बासमती के निर्यात का उज्ज्वल भविष्य 

भारी बारिश उपरान्त 9-10 जुलाई के बाद 6.25 लाख एकड़ रकबे में धान की फसल बाढ़ के पानी से प्रभावित होने तथा दो लाख एकड़ से अधिक रकबे के बिल्कुल बर्बाद होने के बावजूद धान की 31 लाख हैक्टेयर से अधिक जिसमें 6 लाख हैक्टेयर पर बासमती की बिजाई भी शामिल है, होनी सुनिश्चित हो गई है। यह प्रकटावा कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के डायरैक्टर डा. गुरविन्दर सिंह ने ‘अजीत समाचार’ के साथ बातचीत करते हुए किया। उन्होंने कहा कि किसान  खराब हुई फसल वाले रकबे पर बासमती की किस्में दोबारा लगाने हेतु बड़े उत्साहित हैं। 
अधिकतर किसान पूसा बासमती 1847 जो झुलस एवं तुरड़ रोग से मुक्त है और पकने को कम समय लेती है, लगाने के लिए उत्सुक हैं परन्तु उन्हें इसकी पौध बनाने के लिए बीज उपलब्ध नहीं हुआ और न ही कहीं से पौध मिल सकी है। वे अब ज़्यादा पी.बी.-1509 किस्म ही दोबारा लगा रहे हैं। यह भी पकने को लगभग 120 दिन ही लेती है। उनमें से अधिकतर धान की कम समय में पकने वाली पी.आर.-126 किस्म भी नहीं लगाना चाहते, क्योंकि बासमती से उन्हें अधिक आय होने की उम्मीद है। पिछले वर्ष उन्हें बासमती किस्मों का अच्छा दाम मिला था। आल इंडिया राइस एक्सपोर्ट्स एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष तथा बासमती किस्मों के प्रसिद्ध निर्यातक विजय सेतिया कहते हैं कि बासमती की मांग 10 प्रतिशत से अधिक दर से बढ़ रही है और ईरान, सऊदी अरब, इराक, यमन, यूएई तथा अमरीका से बासमती की सप्लाई के आर्डर आ रहे हैं। आयात करने वाले देशों ने तुरंत आर्डरों का भुगतान करने के लिए कहा है। जो बासमती सितम्बर-अक्तूबर में भेजी जानी थी, वह अब भेजने के लिए कह रहे हैं। उन्हें आशंका है कि कहीं भारत सरकार चावल की भांति बासमती के निर्यात पर भी रोक न लगा दे। भारत सरकार ने सफेद चावल का निर्यात भी बंद कर रखा है। इससे पहले इसने गेहूं के निर्यात पर रोक लगाई थी। 
चावल के निर्यात में उछाल आने से भारत में भी बासमती चावल की कीमत बढ़ गई है। यहां तक कि यह 120 रुपये किलो तक भी बिक रहा है। घरेलू कीमत में उछाल आने से बासमती के व्यापारी अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। अंतर्राष्ट्रीय मंडी में भी अब बासमती का दाम काफी बढ़ गया है। व्यापारी अब बासमती के दाम में और भी अधिक तेज़ी की उम्मीद रखते हैं, क्योंकि उनके पास दूसरे देशों से बासमती की मांग बढ़ रही है। भारत विश्व में चावल का ही नहीं बासमती का भी बड़ा निर्यातक है। यह चीन को छोड़कर सब देशों से अधिक मात्रा में चावल निर्यात करता है और बासमती में इसका मुकाबला पाकिस्तान के साथ है। पंजाब तथा हरियाणा का योगदान कुल निर्यात की जा रही बासमती में 80 प्रतिशत तक है। इस प्रकार इस वर्ष पंजाब तथा हरियाणा के किसान बासमती से अधिक लाभ उठाएंगे। विजय सेतिया के अनुसार उन्हें मंडी में अच्छी कीमत मिलेगी जो किसी भी हालत में तीन हज़ार रुपये क्ंिवटल से कम नहीं होगी। चाहे बासमती की सरकारी खरीद नहीं की जाती, जिसकी किसानों द्वारा ज़ोरदार मांग की जा रही है। पंजाब सरकार मार्कफैड के माध्यम  से बासमती खरीदने की योजना बना रही है। मार्कफैड तभी मंडी में प्रवेश करेगी, यदि खुली मंडी का दाम एक निर्धारित कीमत से नीचे चला जाता है। 
भारत ने गत वर्ष 45 लाख टन से अधिक बासमती विदेशों को भेजी थी। इस वर्ष और अधिक भेजे जाने की सम्भावना है। पंजाब में ही गत वर्ष की तुलना में एक लाख हैक्टेयर से अधिक रकबा बढ़ा है और अधिक उत्पादन वाली पूसा बासमती-1885, पूसा बासमती-1886 तथा पूसा बासमती-1847 अधिक काश्त की गई हैं। सफेद गैर-बासमती चावल के निर्यात पर रोक लगने के कारण घरेलू मंडी में चावल की कीमत बढ़ने की कोई सम्भावना नहीं। परिणामस्वरूप व्यापारी भी गैर-बासमती धान की फसल खरीदने में बहुत उत्साहित नहीं होंगे और किसानों को सरकारी समर्थन मूल्य पर ही फसल बेचनी पड़ेगी। थाईलैंड, वियतनाम तथा पाकिस्तान जैसे देश चावल के निर्यात से अधिक लाभ उठाएंगे क्योंकि मुकाबले में बड़ा निर्यातक (भारत) नहीं होगा। थाईलैंड 85 लाख टन, वियतनाम 75 लाख टन और पाकिस्तान 36 लाख टन गैर-बासमती चावल निर्यात करता है। भारत का जो 99 लाख टन का निर्यात मार्किट में घाटा पड़ेगा, वह दूसरे देशों से पूरा होना असम्भव है। जिसके बाद गैर-बासमती चावल की कीमत विश्व मंडी में बढ़ने की सम्भावना है। 
बासमती चावल पंजाब, हरियाणा के अतिरिक्त उत्तर प्रदेश का कुछ हिस्सा, हिमाचल प्रदेश तथा उत्तराखंड जिन्हें जी.आई.(ज्योग्रैफिकल इंडीकेटर) टैग मिला हुआ है, में पैदा होता है। चाहे पंजाब तथा हरियाणा का निर्यात में मुख्य योगदान है, उत्तर प्रदेश के क्षेत्रों में भी बासमती की काश्त तेज़ी से बढ़ रही है। अभी से उत्तर प्रदेश में से पूसा बासमती-1509 की फसल आकर करनाल एवं तरौड़ी जैसी मंडियों में 3000 रुपये प्रति क्ंिवटल तक बिक रही है।