सूर्योपासना का लोकपर्व है छठ पूजा

कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाया जाने वाला छठ पूजा पर्व मैथिल, मगध और भोजपुरी समाज का सबसे बड़ा सांस्कृतिक पर्व है। मुख्यरूप से तो यह बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्र का पर्व है, लेकिन हाल के दशकों में जिस तरह से बिहार, झारखंड और बंगाल के लोगों ने पूरे देश में अपनी विशिष्ट उपस्थिति बनायी है, उसके कारण यह अखिल भारतीय पर्व तो हो ही चुका है, साथ ही दुनिया के करीब 63 देशों में जहां अनिवासी भारतीय या भारतीय मूल के लोग रहते हैं, वहां भी यह पर्व खूब धूमधाम से मनाया जाता है। अमरीका में करीब 32 जगहों में, ऑस्ट्रेलिया में, ब्रिटेन में, कनाडा में और खाड़ी देशों में भी अनेक जगहों पर जहां प्रवासी भारतीय हैं, यह पर्व हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इसके अलावा मॉरीसस, सूरीनाम, फिजी, ट्रिनीडॉड टोबागो जहां भारतीय मूल के बहुतायत में लोग रहते हैं, वहां यह मुख्य पर्व के रूप में मनाया जाता है।
यह हिंदुओं का एकमात्र ऐसा पर्व है जो वैदिककाल से निरंतर मनाया जाता रहा है। वास्तव में यह पर्व आर्य संस्कृति की सनातन परंपरा का वाहक है। इस पर्व में मुख्य रूप से ऋषियों द्वारा लिखी गई ऋग्वेद में सूर्य पूजन परंपरा का आर्य संस्कृति के रूप में अनुष्ठान सम्पन्न होता है। मुख्यत: छठ पूजा के नाम से जाने जाने वाले इस पर्व के कई और नाम है जैसे- छठी मईया, छईठ पूजा, रनबे माय पूजा, डाला छठ और सूर्य षष्ठी। यह वास्तव में सर्वमनोकामना पूर्ति का पर्व है, इसे हिंदुओं के साथ-साथ इस्लाम और दूसरे धर्मों के मानने वाले लोग भी मनाते हैं, क्योंकि यह धार्मिक की बजाय सांस्कृतिक पर्व है। छठ पूजा वास्तव में सूर्य, प्रकृति, जल, वायु और उनकी बहन छठी मईया को समर्पित पर्व है। यह एक तरह से पृथ्वी पर जीवन को सुचारू रूप से चलाने में मदद करने वाले देवताओं को धन्यवाद ज्ञापन करने का भी पर्व है।
इसे अलग-अलग जगहों में अलग-अलग नामों से भी जाना जाता है जैसे मिथिला इलाके में छठ पर्व को रनबे माय भी कहा जाता है, तो भोजपुरी इलाके में कहीं-कहीं इसे सबिता माई और बंगाल में रनबे ठाकुर के नाम से भी जाना जाता है। वास्तव में छठ मईया माता पार्वती का छठा रूप हैं। इस पर्व को अधिक से अधिक पारंपरिक रूप से मनाने का आग्रह रहता है, इसी कारण मिथिला अंचल में महिलाएं छठ पर्व पर बिना सिलाई के शुद्ध सूती धोती पहनती हैं। यह पर्व चार दिनों की अवधि में सम्पन्न होता है, इसके अलग-अलग चरणों में विभिन्न अनुष्ठानों के तहत पवित्र स्नान, उपवास और पीने के पानी या वृत्ता से दूर रहने तथा लम्बे समय तक पानी में खड़े रहने व प्रसाद पाने और अर्घ्य देने के क्रम शामिल हैं।
वैसे तो आमतौर पर छठ पर्व ज्यादातर महिलाएं मनाती हैं, लेकिन इस पर्व में बड़ी संख्या में पुरुष भी हिस्सा लेते हैं। क्योंकि यह लिंग विशिष्ट से रहित पर्व है, इसे कोई भी मना सकता है। यही वजह है कि छठ पर्व स्त्री, पुरुष, बूढ़े, जवान या बच्चों में से कोई भी मना सकता है। पर्यावरणविदों का मनाना है कि यह एक ऐसा भारतीय पर्व है जो कि पर्यावरण को लोक चेतना के साथ संबद्ध करता है। माना जाता है कि इस पर्व की शुरुआत सदियों पहले ऐतिहासिक रूप से मुंगेर में गंगा के बीचोंबीच एक शिलाखंड पर स्थित सीताचरण मंदिर से हुई है। मुंगेर और बेगूसराय को छठ पर्व का जन्मस्थल माना जाता है। आज भी मुंगेर ओर बेगूसराय में यह महापर्व बहुत ही धूमधाम से मनता है।
जैसे कि सभी पर्वों के पीछे एक विशिष्ट पौराणिक कथा होती है, उसी तरह छठ व्रत के पीछे भी एक पौराणिक कथा है, जिसके मुताबिक प्रथम देवासुर संग्राम में जब असुरों से देवता हार गये, तब देव माता अदिति ने तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति के लिए देव सूर्य मंदिर में रनबे माय यानी छठी मईया की आराधना की। इससे प्रसन्न होकर छठी मईया ने उन्हें सर्वगुण सम्पन्न तेजस्वी पुत्र का वरदान दिया। इसके बाद अदिति के पुत्र हुए त्रिदेव रूप अदित्य भगवान ने देवताओं को असुरों पर विजय दिलायी थी। कार्तिक मास की अमावस्या को दीपावली मनाने के बाद यह चार दिवसीय व्रत आता है, जो कड़ी साधना से सम्पन्न होता है। वैसे साल में छठ पूजा दो बार होती है, एक चैत मास में और दूसरी कार्तिक मास में। कार्तिक मास में यह चतुर्थी से शुरु होकर पंचमी, षष्ठी और सप्तमी तिथि तक मनायी जाती है। नवरात्र में भी हम षष्ठी माता की पूजा करते हैं, षष्ठी माता को ही मां कात्यायनी भी कहते हैं। 
छठ पर्व लोक आस्था का पर्व है, जिसको मनाये जाने के पीछे पारिवारिक सुख समृद्धि तथा मनवांछित फल पाये जाने की कामना होती है। छठ पर्व को महाभारत काल में द्रोपदी ने भी मनाया था। माना जाता है कि यह व्रत रखने के कारण ही उनकी मनोकामनाएं पूरी हुईं और पांडवों को अपना खोया हुआ राजपाट मिला। -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर