संयम ही है सोशल मीडिया की बढ़ती लत का समाधान
एक सर्वे के अनुसार सोशल मीडिया वर्तमान में सब पर हावी हो चुका है। बिना इसके उपयोग के अनेक लोगों के दिन की शुरुआत ही नहीं हो पाती है। सोशल मीडिया के अधिक उपयोग से न केवल शारीरिक स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है बल्कि मानसिक दबाव भी बहुत तेज़ी से बढ़ रहा है, जिसके चलते अचानक व्यक्ति को शारीरिक व मानसिक परेशानियाें से झूझना पड़ता है। इन हालात को देखते हुए सोशल मीडिया के उपयोग को कम करना बहुत ज़रूरी है। एक समय निर्धारित करना ज़रूरी है, अन्यथा सोशल मीडिया के अति-उपयोग के दुष्परिणाम डरावने होने वाले हैं। अभिभावकों को चाहिए कि वे स्वयं पर संयम रखते हुए बच्चों पर भी पूरी नज़र रखें। बच्चों को समय-समय पर सोशल मीडिया से होने वाले दुष्परिणामों से भी अवगत करवाते रहना चाहिए। इसके साथ अनेक ऐसे एप भी आ चुके हैं, जिनका उपयोग करते हुए बच्चे कितनी देर ऑनलाइन रहते हैं, इस पर भी निगरानी रखी जा सकती है।
आज हमारे घर-परिवारों में सोशल मीडिया का यह प्रकोप बहुतायत में बढ़ रहा है। हर व्यक्ति युवा पीढ़ी में बढ़ती इस लत व इससे होने वाली अनियमित जीवन शैली को लेकर चिंतित है, लेकिन यहां विचारणीय प्रश्न यह भी है कि आखिर सोशल मीडिया के दुष्परिणामों को लेकर हम कितने सजग हैं? सोशल मीडिया का यह घातक नशा चारों तरफ फैल रहा है। बच्चे, युवा, महिला, पुरुष, बुजुर्ग आदि कोई भी वर्ग इससे अछूता नहीं रहा है। देर रात्रि तक यहां तक कि रात-रात भर अपने-अपने कमरों में दुबके परिवार के हर छोटे-छोटे बड़े सदस्य सोशल मीडिया की गिरफ्त में आकर अपना समय व्यतीत करने के साथ-साथ स्वास्थ्य को भी चैपट कर रहे हैं। क्या इस मामले में केवल युवा ही दोषी हैं? इस बढ़ती घातक प्रवृत्ति को रोकने के लिए युवाओं को तो कोसा जा रहा है, लेकिन मां-बाप व घर के बड़े भी अपने गिरेबान में झांकने का प्रयास करें तो काफी हद तक इस समस्या का समाधान पाया सकता है। चिंता का विषय यह नहीं है कि युवाओं में यह लत खतरनाक तरीके से पनप रही है, बल्कि चिंता इस बात कि भी है कि घर के सभी सदस्य सोशल मीडिया पर इतना समय व्यतीत करते हैं कि आपस में संवादहीनता की स्थिति बन गई है।
हर घर में सोशल मीडिया के माध्यम से पनपी इस अनियमित जीवन शैली से तरह-तरह के रोग व समस्याएं सामने आ रही हैं। ज्वलंत प्रश्न यह भी है कि आखिर इस पर रोक लगेगी कैसे? कौन युवा पीढ़ी का मार्गदर्शन करेगा। आज वे अभिभावक अपना हक खो चुके हैं, जो स्वयं दिन-रात सोशल मीडिया में डूबे रहते हैं, किन्तु युवाओं की चिंता करते हैं। बढ़ती यह लत परिवारों में बेहद खतरनाक साबित हो रही है। इससे जहां एक ओर परिवारों का बिखराव हो रहा है, वहीं दूसरी ओर रिश्तों की परम्परा खत्म हो रही है।
वर्तमान में यह घर-घर की कहानी बन गई है। युवा हो या प्रौढ़, सभी उठते ही सबसे पहले मोबाइल को ही उठाते हैं। वहीं देर रात्रि को सोते समय तक सोशल मीडिया पर क्या कुछ ट्रेंड कर रहा है, किसने क्या फोटो लगाया है, और किसने क्या कमेंट किया है, यह देखने में ही वह कई घण्टे बर्बाद कर देता है। इस स्थिति में पास में ही बैठे परिवार के किसी अन्य सदस्य या मां-बाप के सुख-दु:ख का पता ही नहीं चलता। अब व्यक्ति सोशल मीडिया के उपयोग से स्वयं में अकेलेपन को भी महसूस करने लगा है। इसके बाद भी सुधार की कोई गुंजाइश नज़र नहीं आ रही है। इन सबके साथ सोशल मीडिया की हावी होती इस लत से लोग अपने व्यक्तिगत जीवन को सार्वजनिक करने से संकोच नहीं करते। इसके अलावा सोशल मीडिया पर अधिक कमेंट पाने की लालसा में अश्लीलता का नंगा नाच भी सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर देखने को मिलता है, जो बेहद चिंताजनक है। संस्कारहीन हो चुकी इस पीढ़ी के कारनामे देख कर मां-बाप चिंतित हैं। सोशल मीडिया पर अपलोड की गई फोटो व वीडियो पर संतोषजनक कमेंट आदि नहीं आने से भी लोगों विशेषकर युवाओं में मानसिक रोग का इज़ाफा हो रहा है।
सोशल मीडिया पर यह ट्रेंड तेजी से बढ़ता जा रहा है कि एक व्यक्ति दिन भर में होने वाली सभी गतिविधियों को सोशल मीडिया के माध्यम से अपलोड कर लेता है, जो कदापि उचित नहीं है। सोशल मीडिया से दूरी बनाने का सबसे अच्छा तरीका है स्वयं में अनुशासन पैदा करना। एक नियम बनाना होगा कि सोशल मीडिया का उपयोग कब व कितना करना है। विशेषकर जब व्यक्ति परिवार के साथ हो, तब मोबाइल फोन से उचित दूरी बनाकर रखने से लुप्त होते रिश्तों के साथ भावनात्मक जीवन जिया जा सकता है।