2024 के लोकसभा चुनाव  अभी भी भाजपा के लिए बड़ी चुनौती है कांग्रेस

जो हार सबक सीखने का हुनर सिखा दे,
वो हार भी फिर जीत का आ़गाज़ हो जाये।।
हालांकि, अभी हुये विधानसभा चुनावों में मध्य प्रदेश, राजस्थान तथा छत्तीसगढ़ में भाजपा की शानदार जीत ने यह प्रभाव बना दिया है कि 2024 के लोकसभा चुनावों में भी भाजपा की जीत सुनिश्चित हो गई है, परन्तु यदि ध्यान से देखा जाये तथा वोट आंकड़ों पर दृष्टिपात किया जाये तो एक बात स्पष्ट प्रतीत होती है कि यदि इस हार के बावजूद कांग्रेस इस हार से सबक ले तथा अपना अहं छोड़ कर (वैसे तो यह इन चुनावों में टूट ही गया है) ‘इंडिया’ गठबंधन के साथ सीटों का विभाजन वास्तविकता के आधार पर करके 2024 के लोकसभा चुनाव लड़े, तो 2024 भाजपा के लिए वास्तव में उतना आसान न रहे, जितना दिखाई दे रहा है। इन चुनाव परिणामों ने सिर्फ कांग्रेस का अहं ही नहीं तोड़ा, अपितु ‘इंडिया’ गठबंधन के कई अन्य दलों को भी आईना दिखाया है कि अकेले-अकेले आप भी कुछ नहीं हो। इसलिए हम समझते हैं कि यह हार इंडिया गठबंधन के लिए वरदान सिद्ध हो सकती है तथा वह वास्तविकता के धरातल पर खड़े होकर अभी भी आपसी समझौते से 2024 के लोकसभा चुनावों में एन.डी.ए. को कड़ी टक्कर के समर्थ हो सकता है। ज़रा देखें, इन विधानसभा चुनावों में हार के बावजूद भाजपा ने कुल मिला कर कांग्रेस से लगभग 9 लाख वोट कम लिये हैं। जीत प्राप्त कर चुकी भाजपा ने कुल 4 करोड़ 81 लाख, 33 हज़ार, 463 वोट लिये तथा कांग्रेस ने 4 करोड़ 90 लाख 77 हज़ार 907 वोट प्राप्त किये हैं। नि:संदेह मध्य प्रदेश में भाजपा ने कांग्रेस से लगभग आठ प्रतिशत अधिक वोट प्राप्त किये। यहां भाजपा को 48.55 प्रतिशत तथा कांग्रेस को 40.42 प्रतिशत वोट मिले। छत्तीसगढ़ में यह अंतर लगभग 4 प्रतिशत था जहां भाजपा ने 46.36 प्रतिशत तथा कांग्रेस ने 42.22 प्रतिशत वोट हासिल किये। राजस्थान में भाजपा ने 41.69 प्रतिशत तथा कांग्रेस ने 39.53 प्रतिशत मत प्राप्त किये। यहां अन्तर केवल दो प्रतिशत ही रह गया। तेलंगाना में भाजपा ने 13.9 प्रतिशत तथा कांग्रेस ने 39.37 प्रतिशत अभिप्राय यह कि 25 प्रतिशत से अधिक वोटों का अंतर पड़ा। मिज़ोरम में चाहे भाजपा ने दो सीटों पर जीत हासिल की परन्तु कांग्रेस सिर्फ एक सीट ही जीत सकी परन्तु यहां कांग्रेस को 20.22 प्रतिशत तथा भाजपा को सिर्फ 5.6 प्रतिशत वोट ही मिले।
यह स्थिति स्पष्ट प्रश्न करती है कि कांग्रेस हार के बावजूद खत्म नहीं हुई। इन चुनावों में एक और बात सिद्ध हुई कि भाजपा उत्तर भारत तथा हिन्दी पट्टी में तो मज़बूत है परन्तु दक्षिण में मज़बूत नहीं है। दक्षिण में यदि इंडिया गठबंधन अस्तित्व में आ जाये तो वहां भाजपा के समक्ष बड़ी मुश्किल  पैदा हो जायेगी। देखने वाली बात यह है कि मध्य प्रदेश, राजस्थान तथा छत्तीसगढ़ इन राज्यों में कुल 65 सीटों में से भाजपा इस समय 61 सीटों पर काबिज है। अभिप्राय यह कि 2024 में कांग्रेस के पास इन राज्यों में 2024 के चुनावों में खोने के लिए कुछ भी नहीं, परन्तु यदि वह इस हार से सबक लेती है तथा इंडिया गठबंधन बनाने में सफल रह कर मौजूदा वोट प्रतिशत को लोकसभा चुनावों में कायम रखती है तो वह इन तीन राज्यों में ही भाजपा से 20 से 25 सीटें छीनने के योग्य हो सकती है। राजनीति कभी भी 2 जमा 2 के बराबर 4 नहीं होती। देखना होगा कि इन चुनावों से पहले भाजपा अपने तरकश से कौन-से नये तीर छोड़ती है तथा कांग्रेस अपनी एकता तथा मज़बूती बनाये रख सकती है या नहीं? यह देखना भी बनता है कि इंडिया गठबंधन क्या करवट लेता है?
स. बादल को याद करते हुए
25 अप्रैल, 2023 को जब प्रकाश सिंह बादल इस दुनिया को अलविदा कह गये थे तो एक शे’अर याद आया था :
आसमां भर गया परिन्दों से 
पेड़ कोई बड़ा गिरा होगा।
कितना दुश्वार था स़फर उनका
वो सर-ए-शाम सो गया होगा। 
यह शे’अर स. बादल के जीवन के स़फर की बड़ी सीमा तक तर्जमानी करता है। उनके निधन के बाद आज जब आप यह लेख पढ़ रहे हो, यह उनके बिछुड़ जाने के बाद पहले जन्म दिन का अवसर है। पंजाब तथा सिखों के इतिहास में महाराजा रणजीत सिंह के बाद दो सिख नेता मास्टर तारा सिंह तथा प्रकाश सिंह बादल ही ऐसे नेता हुए हैं जो 50-50 वर्षों से भी अधिक समय सिख तथा पंजाब की राजनीति का केन्द्र रहे। यह ठीक है कि जो काम करेगा, गलतियां भी उसी से होंगी और आरोप भी उस पर ही लगेंगे। 
गिरते हैं शाहसवार ही मैदान-ए-जंग में,
वो तिफ़़्फल क्या गिरेगा जो घुटनों के बल चले। 
स. बादल का जन्म 8 दिसम्बर, 1927 को हुआ था। वह पंजाब की राजनीति में 1957 में आए और पहली बार विधायक बने। वह पांच बार मुख्यमंत्री बने। पहली बार वह सबसे कम आयु के मुख्यमंत्री बने थे और अंत में सबसे अधिक आयु के मुख्यमंत्री भी वही थे। नि:संदेह उन पर आरोप लगता है कि उनके कार्यकाल में एसवाईएल नहर के निर्माण हेतु पैसे लिये गये, परन्तु यह भी सच्चाई है कि जब प्रतीत हुआ कि यह पंजाब के लिए घातक है तो उन्होंने इसका विरोध किया और अंत में 14 मार्च, 2016 को एसवाईएल नहर की ज़मीन किसानों को वापस करने का साहसिक फैसला भी उन्होंने ही किया। इसमें कोई संदेह नहीं कि उनकी हार के कारणों में सबसे बड़े कारण श्री अकाल तख्त साहिब द्वारा सिरसा के डेरा प्रमुख को म़ाफी देना तथा बेअदबी कांड की घटनाओं के साथ ठीक ढंग से न निपटना थे, परन्तु इसमें कोई संदेह नहीं कि वह नये पंजाब के निर्माता भी थे। उन्होंने गांवों में फोकल प्वाइंट शुरू करके, गांव-गांव को सड़कों से जोड़ कर, पंजाब को एक बार तो देश का सबसे अधिक खुशहाल प्रदेश बना दिया था। पंजाब का मंडीकरण ढांचा देश में सबसे मज़बूत करने का श्रेय भी उन्हीं को जाता है। उन्होंने किसानों को मुफ्त बिजली तथा अन्य सुविधाओं की शुरुआत की। चाहे यह अहम प्रश्न है कि इसका पंजाब को कितना लाभ और कितना नुकसान हुआ, परन्तु उन्होंने पंजाब को एक बार तो बिजली के पक्ष से सरप्लस प्रदेश बना दिया था। इसके अतिरिक्त  1997 की खालसा त्रि-शताब्दी इस प्रकार मनाई कि सिखों का 1984 में डगमगाया मनोबल पुन: मज़बूत हुआ। उन्होंने हिन्दू-सिख भाईचारा भी मज़बूत किया। भाई राजोआणा की फांसी रोकने में भी उनकी मुख्य भूमिका थी। स. बादल ने सिख इतिहास तथा पंजाबियों के आज़ादी के संघर्ष में डाले गये योगदान की याद में बड़ी यादगारें बनवाईं। पंजाब के विकास के लिए उन्होंने प्रधानमंत्री वाजपेयी तथा अन्य सरकारों के समय भारत-पाकिस्तान की पंजाब सीमा व्यापार हेतु खुलवाने के लिए यत्न किये। भूमि रिकार्ड को ऑनलाइन करने की शुरुआत की। उनकी ओर से किसानों की बिजली माफी तथा सब्सिडियों की शुरुआत की गई। पिछले 50 वर्ष में प्रकाश सिंह बादल ऐसे मुख्यमंत्री थे जिन्हें कोई भी व्यक्ति कुछेक प्रयास करके ही मिल सकता था। संगत दर्शन में उन तक ग्रामीण लोगों की पहुंच बहुत आसान हो जाती थी। स. प्रकाश सिंह बादल वास्तव में एक युग पुरुष थे जिनकी चर्चा के बिना सिख इतिहास तथा पंजाब का इतिहास नहीं लिखा जा सकेगा। 
--मो. 92168-60000