किन्नू के बागों को बचाने हेतु सरकारी पहलकदमी की ज़रूरत

अमरीका में कैलेफोर्निया के रिवरसाइड में किंग तथा विल्लो नारंगियों को क्रास करके विकसित किया गया और भारत के विभाजन से पहले वर्ष 1935 में पंजाब (पाकिस्तान) के क्षेत्र में काश्त करने के लिए जारी किया गया हाइब्रिड किन्नू फल आज पंजाब का राजा फल माना जाता है। इसकी काश्त तथा पैदावार फलों के अधीन कुल रकबे के लगभग 65 प्रतिशत रकबे पर की गई है और राजस्थान के गंगानगर आदि क्षेत्रों में भी यह फल ‘सुनहरे इंकलाब’ का चिन्ह बना हुआ है। दिसम्बर से मार्च तक पंजाब में फलों की दुकानें तथा फेरी वाली रेहड़ियां इस फल से सजी हुई दिखाई देती हैं। मुख्य रूप से  बठिंडा, मुक्तसर, फाज़िल्का तथा होशियारपुर ज़िलों में फलों के काश्त अधीन रकबे पर यह प्रमुख फसल के रूप में उभर कर आया है। 
पंजाब का यह फल बहुत बढ़िया माना जाता रहा और दूसरे राज्यों को भी भेजा जाता है। यहां तक कि इसका निर्यात दूसरे देशों जैसे सिंगापुर, थाइलैंड, मलेशिया, दुबई आदि में भी किया गया है। समस्या यह आती रही कि इसकी शैल्फ लाइफ कम होने के कारण निर्यात क्षेत्र में व्यापक स्तर पर सफलता नहीं मिली। किन्नू फल दिसम्बर से मध्य मार्च के बीच पूरा पक कर तैयार मिलता है। परन्तु ठेकेदार प्रणाली प्रधान होने के कारण वे इसे नवम्बर में ही तोड़ कर बिक्री के लिए शहरों में ले आते हैं। तब यह फल खट्टा होता है और खप्तकारों की पसंद नहीं होता।
परन्तु अब किन्नू के बाग यौवन पर हैं। इन्हें नष्ट किया जा रहा है। बठिंडा ज़िले के विर्क खुर्द गांव के प्रगतिशील किसान बलजीत सिंह कहते हैं कि उसके गांव में 1400 एकड़ भूमि में से 132 एकड़ पर किन्नू लगा हुआ था, जो अब 36 एकड़ रह गया है। बागबानों ने किन्नू उखाड़ कर अन्य फसलें लगा ली हैं। बहुत-से बाग गत एक-दो वर्षों में ही नष्ट किए गए हैं। यही स्थिति उसके साथ लगते किन्नू पैदा करने वाले अन्य गांवों में है। वहां भी बाग नष्ट किए जा रहे हैं। वह कहते हैं कि इस वर्ष यह रूझान बागबानों में और भी बढ़ गया है। इस बार तो फल ही बहुत कम लगा था और अब नये वर्ष (2024) के लिए पौधों पर बहुत कम फल लगा है। फिर मंडीकरण भी कोई लाभदायक नहीं हुआ। किन्नू उत्पादक मायूस हैं। पुराने 15-18 वर्ष के लगे हुए बाग भी नष्ट किए जा रहे हैं। किन्नू का पौधा फल बहुत देता है। लगभग 400-500 किन्नू चार वर्ष के पौधे पर लगे हुए देखे जा सकते हैं। बहुत-से उत्पादक फल दो वर्ष के बाद ही तोड़ लेते हैं जिस कारण पौधों की आयु कम हो जाती है। किन्नुओं के बाग की देख-रेख पर लगभग 30000-35000 रुपये प्रति एकड़ खर्च आता है। इसमें बागबान की स्वयं या उसके परिवार द्वारा की गई मज़दूरी शामिल नहीं। इस वर्ष तो यह स्थिति है कि ठेकेदार बाग छोड़ कर भाग गए या फिर उन्होंने दोबारा ठेका कम करके मालिक के साथ नया ठेका तय कर लिया। अधिकतर बागबानों को ठेके की पूरी राशि वसूल नहीं हुई। कई बागबान इस वर्ष अपने नये बाग नष्ट करने को तैयार हो गए हैं। वे धान तथा बासमती लगाने की योजना बनाए बैठे हैं जिससे उन्हें मुनाफा अधिक मिलता है। 
बागबानी विभाग की निदेशक डॉ. शैलेन्द्र कौर कहती हैं कि किन्नू फल के उत्पादन को बढ़ाने के लिए प्रत्येक प्रयास किया जा रहा है। वह कहती हैं कि किन्नू की फसल एक वर्ष भरपूर फल देती है और दूसरे वर्ष कमज़ोर होती है। वह कहती हैं कि उत्पादकों को मायूस होकर किन्नू के बाग नष्ट नहीं करने चाहिएं। नैशनल बागबानी मिशन के तहत बागबानी विभाग की ओर से नये बाग लगाने के लिए किसानों को सहायता दी जाती है। उनके अनुसार किन्नू के नये बाग लगाने के लिए किसानों को आगे आना चाहिए। किन्नू का बाग लगाने पर लागत अवश्य अधिक आती है, जिसके लिए बैंक भी ऋण की सुविधा उपलब्ध करते हैं। 
बागबानी विभाग के सेवा-निवृत्त उप-निदेशक डॉ. स्वर्ण सिंह मान खप्तकारों को सीज़न के दौरान दिसम्बर से मध्य मार्च तक इस फल का खुला इस्तेमाल करने का परामर्श देते हैं। शेष समय में डिब्बा बंद जूस का इस्तेमाल किया जा सकता है। नये बाग लगाने में सही किस्म के किन्नू के पौधों का बहुत महत्व है। ये पौधे बीमारी रहित और स्वस्थ होने चाहिएं ताकि आयु के साथ ये उत्पादकों को अच्छा फल और लाभ दें। बाग अगस्त-सितम्बर में लगाना अधिक अनुकूल होगा। जो पौधे बहार ऋतु में लगाए जाते हैं, उनके मई-जून में पड़ने वाली गर्मी से मर जाने की सम्भावना है। किन्नू के पौधों को बढ़िया सिंचाई की ज़रूरत होती है। आजकल सिंचाई की ज़रूत है, परन्तु सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध नहीं होता। किन्नू फल की फसली-विभिन्नता में अहम भूमिका होने के कारण सरकार को नहरी पानी तथा ट्यूबवैलों के लिए बिजली उचित समय पर किन्नू उत्पादक क्षेत्रों में उपलब्ध करनी चाहिए।