डा. स्वामीनाथन का बिछोड़ा
देश में हरित क्रांति के जन्मदाता डा. एम.एस. स्वामीनाथन के निधन से कृषि विकास के एक ऐतिहासिक दौर का अंत हो गया है। नि:संदेह उनके योगदान को देश हमेशा याद रखेगा। 60वें में देश दाने-दाने का मोहताज़ था। अपने लोगों की भूख मिटाने के लिए भारत को अमरीका तथा अन्य देशों से अनाज, विशेष रूप से गेहूं मंगवानी पड़ती थी। इसलिए अमरीका के साथ पी.एल. 480 नामक समझौता भी किया गया था। अमरीका द्वारा भारत को गेहूं शर्तों सहित सप्लाई की जाती थी। रूस-अमरीका में चल रहे शीत युद्ध के इस दौर में अमरीका भारत को अपने अनुसार चलाना चाहता था तथा कई बार भारत पर दबाव बनाने के लिए अमरीका द्वारा अनाज की सप्लाई रोक भी दी जाती थी। भारत को ऐसी स्थिति से उभारने के लिए डा. एम.एस. स्वामीनाथन ने अहम भूमिका निभाई।
उनका जन्म 7 अगस्त, 1925 को तमिलनाडु में हुआ था। उनके पिता एम.के. सांबासीवन एक डाक्टर थे तथा चाहते थे कि उनका बेटा भी डाक्टर बने, परन्तु डा. एम.एस. स्वामीनाथन की दिलचस्पी कृषि विज्ञान में थी।
एम.एस. स्वामीनाथन ने देश-विदेश से उच्च शिक्षा हासिल की। उन्होंने 1949 में इंडियन एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टीच्यूट से साईटोगनैटिक्स में मास्टर डिग्री हासिल की। कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से उन्होंने फिलॉस़फी की डिग्री हासिल की। विसकॉन्सन (अमरीका) के विश्वविद्यालय में उन्होंने अनुसंधान का काम किया। 1954 में उन्होंने सैंट्रल राइस रिसर्च इंस्टीच्यूट कटक तथा बाद में इंडियन एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टीच्यूट में महत्त्वपूर्ण पदों पर काम किया। जुलाई, 1966 में वह इंडियन एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टीच्यूट के डायरैक्टर बने तथा इस पद पर वह 1972 तक रहे।
जहां तक देश को अनाज के मामले में आत्म-निर्भर बनाने की बात है, इसकी शुरुआत 1960 में हुई। इंदिरा गांधी ने अमरीका के दौरे से वापिस लौटने पर उन्हें बुलाया और उन पर इस बात का दबाव डाला कि अनाज सप्लाई के मामले में अमरीका की अपमानजनक शर्तों से बचने के लिए देश को आत्म-निर्भर बनाने की ज़रूरत है, तथा इस काम के लिए वह ज़रूरी सुझाव दें। इसके बाद डा. एम.एस. स्वामीनाथन ने अमरीका के एग्रीकल्चर वैज्ञानिक डा. नॉर्मन बोरलॉग के साथ सम्पर्क किया जो उस समय मैक्सिको में गेहूं की मध्यम किस्में तैयार करने के लिए काम कर रहे थे। उन्होंने उसे भारत में गेहूं उत्पादन बढ़ाने के लिए सहयोग देने के लिए प्रेरित किया। इसके बाद 1966 में मैक्सिको से बड़ी मात्रा में मैक्सिकन गेहूं के बीज समुद्री जहाज़ से मंगवाए गए और इनकी काश्त के लिए पंजाब, हरियाणा तथा पश्चिम उत्तर प्रदेश के क्षेत्रों को चुना गया। पंजाब के मेहनती किसानों ने इन बीजों की व्यापक स्तर पर काश्त की। इसके साथ-साथ डा. एम.एस. स्वामीनाथन ने भारत की परिस्थितियों के अनुसार गेहूं की नई मध्यम परन्तु अधिक उत्पादन देने वाली किस्में विकसित करने के साथ-साथ किसानों को रासायनिक खादों तथा कीटनाशक तथा नदीन नाशकों का उपयोग करते हुए नये ढंग से कृषि करने के लिए भी शिक्षित किया। पंजाब विश्वविद्यालय लुधियाना के कृषि विशेषज्ञों का भी इसमें अहम योगदान रहा। उस समय कल्याण, सोना एवं सोनालीका आदि किस्में विकसित की गईं। इसके परिणाम स्वरूप 1966 के बाद लगभग 25 वर्षों में देश अनाज विशेष तौर पर गेहूं के उत्पादन में आत्म-निर्भर बन गया। आज़ादी के समय देश में गेहूं का उत्पादन 60 लाख टन था, 1962 तक यह एक करोड़ टन हो गया था, परन्तु 1964-1968 में वार्षिक गेहूं का उत्पादन बढ़ कर 170 करोड़ टन तक पहुंच गया। इसे ही हरित क्रांति का नाम दिया गया। डा. एम.एस. स्वामीनाथन की इन सेवाओं के लिए उन्हें बहुत-से देश-विदेश से सम्मान प्राप्त हुए। 1967 में उन्हें पद्मश्री, 1972 में पद्म-भूषण तथा 1989 में पद्म विभूषण अवार्ड से सम्मानित किया गया। इसके अतिरिक्त उन्हें रेमन मेगासासे अवार्ड से सम्मानित किया गया। विश्व भर के विश्वविद्यालयों से उन्हें लगभग 81 ऑनरेरी डिग्रियां भी प्राप्त हुईं। फिलीपीन्स की राइस रिसर्च संस्था में काम करते समय भी उन्हें और भी बहुत-से अंतर्राष्ट्रीय अवार्ड प्राप्त हुए।
डा. एम.एस. स्वामीनाथन सिर्फ उत्पादन बढ़ाने के लिए ही यत्नशील नहीं थे, अपितु वह यह भी चाहते थे कि किसानों को उनकी फसलों के लाभकारी दाम मिलें, जिससे उनका जीवन स्तर ऊंचा हो सके। इस उद्देश्य के लिए केन्द्र सरकार ने 2004 में उनके नेतृत्व में एक आयोग बनाया था जिसने 2006 में यह रिपोर्ट दी थी कि किसानों की फसल का औसत लागत का मूल्यांकन करके उनमें 50 प्रतिशत लाभ जोड़ कर किसानों को दाम दिया जाना चाहिए। डा. एम.एस. स्वामीनाथन द्वारा कृषि आयोग के प्रमुख के रूप में दी गई इस रिपोर्ट को आज भी स्वामीनाथन की रिपोर्ट के तौर पर जाना जाता है और उनके द्वारा किसानों की फसल के दाम तय करने के लिए दिए गए फार्मूले को एम.एस.पी.=सी2+50 प्रतिशत ऑफ सी2 के नाम से जाना जाता है। किसानों द्वारा आज भी इस फार्मूले के अनुसार फसल के दाम लेने के लिए संघर्ष किए जा रहे हैं। परन्तु इस बात संबंधी कोई दो राय नहीं कि डा. एम.एस. स्वामीनाथन ने देश को अनाज के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिए जो कार्य किया और जो योगदान दिया, उसने न सिर्फ किसानों तथा ग्रामीण क्षेत्र के लोगों के जीवन में बड़ा परिवर्तन किया, अपितु भारत को अनाज के क्षेत्र में आत्म-निर्भरता प्राप्त करने के साथ-साथ अनाज निर्यात करने वाला देश भी बनाया। आज अनेक देशों को भारत गेहूं तथा चावल सप्लाई कर रहा है। नि:संदेह इसका बड़ा श्रेय डा. एम.एस. स्वामीनाथन को जाता है। इन दिनों में डा. एम.एस. स्वामीनाथन रासायनिक कृषि के साथ पर्यावरण पर पड़े विपरीत प्रभाव को मुख्य रख कर प्राकृतिक कृषि को उत्साहित करने के लिए कार्य कर रहे थे। देश उनकी सेवाओं को हमेशा याद रखेगा।