अभी तक के उसके क्रिया-कलाप में इस समस्या के प्रति कभी कोई बात नहीं सुनी गई।  आवारा पशुओं के कारण होने वाली दुर्घटनाओं और कुत्तों द्वारा लोगों को काटे जाने की घटनाएं इस सीमा तक बढ़ी हैं कि उच्च न्यायालय तक ने इस सरकार से स्पष्टिकरण मांगा है कि अब तक उसने ने इस मुद्दे पर क्या कार्रवाई की है। पंजाब में कुत्तों के काटने की घटनाएं विगत वर्ष से प्रति मास 13700 से अधिक तक पहुंच गई हैं। पंजाब के पशु-पालन मंत्री ने बेशक प्रदेश में आवारा पशुओं हेतु शैल्टर होम बनाने और आवारा कुत्तों की नसबंदी किये जाने की योजनाएं बनाये जाने का संकेत दिया है, किन्तु प्रदेश के अपस्तालों में एंटी-रैबीज़ टीकाकरण की कमी से स्थिति निरन्तर गम्भीर बनी हुई है। हम समझते हैं कि सरकारों को आवारा पशुओं और खासकर आवारा कुत्तों की समस्या को रोकने के लिए गम्भीरता से योजनाबंदी किये जाने की बड़ी आवश्यकता है। कुत्तों की नसबंदी के पुराने कार्यक्रमों को फिर से शुरू किया जाना चाहिए। दिल्ली की घटना ने इस समस्या की गम्भीरता को एक बार फिर सामने ला खड़ा किया है, अत: सरकारों खास तौर पर पंजाब सरकार को इस धरातल पर अवश्य कोई ठोस योजनाबंदी तैयार करनी चाहिए। आवारा पशुओं के लिए आश्रय-गृह बनाना और खासकर गौ-शालाओं की संख्या बढ़ाया जाना भी इस समस्या का सही हल हो सकता है। हम समझते हैं कि खास कर पंजाब की सरकार जितनी शीघ्र इस ओर ध्यान देगी, उतना ही प्रदेश के लोगों के जान-माल के हित में होगा।