बांस का एक समूह हर साल 70 टन से ज्यादा ऑक्सीजन बनाता है

बांस धरती में सबसे बड़ा कुदरती वायु शोधक है। भले मूलरूप से यह एक घास का पौधा हो, लेकिन अपनी कठोर काष्ठीय संरचना के कारण यह लोगों के बीच पेड़ होने का आदर पाता है। बांस की कई प्रजातियों की लकड़ी इतनी कठोर होती है कि उन पर कुल्हाड़ी मारने से कुल्हाड़ी की धार उलट जाती है। बांस को आमतौर पर एक समूह में देखा और गिना जाता है। जिसे कुछ जगहों पर ‘बांस की कोठी’ भी कहते हैं। आमतौर पर बांस की एक कोठी में 20-25 से लेकर कई सौ तक बांस होते हैं। बांस की एक कोठी जो औसतन 40-50 बांसों से मिलकर बनी हो, सालभर में कम से कम 70 टन ऑक्सीजन का उत्पादन करती है और हर साल करीब 80 टन कार्बन डाईऑक्साइड को अवशोषित करती है। अपनी ऑक्सीजन बनाने की क्षमता और कार्बन डाईऑक्साइड अवशोषित करने की ताकत के चलते ही बांस इस ग्लोबल वार्मिंग के दौर में बहुत महत्वपूर्ण हो गया है।
ऑक्सीजन बनाने के अपने इसी विशेष गुण के कारण बांस पर्यावरण का सबसे बड़ा शुभचिंतक है। आमतौर पर 30 से 150 फुट तक लंबा और चौथाई इंच से लेकर एक फुट तक चौड़ा बांस के पेड़ को अगर काटा न जाए तो यह प्राकृतिक तौर पर करीब 120 साल तक जीवित रहता है और यह पूरी उम्र दूसरे पेड़ों तथा पेड़ समूहों के मुकाबले 35 प्रतिशत तक ज्यादा ऑक्सीजन उपलब्ध कराता है। बांस एक ऐसा पेड़ या वनस्पति है, जिसकी वृद्धि चमत्कारिक होती है। कई बार तो यह एक दिन में 1 से 1.2 मीटर तक बढ़ जाता है। दुनिया में बांस की जो प्रजाति सबसे तेज़ रफ्तार बढ़ती है, वह उष्णकटिबंधीय विशाल बांस डेंड्रोकलामस एस्पर है। इसकी वृद्धि दूसरे पेड़ पौधों के मुकाबले हैरान करने वाली होती है। बांस का वैज्ञानिक नाम बंबुसा वल्गरिस है। 
बांस आमतौर पर घने जंगलों में उगता है, जहां निचले स्तर पर रोशनी नहीं होती। चूंकि हर पौधे को जीवित रहने के लिए सूर्य के प्रकाश की ज़रूरत होती है, क्योंकि सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में ही ये अपनी हरी पत्तियों में मौजूद क्लोरोफिल तथा पानी की मदद से ग्लूकोज बनाते हैं। इस प्रक्रिया में ये कार्बन डाईऑक्साइड को सोखते हैं तथा ऑक्सीजन को छोड़ते हैं। पेड़ पौधों के भोजन बनाने की प्रक्रिया को प्रकाश संश्लेषण कहते हैं। दुनिया में बांस का सबसे ज्यादा उत्पादन चीन में और दूसरे नंबर पर भारत में होता है। भारत में हर साल करीब 1.35 करोड़ टन बांस का उत्पादन होता है। इस मामले में देश का उत्तर पूर्वी क्षेत्र बेहद सम्पन्न है। देश का 65 प्रतिशत और दुनिया का करीब 20 प्रतिशत बांस यहीं पैदा होता है। अगर राज्य की दृष्टि से देखें तो भारत में सबसे ज्यादा बांस उत्पादन करने वाला राज्य मिजोरम है। यहां करीब 1.5 करोड़ हेक्टेयर क्षेत्र में बांस की खेती होती है। मिजोरम के अलावा भारत में बांस उत्पादन की दृष्टि से महत्वपूर्ण राज्य हैं- अरुणाचल प्रदेश, असम, मेघालय, नागालैंड, मणिपुर व त्रिपुरा। वैसे देश के अन्य राज्यों और क्षेत्रों में भी बांस का छुटपुट उत्पादन होता है, लेकिन सबसे ज्यादा बांस उत्तर पूर्व के राज्यों में ही पैदा किया जाता है।
भारत में माना जाता है कि बांस की उत्पत्ति महाकौशल इलाके के गोंडवाना क्षेत्र में हुई है। कहा जाता है कि यहां डायनासोर के जमाने में भी बांस विद्यमान था। धारण यह भी है कि बौद्ध धर्म के चलते ही बांस भारत से विदेशों में गया। इसीलिए दुनियाभर में 1000 से 1500 तक बांसों की किस्मों के बावजूद इसका जन्म स्थान भारत माना जाता है। वैसे बांस को अब फॉरेस्ट्री ग्रुप से हटाकर ग्रास की श्रेणी में रख दिया गया है। बांस के विकास और इसके बहुउद्देशीय उत्पादों के विस्तृत बाज़ार के लिए नेशनल बांस मिशन परियोजना शुरु की गई है। इसी के तहत कई प्रदेशों में किसानों को 100 से 120 रुपये तक प्रति बांस सब्सिडी दी जाती है। एक बार बांस लगा लेने के बाद यह 70 सालों तक आमदनी का बढ़िया जरिया रहता है। एक एकड़ में करीब 330 बांस के पौधे लग जाते हैं और आमतौर पर बांस का एक पौधा नर्सरी से 40 से 50 रुपये तक में मिलता है। व्यवसायिक रूप से किसानों के लिए बांस की सबसे फायदेमंद प्रजाति बैंबूसा टोल्डा और बैंबूसा न्यूटन होती है। 
बांस साल में तीन मौसम में लगाया जा सकता है- जनवरी-फरवरी, जुलाई-अगस्त और अक्तूबर-नवम्बर। बांस की फसल आमतौर पर आपदाओं से बची रहती है। बांस किस तरह दुनिया के हर इलाके में लगाया जा सकता है, इसका एक ऐतिहासिक उदाहरण यह है कि माना जाता है कि जिस हिरोशिमा और नागासाकी में अमरीका ने परमाणु बम गिराकर सारी वनस्पतियां नष्ट कर दी थी, उस जगह बांस परमाणु बम गिराने के महज 37वें दिन उग आया था। 


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