हिमालय पर्वत, गूगल और मोबाइल 

मैं तथा मेरी पत्नी अपनी भतीज बहू जसदीप की गाड़ी में कालका-शिमला मार्ग पर जा रहे थे और हमारे साथ हमारा पोता उदय भी था। अचानक मेरी पत्नी ने उदय से पूछा कि विश्व की सबसे अधिक आयु की पहाड़ी कौन-सी है। हम यह तो जानते थे कि विश्व की सबसे ऊंची चोटी माऊंट एवरेस्ट  हिमालय पर्वत का हिस्सा है और इसकी ऊंचाई 25000 फुट है, परन्तु यह नहीं पता था कि हमारा यह पर्वत कितना पुराना है। जसदीप ने अपने बेटे को कहा कि वह गूगल देख कर उत्तर दे। उदय ने अपने मोबाइल फोन वाले गूगल से पूछा तो पता चला कि सबसे ऊंची चोटी वाला हिमालय सभी पर्वतों से कम आयु का है। यह सिर्फ 40-50 हज़ार पहले अस्तित्व में आया। सबसे बड़ी आयु वाला पर्वत रूस में है। इसका नाम यूर्लजु है।
मोबाइल में इतनी जानकारी है कि आदम का पुत्र सोच भी नहीं सकता। इसने यह भी बताया कि कश्मीर से असम तक फैली हिमालय पर्वत शृंखला भारतीय उप-महादीप को मध्य एशिया तथा तिब्बत की पठार से अलग करती है। इस शृंखला की कुल लम्बाई 2400 किलोमीटर है तथा यह भारत, नेपाल, तिब्बत, भूटान, अफगानिस्तान तथा पाकिस्तान 6 देशों की सीमाओं को छूहती है तथा इसकी नदियों में यांग तेज सहित सिंध, गंगा तथा ब्रह्मपुत्र ही नहीं सतलुज, ब्यास, रावी, चिनाब तथा जेहलम भी शामिल हैं। 
अगले दिन कांग्रेस नेता राहुल गांधी अम्बाला के गुरुद्वारा मंजी साहिब में माथा टेक कर तथा वहां लंगर हाल में चाय पीकर इसी मार्ग पर शिमला को गया तो उसकी सवारी ट्रक थी और वह ट्रक चालक के साथ अगली सीट पर बैठ गया। हमें यह नहीं पता कि उसके साथ भी उदय जैसा नौजवान विद्यार्थी था जो गूगल वाली जानकारी उसे देता। शायद राहुल को भी मोबाइल से पूरी जानकारी निकाली आती होगी? वैसे यहां ट्रकों वाले ही उसके लिए गूगल थे। 
केहर शरीफ का चले जाना
पंजाब में सभी कम्यूनिस्ट गतिविधियां त्याग कर केहर शरीफ 35-40 वर्ष से जर्मनी में रह रहा था। मेरे सहपाठी तथा समान आयु के स्वर्ण सिंह भंगू का परिवार भी तभी से जर्मनी के हेमबर्ग शहर में रह रहा है। मैं जब भी वहां जाता केहर शरीफ को मिल कर आता। वह भी यहां आता तो मुझे मिले बिना नहीं जाता। अब वह चला गया है और मेरे मामा को अलविदा कहे भी एक वर्ष होने वाला है। उन दोनों की यादें ही रह गई हैं। केहर शरीफ को उसके पत्रकार भाई शाम सिंह ने इस प्रकार याद किया है : 
पढ़ गढ़ के ऊच्चे सिर सदा तुरिया 
लोड़ रही ना कोई सहारियां दी
हुण लभणा नहीं केहर शरीफ किधरे 
चाहे भों गारो बलख बुखारियां दी
मस्सा रंघड़ के सोधकों की बात  
जब किसी अढ़ाई-तीन सौ साल पुराने साके की बात होती है तो पाठकों की प्रतिक्रिया से कुछ बातें स्पष्ट होती हैं और कुछ को मिथिहासिक रंग चढ़ा मिलता है। इन दिनों में मेरा एक लेख बाबा महिताब सिंह के गांव मीरां कोट तथा भाई सुक्खा सिंह के गांव माड़ी कंबोके के सिजदे के बारे प्रकाशित हुआ तो दो बातें स्पष्ट हुईं। 
पहली बात का संबंध महिताब सिंह के बेटे राय सिंह द्वारा खन्ना-संघोल मार्ग पर पड़ते बडल, बडले का कोटला, सैदपुरा, भड़ी तथा भड़ी का कोटल गांवों को दिये महत्व से है भंगुओं की चढ़त वाले गांव। मुझे गुरदेव सिंह सिद्धू की फोन काल से पता चला कि इन गांवों को सरदारी बख्शने वाला बाबा महिताब सिंह का बेटा राय सिंह था। आगे जिसके बेटे रत्न सिंह भंगू ने ‘पंथ प्रकाश’ जैसे अमूल्य ग्रंथ की रचना की थी। यह समय सिख मिसलों की चढ़त का था। सरहिंद पर पुन: कब्ज़ा करने का। 
इसमें किसी सीमा तक जस्सा सिंह आहलुवालिया की चढ़त का भी हस्तक्षेप था। 
दूसरी बात का संबंध बाबा महिताब सिंह तथा भाई सुक्खा सिंह द्वारा हरिमंदिर साहिब की बेअदबी करने वाले मस्सा रंघड़ का सिर काटने के लिए बीकानेर से बुड्ढ़ा जौहड़ से अमृतसर जाने तथा पुन: लौटने में लगे समय से है। मेरी जानकारी के अनुसार आने-जाने से सफर तथा हरिमंदिर साहिब वाली कार्रवाई में सात-आठ दिन लगे थे। मुझे टैलीफोन करके सोधने वाले एक सज्जन ने यहां तक कहा कि जिस दिन दोनों योद्धा बुड्ढा जौहड़ से घुड़ सवार होकर चले तो उस समय वहां अखंड पाठ रखवाया गया था। यह भी कि चलते समय दोनों शूरवीरों ने संगत को संबोधिक करते हुए कहा था कि वे मस्से रंघड़ का सिर काट कर भोग पड़ने तक पहुंच जाएंगे। यदि न पहुंचे तो उनका इन्ताज़र न करना, वे शहीद हो चुके होंगे। मेरे लिए यह बात माननी कठिन है। पाठ तो रखवाया हो सकता है। इसके साथ अखंड की बंदिश कथाकारों ने जोड़ ली प्रतीत होती है।