सनातन परम्परा के अमर नायक हैं - आदि शंकराचार्य

आगामी 12 मई को यानी वैशाख महीने के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को आदि शंकराचार्य की 1236वीं जयंती मनायी जायेगी। हिंदू सनातन संस्कृति के अमर नायक आदि शंकराचार्य का जीवन और सनातन धर्म व संस्कृति के लिए किया गया उनका महान काम किसी चमत्कार से कम नहीं है। अगर दुनिया की सभी आदिम सभ्यताओं के खत्म हो जाने के बाद भी आज तक भारतीय संस्कृति निरंतर बनी हुई है तो इसमें सबसे बड़ी भूमिका आदि शंकराचार्य की है। न सिर्फ सनातन हिंदू धर्म के प्रचार, प्रसार में बल्कि भारत को एक धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से अटूट ईकाई में बांधने का काम भी इस अद्वैत वेदांत के प्रणेता और उपनिषदों के व्याख्याता को ही है। अगर 12वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य न पैदा हुए होते तो शायद आज हिंदू धर्म न होता और होता भी तो उसमें वह विराटता न होती, जो उसमें मौजूद है।
महज 8 साल की उम्र में इस चमत्कारिक शख्स ने सारे वेदों का ज्ञान हासिल कर लिया था और 12 साल की उम्र में ही इन्होंने दुनिया को सनातन धर्म का संदेश देना शुरू कर दिया था। आदि शंकराचार्य को हिंदुत्व का सबसे महान प्रतिनिधि माना जाता है। उन्होंने ही भारत में चार मठों की स्थापना की, जिसमें गोवर्धन मठ जगन्नाथपुरी में, शारदा मठ गुजरात में, ज्योतिर्मठ उत्तराखंड में और श्रंगेरी मठ रामेश्वरम में स्थिति है। अगर गौर से देखें तो चारों दिशाओं में ये चार मठ भारत की विराट भौगोलिक ईकाई को आपस में गहराई से बांधने का काम करते हैं। 788 ईसा पूर्व केरल स्थित कालड़ी में जन्मे आदि शंकराचार्य महज दो साल की उम्र में ही धाराप्रवाह संस्कृत बोलने लगे थे और चार साल की उम्र तक होते-होते वह न केवल वेदों का पाठ करने में सक्षम थे बल्कि उन्हें समस्त वेद करीब-करीब कंठस्थ हो गये थे। 12 साल की उम्र में उन्होंने संन्यास लेकर हमेशा के लिए घर छोड़ दिया था और महज 32 सालों तक जीने वाले आदि शंकराचार्य ने 20 सालों में धर्म, आध्यात्म और सभ्यता की दुनिया में उथल पुथल मचा दी थी। जब आमतौर पर बालकों वाली उम्र होती है, उस उम्र में यानी 12 साल की उम्र में उन्होंने अद्वैत दर्शन के बारे में न सिर्फ बोलना शुरु कर दिया बल्कि शास्त्रार्थ करने लगे थे। उस उम्र में भी उनके कई शिष्य हो गये थे, जिसके साथ उन्होंने देश के अलग-अलग कोने में आध्यत्मिक विज्ञान के केन्द्र स्थापित किए, जिन्हें बाद में मठ और पीठ कहा गया। उन्होंने 20 साल की उम्र में भारत के चारों कोनो की कई यात्राएं कीं उत्तर से दक्षिण और पूर्व से पश्चिम की ये यात्राएं न सिर्फ संस्कृति के रूप में पूरे भारत को एक सूत्र में बांधने की यात्राएं थीं बल्कि ये यात्राएं देश को जागृत और प्रकाशित करने की सबसे तेजस्वी यात्राएं थीं।
शंकराचार्य द्वारा देश के सभी चारों कोनो में स्थापित मठों को सर्वोच्च धार्मिक स्थान और यहां के प्रमुखों यानी शंकराचार्यों को हिंदू धर्म में सर्वोच्च पद माना जाता है। शंकराचार्य जिस समय पैदा हुए थे हिंदू धर्म का क्षरण हो रहा था, वह लुप्त होने की तरफ  बढ़ रहा था। शंकराचार्य ने ही हिंदू सनातन धर्म को पुन: स्थापित और प्रतिष्ठित किया और अद्वैत चिंतन को पुनर्जीवित करते हुए हिंदू धर्म के दार्शनिक आधार को सभी धर्मों के मुकाबले कहीं ज्यादा सुदृढ़ बनाया। यही नहीं उन्होंने मूर्ति पूजा से उचटे हिंदू जनमानस को फिर से मूर्ति पूजा की तरफ आकर्षित किया। उनके दर्शन का मूल है एकात्मता। उनके द्वारा रचित समस्त ग्रंथों का मर्म भी एकात्मता ही है। उन्हें भगवान शंकर का अवतार समझा जाता है। उन्होंने भारतीय मतों, सम्प्रदायों और धर्मों में आयी विकृतियों का समूल नाश किया और हिंदू धर्म की पुनर्स्थापना की। 
आदि शंकराचार्य ने अनेक संस्कृत ग्रंथों का भाष्य किया है जिनमें छान्दोग्य उपनिषद (सामवेद), मांडूक्य उपनिषद तथा गोंडपादाकारिका, मुंडक उपनिषद (अर्थवेद), प्रश्नोपनिषद (अर्थवेद), भागवत गीता (महाभारत), विष्णु सहस्रनाम  (महाभारत), सानतसुजातिया (महाभारत), गायत्री मंत्र इसके अलावा भी शंकराचार्य ने अनेक दूसरे ग्रंथों पर भी भाष्य लिखे हैं। आदि शंकराचार्य ने जिन अनेक ग्रंथों की  रचना की है, वे अद्वैत वेदांत के आधार स्तंभ हैं। उनकी इन कृतियों के जरिये ही अद्वैत वेदांत की स्थापना हुई है। इतनी कम उम्र में उन्होंने इतना काम किया है कि अपने काम के चलते भी उन्हें चमत्कारिक समझा जाता है। आदि शंकराचार्य अद्वैत वेदांत के प्रणेता, संस्कृत के महान विद्वान, उपनिषदों के विशिष्ट व्याख्यता और सनातन धर्म सुधारक थे।


-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर