पांच राज्यों के चुनावों में जातिगत जनगणना बनेगा बड़ा मुद्दा 

पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में जातियों की गिनती का मामला सबसे बड़ा मुद्दा बन गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भले ही जातिगत जनगणना को देश को जात-पात पर बांटने की साज़िश बताएं, लेकिन पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव जातिगत गणना का मामला बड़ा मुद्दा बन गया है। बिहार में जाति गणना के आंकड़े सामने आने के बाद ओडिशा ने भी जातिगत गणना का आंकड़ा जारी किया है, जिसके मुताबिक ओडिशा में 39 फीसदी से थोड़ी ज्यादा पिछड़ी जातियों की आबादी है। कर्नाटक ने भी कहा है कि उसका भी आंकड़ा जल्दी ही जारी हो सकता है। ये चुनावी राज्य नहीं हैं लेकिन बिहार, ओडिशा और कर्नाटक की देखा-देखी मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी इसकी चर्चा तेज़ हो गई। 
मध्य प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी रणदीप सुरजेवाला ने प्रेस कांफ्रैंस करके कहा कि कांग्रेस के लिए जातिगत गणना सबसे बड़ा मुद्दा है। उन्होंने ऐलान कर दिया है कि मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी तो जातियों की गिनती करवाई जाएगी। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने तो 7 अक्तूबर को इसका आदेश भी जारी कर दिया। चुनाव की घोषणा से पहले गहलोत ने जातिगत गणना का आदेश जारी करके बड़ा दांव चला है। वह खुद पिछड़ी जाति से आते हैं और बिहार के आंकड़ों के बाद यह नैरेटिव बन रहा है कि पिछड़ी और अति पिछड़ी जातियों की आबादी सबसे ज्यादा है। इसलिए राजनीतिक नेतृत्व भी उनके हाथ में रहना चाहिए। यह मुद्दा मतदाताओं के एक बड़े समूह को अपील कर सकता है।
राहुल रावण कैसे!
भाजपा ने बड़े व्यवस्थित तरीके से कांग्रेस नेता राहुल गांधी की एक छवि गढ़ी है। कम बुद्धि के अनिच्छुक राजनेता के तौर पर उन्हें ‘पप्पू’ के नाम से प्रचारित किया गया है, लेकिन पिछले साल जब से राहुल गांधी ने ‘भारत जोड़ो यात्रा’ की, उसके बाद से उनके लिए इस विशेषण का इस्तेमाल लगभग बंद हो गया है। अब उनको कम बुद्धि वाले नेता की बजाय बहुत शातिर और देश विरोधी नेता बताया जाने लगा है। यह बड़ी हैरानी की बात है कि पप्पू प्रचारित करने के जिस प्रोजेक्ट पर भाजपा ने अरबों रुपये खर्च किए, उसे छोड़ कर अब राहुल के मामले में दूसरा प्रोजेक्ट शुरू कर दिया है। दूसरा प्रोजेक्ट उनको रावण बताने का है। भाजपा ने सोशल मीडिया में एक पोस्टर जारी किया जिसमें राहुल को कई सिर वाले रावण की तरह दिखाया गया, लेकिन यह तुलना बिल्कुल गलत है, क्योंकि रावण तो महाविद्वान और इतना प्रतापी था कि इन्द्र, लक्ष्मी व कुबरे उसके अधीन थे। सोने की लंका में रहता था और पुष्पक विमान से उड़ता था। यह सब तो राहुल के पास नहीं, बल्कि उसके पास है जो सत्ता में है। राहुल तो अभी सड़कों पर घूम रहे हैं। बहरहाल, सवाल है कि भाजपा ने अचानक पप्पू से रावण में राहुल का जो ट्रांसफॉर्मेशन किया है, उसका क्या कारण है? भाजपा राहुल को हिन्दू मायथोलॉजी के सबसे बड़े खलनायक की तरह दिखा रही है। इसका मतलब है कि वह राहुल को गम्भीर चुनौती मानने लगी है। 
पांच राज्यों का रिपोर्ट कार्ड 
चुनावों में हमेशा सरकारों के कामकाज की समीक्षा होती है और उस आधार पर वोट मांगे जाते हैं व उसी आधार पर विपक्ष की ओर से सरकार पर हमला किया जाता है, लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ कि किसी चुनाव में विधानसभा के कामकाज की रिपोर्ट आई हो और उसकी समीक्षा कर उसके आधार पर किसी ने वोट मांगे हो। सवाल है कि क्या यह जानना ज़रूरी नहीं है कि जिस विधानसभा के लिए चुनाव हो रहे हैं, पांच साल में उसने कितना और क्या काम किया है? एक रिपोर्ट के मुताबिक अभी जिन पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव होने जा रहे हैं, वहां की विधानसभाओं का कामकाज औसत से भी कम रहा है। आखिरी यानि चुनावी साल में हुए आकलन के मुताबिक इन पांचों विधानसभाओं की बैठक हर साल औसतन 30 दिन भी नहीं हुई है। सबसे ज्यादा राजस्थान विधानसभा की कार्यवाही हर साल औसतन 29 दिन चली है। तेलंगाना में तो सालाना औसत 15 दिन का है। मध्य प्रदेश में हर साल औसतन सिर्फ  21 दिन विधानसभा की कार्यवाही चली है। सिर्फ  बैठकों का मामला नहीं है, विधानसभाओं में विधेयकों पर चर्चा भी कम होती जा रही है और विधेयकों को संबंधित विभागों की समितियों के पास भी कम ही भेजा जाता है। पीआरएस लेजिस्लेटिव की रिपोर्ट के मुताबिक इन पांचों विधानसभाओं में 48 फीसदी विधेयक पेश होने के दिन या उसके अगले दिन पास हो गए। मिज़ोरम में यह औसत सौ फीसदी रहा। राज्य की मौजूदा सरकार ने इस कार्यकाल में 57 विधेयक पास कराए और सारे विधेयक जिस दिन पेश हुए, उसी दिन या उसके अगले दिन पास हो गए।
चुनाव लड़ कर घाटे में रहेगी ‘आप’
आम आदमी पार्टी पांच में से तीन राज्यों में विधानसभा चुनाव लड़ने जा रही है। पार्टी सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल ने ऐलान किया है कि राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में आम आदमी पार्टी पूरी ताकत से चुनाव लड़ेगी। पूरी ताकत से चुनाव लड़ने का मतलब सबको पता है। इन तीनों राज्यों में पार्टी का कोई आधार नहीं है। फिर भी पूरी ताकत से लड़ने का मतलब है कि पार्टी खूब पैसा खर्च करेगी, हर सीट पर उम्मीदवार उतारेगी और केजरीवाल व भगवंत मान प्रचार के लिए जाएंगे। नतीजा चाहे जो भी हो, लेकिन इस तरह से चुनाव लड़ने का हर हाल में नुकसान आम आदमी पार्टी को ही होगा। अगर उसके चुनाव लड़ने के बावजूद कांग्रेस तीनों राज्यों में या दो राज्यों में जीत जाती है तो आगे के लिए आम आदमी पार्टी का रास्ता बंद हो जाएगा। अगर कांग्रेस एक राज्य में जीत जाती है या नहीं भी जीत पाती, तब भी आम आदमी पार्टी से उसकी दूरी बढ़ेगी। कांग्रेस विपक्षी गठबंधन में आम आदमी पार्टी को किनारे करने का प्रयास करेगी। उसे अगर एक फीसदी या उससे भी कम वोट मिलता है तो वह किस मुंह से लोकसभा चुनाव में सीटों की मांग करेगी? हालांकि एक थीसिस यह भी है कि शहरी इलाकों में केजरीवाल भाजपा को भी नुकसान पहुंचा सकते हैं। विपक्षी पार्टियां इस पर भी नज़र रखेंगी।
सिंधिया परिवार के साथ शह-मात का खेल
ऐसा लग रहा है कि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व सिंधिया परिवार के साथ शह-मात का खेल खेल रहा है। कहीं उनको आगे बढ़ाया जा रहा है तो कही पीछे खींचा जा रहा है। इस वजह से पिछले कुछ दिनों से इस बात की चर्चा शुरू हो गई है कि क्या राजनीति में सिंधिया परिवार का दखल खत्म हो जाएगा। असल में प्रधानमंत्री मोदी परिवारवाद के खिलाफ  जब भी हमला करते हैं तो कांग्रेस नेताओं और कांग्रेस समर्थक यू-ट्यूबर्स की ओर से सिंधिया परिवार को निशाना बनाया जाता है। इसलिए भाजपा के लिए यह परिवार गले की हड्डी की तरह है। उसे निगलना और उगलना दोनों मुश्किल हो रहा है। इसीलिए मध्य प्रदेश से राजस्थान तक शह-मात का खेल चल रहा है। मध्य प्रदेश में पहले शिवपुरी की विधायक यशोधरा राजे को रिटायर कराया गया। उन्होंने कहा कि वह चुनाव नहीं लड़ना चाहतीं। इस तरह अब मध्य प्रदेश में सिंधिया परिवार से अकेले ज्योतिरादित्य सिंधिया भाजपा में सक्रिय हैं। 
हालांकि अभी उनका टिकट घोषित नहीं हुआ है लेकिन उनके करीबी लोगों को टिकट मिल रहे हैं। दूसरी तरफ  राजस्थान में वसुंधरा राजे को किनारे रखने के उपाय भी हो रहे हैं। वहां न तो पार्टी उनके चेहरे पर चुनाव लड़ रही है और न ही प्रत्याशी चयन में उनके समर्थकों को तरजीह दी जा रही है। प्रत्याशियों की पहली सूची में भी उनके दो बेहद करीबी नेताओं के टिकट कट गए हैं।