पहली वैक्सीन के बाद भी काबू में नहीं है मलेरिया

 

करीब 34 सालों के अथक प्रयास और पश्चिमी देशों की उदारतापूर्वक आर्थिक सहायता के बाद साल 2021 में मलेरिया के निर्मित पहले टीके को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इस्तेमाल की मंजूरी दी थी। हालांकि इसके शुरुआती इस्तेमाल की सिर्फ तीन देशों के लिए सिफारिश हुई, केन्या, घाना, मलावी। लेकिन इसके इस्तेमाल के बाद भी, अभी भी वह चमत्कारिक राहत नहीं मिली, जिसका इंतजार दुनिया को दशकों से है। विशेषज्ञों द्वारा हमेशा कहा जाता रहा है कि टीका बनने के बाद मलेरिया वैसे ही गायब हो जायेगा, जैसे चेचक और पोलियो गायब हो चुके हैं। शायद ऐसा हो भी। लेकिन फिलहाल तो इस टीके के करीब डेढ़ सालों के इस्तेमाल के अनुभव से यही निष्कर्ष निकलते हैं कि अभी इससे चमत्कारिक राहत पाना एक सपनाभर है।
वास्तव में आज भी मलेरिया दुनिया के लिए खतरा बना हुआ है, क्योंकि सिर्फ अफ्रीका में हर साल 20 करोड़ लोगों को मलेरिया होता है और इनमें से करीब 4 लाख लोग दम तोड़ देते हैं। 7 अक्तूबर 2021 को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने दुनिया की पहली मलेरिया वैक्सीन को इस्तेमाल के लिए मंजूरी दी थी। हालांकि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने खुद खुलासा किया था कि इसकी सफलता दर महज 30 प्रतिशत है। लेकिन इतने कम सक्सेज रेट के बावजूद मलेरिया की यह पहली वैक्सीन ‘मॉस्कीरिक्स’ एक बड़ी उपलब्धि थी। इसका प्रारंभिक निर्माण 1987 में हो गया था। इसे ब्रिटिश दवा कंपनी ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन ने बनाया है। सबसे बड़ी बात यह है कि इससे अफ्रीका में और अफ्रीकी वैज्ञानिकों ने ही विकसित किया है। टीकाकरण के चलते मॉस्कीरिक्स की चार खुराकें लेनी होती हैं। लेकिन इसकी सबसे बड़ी कमी यह है कि यह चार महीनों में ही असरहीन हो जाती है। लेकिन एक अच्छी बात यह है कि इसके साइडइफेक्ट बहुत कम है। विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक किसी वैक्सीन का सक्सेज रेट 70 प्रतिशत से ज्यादा नहीं होता, तब तक उसका प्रभाव नहीं दिखता। मॉस्कीरिक्स को मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन की आर्थिक मदद के चलते निर्मित किया गया है। 3.5 दशक पहले जब इस टीके की निर्माण प्रक्रिया शुरु हुई थी, तभी से मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन इस प्रयास को फंड करता रहा है, लेकिन अब उसने आगे इस कार्यक्रम के लिए मदद देने से इंकार कर दिया है। हालांकि उसके निर्णय की कार्यक्रम से जुड़े वैज्ञानिकों ने निंदा की है, लेकिन ध्यान से देखा जाए तो यह फैसला गलत नहीं है। आखिर कितने दिनों तक किसी परोपकार को सहायता मिलती रहेगी? कभी न कभी तो लोगों को अपने पैरों पर खड़ा होना होगा।
वैसे मलेरिया के विरूद्ध यह अकेली जंग नहीं है। दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में मलेरिया के विरूद्ध अपने ढंग से लड़ाई लड़ी गई है और जीती भी गई है। एक साल पहले चीन भी मलेरिया से एक जंग लड़कर उसे अपने यहां से बाहर कर चुका है। डब्ल्यूएचओ द्वारा मलेरिया से मुक्त घोषित होने वाला चीन दुनिया का 40वां देश है। चीन को इसके लिए 70 साल से ज्यादा संघर्ष करना पड़ा है। 1940 में चीन में लगभग 3 करोड़ लोग मलेरिया से पीड़ित हुए थे, तभी चीन की तत्कालीन सरकार ने मलेरिया को जड़ से मिटाने और उसे नियंत्रित करने की शुरुआत कर दी थी। अगले कई दशकों तक चीन में जबरदस्त मलेरिया रोधी अभियान चले। 1967 में मलेरिया के लिए पहली बार एक वैज्ञानिक कार्यक्रम बना, जिसके चलते आर्टिमिसिनिन नामक एक ऐसे मैडीकल ट्रीटमेंट की खोज हुई थी, जिससे मलेरिया का इलाज संभव था। लेकिन पूरी तरह से मलेरिया खत्म होने में बहुत लंबा समय लिया। 1990 के दशक में चीन में मलेरिया के हर साल 3 करोड़ से ज्यादा होने वाले केस घटकर 11 लाख रह गये थे और मौताें में भी करीब 95 प्रतिशत गिरावट आयी थी। लेकिन बड़ी सफलता चीन को तब मिली, जब साल 2003 के बाद इसके वार्षिक केस 5000 तक सिमट गये। फिर इसके खिलाफ बड़ी तीखी कार्यवाई करके चीन ने मलेरिया से मुक्ति पा ली और इसकी पुष्टि भी विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कर दी।
लेकिन पूरी दुनिया इतनी भाग्यशाली नहीं है। आज भी हर साल करोड़ों लोगों को मलेरिया होता है। साल 2019 में 22.9 करोड़ मलेरिया के मामले दर्ज हुए थे और इनमें 95 प्रतिशत मामले अकेले अफ्रीकी देशों में सामने आये थे। मलेरिया के वैक्सीन के प्रारंभिक इस्तेमाल के बाद ही दुनिया में कोरोना संकट आ गया था। जिस कारण संक्रमण कालीन समस्याओं को लेकर खूब रिसर्च हुए। इससे भले कोविड का कोई सबसे कारगर टीका सामने न आया हो, लेकिन कोविड के बहाने जब गहन अनुसंधान शुरु हुआ तो मलेरिया जैसे अनुसंधानों को भी फायदा मिला है और आज मलेरिया का टीका कुछ नये प्रयोगों के बाद पहले से कहीं ज्यादा कारगर है। उम्मीद पर दुनिया टिकी है और उम्मीद है कि साल 2025 तक मलेरिया का 80 प्रतिशत से ज्यादा प्रभावशाली टीका विकसित कर लिया जायेगा। लेकिन जब तक ऐसा नहीं होता सावधानी ही सुरक्षा है। हमें खुद को मच्छरों को काटने देने से हर हाल में बचाना होगा।      

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर