चमत्कार का इंतज़ार

इंतज़ार अपने देश के लोगों के मन में बस गया है। सपने पूरे होने का इंतज़ार धंसी आंखों को नयी चमक का सुरमा भेंट कर जाता है। कायाकल्प का इंतज़ार है सबको। मांगते हैं पेट भर रोटी, लेकिन अपने हाथों से कमायी हुई। टूटते फुटपाथ की यह नुक्कड़ नहीं, सिर पर एक खपरैल की छत, एक छोटी-सी झोंपड़ी जो हर दिन इन अट्टालिकाओं के साये तले कहीं सिर उठा सके। फिर इंतज़ार है इन झोंपड़ियों को एक चमत्कार का। अच्छे दिनों के आने का चमत्कार। शिक्षा के नये रूप रंग से कुछ इस प्रकार डिज़िटल हो जाने का इंतज़ार कि अपनी मेघा ही विकसित हो जाये, कृत्रिम मेघा के पीछे भागने की ज़रूरत न पड़े।  अपने खाली निठल्ले हाथों का काम मिल जाये। अभी रोबोट मियां का युग थोड़ा थम कर उन कम आबादी वाले देशों का भाग्य संवार दे, कि जहां काम करने के लिये पर्याप्त जन नहीं, और अपने जैसे देशों से इन्सानों की ‘डंकी’ बटालियनों का वैध-अवैध रूप से आयात करना पड़ता है, लेकिन इंतज़ार तो इंतज़ार रह गया, और डंकी तो जहां हैं वहां ही भटके रह गये। डॉलर देशों की ओर जाते-जाते म्यांमार के जंगलों में भटक जाते हैं। यह उनकी अव्वल दर्जे की ज़िन्दगी पाने की ललक के साथ अपने देश से कभी तस्कर हुए थे। अब इन में सस्ता विकास पदार्थ बन कर रह गये। अब नम्बर दो की ज़िन्दगी जीते हैं। ग्रीन कार्ड पाना आकाश कुसुम मानते हैं। उनकी नई नागरिकता कोसों दूर है, अब और भी दूर हो गई।
लेकिन अपने देश में कभी लौटते हैं, तो चमत्कार-सा लगता है। रंक भी नहीं थे, अब राजा बन कर लौटे हैं। हां चमत्कार हो गया, लेकिन इसलिये कि वहां कमाया धन विनिमय दर के चमत्कार से अस्सी गुणा हो गया। वहां हाड़ तोड़ काम, और बंधुआ मज़दूर-सा जीने को अभिशप्त लोग अपनी धरती पर पांव रखते ही अस्सी गुणा हो गये। वहां रंक थे, आज यहां राजा भी उनसे लजाते हैं, क्योंकि राजाओं के प्रिवीपर्स तो न जाने कबके बन्द हो गये।
यहां तो देश के शिक्षा सर्वेक्षण भी आपका मुंह चुराते हैं, क्योंकि यह बताते हैं कि यहां अट्ठारह साल का बारहवीं पास भी दूसरी कक्षा की जानकारी नहीं रखता। अंग्रेज़ी का एक वाक्य नहीं बोल सकता। उसे लिखना या उसका अर्थ लगाना तो उसके लिए टेढ़ी खीर है। डॉलर, पाऊंड का देश तो अंग्रेज़ी ज्ञान आपको तलाशता है, इसलिए उसके फर्जी प्रमाण पत्र बनाने वालों का धंधा यहां पनप उठा है, लेकिन फर्जी प्रमाण-पत्रों से अंग्रेज़ी का ज्ञान तो नहीं हो जाता न! गणित का ज्ञान दो सौ बाईस के आंकड़े को दो से विभाजित करने में भी असफल रह जाता है। इसलिये डंकी हो कर गया, देश का युवा धन वहां वास्तव में गदहा हो जाता है। अब गदहा पच्चीसी के सब काम उसे वहां करने होंगे, लेकिन वही अपने देश में कभी छुट्टी काट कर आये, तो अपने चेहरे पर उगी काल्पनिक मूंछें उमेठने का आभास देते हुए वह यही कहेगा कि ‘बन्धु, चमत्कार है वहां।’ यहां तो पौन सदी का अमृत महोत्सव मनाने के बाद यही हुआ, कि काम मांगते नौजवानों की जो भीड़ पहले रोज़गार-दफ्तरों के बाहर लगती थी, अब रियायती दुकानों के बाहर लगने लगी।
बहुत गरीब था न अपना देश, परन्तु हमने एक ही झटके में गरीबी को कम करने का चमत्कार कर दिया। तरीका सीधा है, ‘निर्धन कौन है?’ इसकी परिभाषा ही बदल दो। उसे निम्न मध्यवर्ग कहने लगो। जो नंगा भूखा नहीं, जिसके तन पर लंगोटी, पेट में कचरा पेटी का भोजन है, वह हुआ निम्न मध्य वर्ग और जो भूख से मृत प्राय: है, वही है गरीब। यूं हो गया न गरीबी का खात्मा एक चोर सुरंग से। ‘गारण्टी देते हैं तुम्हें, भूख से नहीं मरने देंगे। अस्सी करोड़ लोगों में रियायती गेहूं बांटने का रिकार्ड बन गया है।’ इसे पांच साल अभी और बांटने का वचन भी मिल गया, फिर क्यों परेशान हो, बन्धु! परेशानी की बजाय यह जुगाड़ भिड़ाओ मित्र, कि किसी प्रकार रियायती अनाज मांगने वालों के स्थान पर खुद यह अनाज बांटने वाला बन जाओ। भई दलाल संस्कृति है। तरक्की करो मध्यजन बनो। चुटकी बजा कर ‘सब चलता है’ का चमत्कार दिखाने वाला बन जाओ, बस फिर पौ बारह है और फिर तुम्हें राम आएंगे, हमारी झोंपड़ी में आ जायेंगे’, के सविता मिश्रा जी के मधुर भजन पर सिर नहीं धुनना पड़ेगा, बार-बार आंखें गीली नहीं होंगी। रियायती अनाज बंटने की उम्र बढ़ गयी है बन्धु, और आपकी तरक्की अनाज स्वीकारने नहीं बांटने वाले ओहदे पर हो गई। अब इस मधुर धुन को सुनते हुए अपनी झोंपड़ी में राम का इंतज़ार करोड़ों लोगों को करने दो, आप बताओ, ‘अब स्कूटी छोड़ गाड़ी कब ले रहे हो? कौन-सी गाड़ी बुक करवाओगे, छोटी या बड़ी।’
जी हां, बेशक संघर्ष करने से बेहतर है दूसरों को संघर्ष करने का संदेश देना। संदेश और प्रेरणा देने की शोभा यात्रा सजाओ, और उसकी कमाई से अपने घर की सब चिन्ता मिटाओ। बिल्कुल उसी तरह जैसे साहित्य में लिखने से अधिक है उसकी अधकचरी आलोचना करके अपनों के सिर पर ताज सजाना। अभिनंदन और पुरस्कार दिन-रात के जुनून भरे लेखन करने वालों को नहीं मिलता। अभिनंदन करने और इनाम बांटने का काम अपना लो न। मैराथान बना दो साहित्य को। जीत-हार के ढंग के अमर लेखकों के रैंक बनाओ, सूचियां जारी करो। अपनी घरेलू गोष्ठियों को राष्ट्रीय गोष्ठियां कह कर आधी दर्जन अखबारों में उसकी खबर लगाने का गुर सीख लो। बस हींग लगे न फिटकड़ी, रंग भी चोखा आ जायेगा। पुराने युग में बाप ने मेंढकी नहीं मारी थी, और बेटा तीरन्दाज़ हुआ था। अब इतना इंतज़ार क्यों? इससे चमत्कार पहले ही हो जायेगा। पलक झपकते ही तीरन्दाज़ बन जाओगे और अपने नाती-पोतों को भी बता सकोगे, कि बेटा चमत्कार का इंतजार क्यों? लिखो नहीं, लिखने की प्रेरणा दो। मेहनत नहीं, मेहनत करने का सन्देश दो। अनुकम्पा के रास्ते बनाओ, चमत्कार हो जायेगा।