सांसदों के निलम्बन से सरकार को हुए कई ़फायदे 

संसद सत्र के दौरान विपक्षी सांसदों को निलंबित करना सरकार के लिए बड़े फायदे का सौदा रहता है। तात्कालिक फायदा तो यह होता है कि सरकार आसानी से सारे विधेयक पारित करा लेती है। लोकसभा में तो वैसे भी सरकार के पास बहुत बड़ा बहुमत है लेकिन राज्यसभा में उसकी संख्या बहुमत से कम है। सो, सांसद निलंबित हो जाते हैं तो बहस में समय बचता है और विधेयक ध्वनिमत से दो मिनट में पारित हो जाता है। लेकिन कुछ और फायदे भी हैं, जो दिखते नहीं हैं। उनमें सबसे बड़ा फायदा यह है कि सरकार सवालों के जवाब देने से बच जाती है। शीतकालीन सत्र में संसद के दोनों सदनों के 146 सदस्य निलंबित किए गए। इन 146 सांसदों ने कुल 357 सवाल पूछे थे। सरकार को इन सवालों के जवाब नहीं देने पड़े क्योंकि सदस्यों को निलंबित करने के बाद स्पीकर और सभापति के पास यह अधिकार है कि वे उनके द्वारा पूछे गए सवालों को सूची से हटा दे। यह बहुत बड़ा फायदा है। विपक्षी सांसद ऐसे-ऐसे सवाल पूछते हैं, जिनका जवाब देने से सरकार की पोल खुलती है। कई बातों की सचाई सामने आती है। सांसद इस तरह के सवाल पूछते हैं कि देश पर कितना कर्ज बढ़ गया, अरबपतियों का कितना कज़र् माफ हो गया, कॉरपोरेट टैक्स घटाने से सरकार को कितना नुकसान हुआ, टुकड़े टुकड़े गैंग किसको कहते हैं आदि। इनके जवाब से पता चलता है कि सत्तारूढ़ दल की ओर से जो कुछ प्रचारित किया जाता है, असलियत बिल्कुल उससे अलग है। इसलिए अगर सवाल नहीं पूछे जाएं तो बहुत फायदा हो जाता है।

नए मॉडल की भाजपा सरकारें 

तीन राज्यों में विधानसभा का चुनाव जीतने के बाद भाजपा अभी तक एक भी राज्य में सरकार के गठन प्रक्रिया पूरी नहीं कर सकी है। चुनाव नतीजों के 25 दिन बीत जाने के बाद भी कहीं पूरी मंत्रिपरिषद का गठन नहीं हुआ है तो कहीं मंत्रियों की शपथ हो गई लेकिन उनके बीच विभागों का बंटवारा नहीं हुआ है। पहले तो भाजपा ने मुख्यमंत्री चुनने में ही 10 दिन का समय लगा दिया। उसके बाद तीनों मुख्यमंत्रियों की शपथ हुई और उनके साथ दो-दो उप-मुख्यमंत्रियों ने शपथ ली तो बाकी मंत्रियों की नियुक्ति अटक गई। मुख्यमंत्रियों के शपथ लेने के एक हफ्ते से ज्यादा समय बाद छत्तीसगढ़ और फिर मध्य प्रदेश में मंत्रियों की नियुक्ति हुई। लेकिन मध्य प्रदेश में अभी तक विभागों का बंटवारा नहीं हुआ है। राजस्थान में भी मुख्यमंत्री और उप मुख्यमंत्रियों की शपथ के 15 दिन बाद 30 दिसम्बर को बाकी मंत्रियों शपथ ली। इससे पहले भी जब महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे के साथ भाजपा ने सरकार बनाई तो एक महीने तक दो ही लोगों का मंत्रिमंडल काम करता रहा। बाद में भी चुनिंदा मंत्री बनाए गए। फिर एक साल के बाद जब एनसीपी का अजित पवार गुट शामिल हुआ तो उनके आठ लोगों को मंत्री बनाया गया लेकिन दस दिन तक विभागों का बंटवारा अटका रहा। पहले शपथ के तुरंत बाद ही विभागों का बंटवारा हो जाता था और मंत्री कामकाज संभाल लेते थे। लेकिन भाजपा ने अब नया मॉडल बनाया है, जिसमें सप्ताहों. महीनों तक मंत्रिपरिषद का गठन नहीं होता है और विभाग नहीं बंटते हैं।

नितीश से कांग्रेस चिंतित

बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार की राजनीतिक पैंतरेबाजी से सबसे ज्यादा चिंतित कांग्रेस है। यही वजह है कि राहुल गांधी ने नितीश को फोन करके उनके मन की थाह लेने की कोशिश की थी। हालांकि तब उन्होंने राहुल से कहा था कि सब ठीक है। लेकिन बताया जा रहा है कि नितीश कुमार और उनकी पार्टी के नेता इस बात से नाराज़ है कि जब नितीश ने ही समूचे विपक्ष को एकजुट किया तो उनको अभी तक विपक्षी गठबंधन का संयोजक क्यों नहीं बनाया गया? नितीश अपने को विपक्षी गठबंधन का स्वाभाविक नेता मान रहे थे, लेकिन गठबंधन की चार बैठक के बाद भी उन्हें कोई जिम्मेदारी नहीं मिली। उलटे पिछली बैठक में ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री पद के लिए मल्लिकार्जुन खड़गे के नाम की घोषणा कर दी, जिसका अरविंद केजरीवाल ने समर्थन किया। उसके बाद से नितीश भाजपा के प्रति खुल कर प्रेम दिखाने लगे। बताया जा रहा है कि चौथी बैठक में कांग्रेस की ओर से नितीश को संयोजक बनाने का प्रस्ताव किया जाना था। लेकिन ममता ने उस दिन अपना दांव चल दिया। अब कांग्रेस को चिंता है कि अगर नितीश को संयोजक बनाया और उसके बाद उन्होंने पाला बदल लिया तब तो विपक्षी गठबंधन पूरी तरह से पंक्चर हो जाएगा। कांग्रेस यह भी मानती है कि बिहार में भाजपा को टक्कर देने के लिए नितीश का साथ होना बहुत ज़रूरी है। उनके बगैर बिहार में भाजपा से नहीं लड़ा जा सकेगा। इसीलिए कांग्रेस और दूसरे विपक्षी नेता नितीश को लेकर दुविधा में हैं।

फिर सर्जिकल स्ट्राइक होने के आसार

जम्मू-कश्मीर में सेना के काफिले पर हुए आतंकवादी हमले के बाद एक बार फिर सर्जिकल स्ट्राइक की संभावना बढ़ गई है। हालांकि पिछले कुछ महीनों में लगातार मुठभेड़ हुई है और सेना के अधिकारी व जवान शहीद हुए हैं लेकिन पिछले सप्ताह गुरुवार को राजौरी में हुई मुठभेड़ उनसे अलग है। आतंकवादियों ने घात लगा कर सेना के काफिले पर हमला किया। हमले के तुरंत बाद सेना के जवानों ने मोर्चा संभाला लेकिन आमने-सामने की फायरिंग शुरू होने के साथ ही सेना के छह जवानों को गोली लग चुकी थी, जिनमें से तीन की तुरंत मौत हो गई और दो ने बाद में दम तोड़ा। इससे पहले भी एक मुठभेड़ में पांच जवान शहीद हुए थे। ताजा हमले के बाद सर्जिकल स्ट्राइक की संभावना के कई संकेत मिले हैं। पहला संकेत जम्मू-कश्मीर पुलिस के पूर्व महानिदेशक एसपी वैद्य ने दिया। उन्होंने कहा कि इस सुनियोजित हमले को पाकिस्तान ने अंजाम दिया है। आतंकवादियों के साथ मुठभेड़ को सीधे पाकिस्तान के साथ जोड़ना मामूली बात नहीं है। दूसरा संकेत यह है कि इस घटना से तीन दिन पहले सीमा सुरक्षा बल के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि सीमा के उस पार ढाई सौ से ज्यादा आतंकवादी भारत की सीमा में घुसपैठ करने के लिए बैठे हैं। गौरतलब है कि सर्दियों के मौसम में ही सीमा पार से सबसे ज्यादा घुसपैठ की कोशिश होती है। अगर उस पार 250 आतंकवादी बैठे हैं और सेना के पास खुफिया सूचना है तो कार्रवाई संभावना बनती ही है। 
मोदी को चरण सिंह क्यों याद आए?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 23 दिसम्बर को पूर्व प्रधानमंत्री और महान किसान नेता चौधरी चरण सिंह की जयंती के मौके पर उन्हें याद करते हुए ट्विट किया तो कई लोगों ने ध्यान दिलाया कि प्रधानमंत्री ने मई में चौधरी साहब की पुण्यतिथि पर तो उनको श्रद्धांजलि नहीं दी थी। दरअसल यह मोदी का अपनी सुविधा के मुताबिक दिवंगत नेताओं को याद करने या भूल जाने का मामला है। अभी जाट बिरादरी को लेकर चल रहे विवाद के बीच चौधरी चरण सिंह की जयंती आई तो मोदी ने भी उन्हें याद किया और दूसरी पार्टियों ने भी। गौरतलब है कि पिछले दिनों उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने अपनी मिमिक्री किए जाने को जाट समाज के अपमान से जोड़ा और भाजपा ने पूरे देश में इसे मुद्दा बनाया। उसके बाद ओलंपिक पदक जीतने वाली साक्षी मलिक ने महिला पहलवानों के यौन शोषण के आरोपी भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह का विरोध करते हुए कुश्ती छोड़ने का ऐलान किया तो यह चर्चा शुरू हुई कि क्या इससे जाट समाज और स्त्री जाति का अपमान नहीं हो रहा है? साक्षी मलिक के साथ बजरंग पूनिया और विनेश फोगाट भी मौजूद थे। भाजपा विरोधी पार्टियों ने इसे जाट समाज के अपमान का मुद्दा बनाया। इस विवाद के बीच ही चौधरी चरण सिंह की जयंती मनाई गई। सभी पार्टियों ने इस मौके का जाटों के साथ-साथ व्यापक किसान समाज तक पहुंच बनाने के लिए इस्तेमाल किया।
बृजभूषण शरण का क्या करेगी भाजपा?
केंद्रीय खेल मंत्रालय ने भारतीय कुश्ती महासंघ को निलंबित कर दिया है। हालांकि उसे भंग नहीं किया गया है और न ही चुनाव निरस्त किया गया है। फिर भी यह बड़ा फैसला है। भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह के बड़े बोल थे, जो उन्होंने अपने करीबी संजय सिंह के चुनाव जीतने पर बोले थे। उन्होंने कहा था कि दबदबा था, दबदबा रहेगा। लेकिन जाट समुदाय की नाराज़गी से बचने के लिए भाजपा ने दो दिन में दबदबा खत्म कर दिया। लेकिन अब सवाल है कि अगले साल के लोकसभा चुनाव मे भाजपा उनका क्या करेगी? क्या भाजपा फिर से कैसरगंज लोकसभा सीट पर बृजभूषण को टिकट देगी? भाजपा सूत्रों का कहना है कि पार्टी को अब राजपूत और जाट दोनों में से किसी को नाराज़ नहीं करना है। इसी वजह से कुश्ती महासंघ को निलंबित कर दिया गया है ताकि जाट समाज संतुष्ट हो जाए। इसके अलावा बृजभूषण पर कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी, क्योंकि गोंडा और आसपास में 5 से 6 लोकसभा की सीटें ऐसी हैं, जिन पर बृजभूषण शरण सिंह का खासा असर है। वैसे उत्तर प्रदेश में राजपूत वोट के लिए भाजपा को उनकी ज़रुरत नहीं है। राजनाथ सिंह और योगी आदित्यनाथ की वजह से राजपूत वोट भाजपा के साथ है। लेकिन बृजभूषण की जमीनी पकड़ इलाके में बहुत ज्यादा है और राजपूतों के अलावा दूसरी जातियों का भी समर्थन बृजभूषण के साथ है। हालांकि उनको फिर से टिकट देने में मुश्किल यह है कि महिला पहलवान उनके खिलाफ प्रचार में पहुंच सकती हैं। पार्टी को इसका कुछ समाधान निकालना होगा।