चिन्ताजनक है बढ़ती आर्थिक असमानता

भारत में आर्थिक असमानता का सिलसिला सदियों से चलता आ रहा है। हज़ारों वर्ष पहले राजशाही के दौर में सिर्फ बादशाह ही नहीं, अपितु उनके साथ  भिन्न-भिन्न स्तरों पर विचरण करते सैकड़ों या हज़ारों ऐसे लोग थे, जो लाखों एवं करोड़ों व्यक्तियों पर शासन करते थे। उस समय बल प्रयोग से धन एकत्रित किया जाता था तथा उसके दम पर जन-साधारण को ़गरीबी में धकेल दिया जाता था। इस प्रकार पिस रहे लोगों की किसी तरह की कोई सुनवाई नहीं थी। इसी कारण जागीरदारी के दौर में लाखों ही लोग कुछ व्यक्तियों की अधीनता में रहते हुये ़गुलामों जैसी एवं ़गरीबी भरी ज़िन्दगी जीने के लिए विवश थे।
उपनिवेशवादी दौर में यह सिलसिला लगभग पहले जैसी तज़र् पर ही चलता रहा चाहे इसके ढंग-तरीकों में बदलाव ज़रूर आया। भारत में अंग्रेज़ों के विदेशी शासन के समय अंग्रेज़ों ने, सैकड़ों ही राजाओं एवं मंत्रियों ने तथा हज़ारों ही उनके अहलकारों ने लोगों से खूब लूट-पाट की। उस समय बहुत भयावह अकाल भी पड़ा एवं महामारियां भी आईं, जिनमें लोग मच्छरों-मक्खियों की तरह मरते रहे। उनकी आह तक सुनाई नहीं दी। ऐसे समय में बस एक अदृश्य भगवान के भिन्न-भिन्न संकल्पों ने उनकी ज़िन्दगी का ढाढस बंधाये रखी, ऐसे ढाढस का सिलसिला आज भी जारी है। देश को आज़ादी मिलने के बाद तथा जन-साधारण को वोट का अधिकार दिये जाने के उपरांत पिछले 75 वर्ष में प्रत्येक क्षेत्र में अनेकानेक बदलाव आये। देश भिन्न-भिन्न मार्ग पर चलते हुये विकास करता रहा। नव-निर्वाचित सरकारों ने आर्थिक योजनाबंदी को अपनी सक्रियता का आधार बनाया परन्तु इस पूरे समय में आर्थिक असमानता भी बेहद खटकती रही,परन्तु इसे दूर नहीं किया जा सका।
इस समय में भिन्न-भिन्न देशों में नागरिकों को समान एवं सम्मान वाला जीवन देने के लिए इन्कलाब भी आये। उनका प्रभाव भी भारत सहित विश्व भर में देखा गया परन्तु आज वह भी अपने निर्धारित लक्ष्यों में आधे-अधूरे ही सफल हुये हैं या कई देशों में बेहद पिछड़ गये प्रतीत होते हैं। आज़ादी के बाद भी भारत में आर्थिक असमानता का पलड़ा भारी ही दिखाई देता रहा। आज तक भी यही सिलसिला जारी है। पिछले दिनों इस विषय पर बड़े अर्थ-शास्त्रियों के संगठन, जिसे विश्व असमानता अनुसंधान (द वर्ल्ड इनइकुएलिटी लैब) का नाम दिया गया है, की ओर से दी गई एक रिपोर्ट में भारत के संबंध में बेहद चिन्ताजनक एवं बेचैन करने वाले परिणाम निकाले गये हैं। इस रिपोर्ट के अनुसार पिछले एक सौ वर्ष में भारत में अरबपतियों के राज का उभार हुआ है। आज हालत यह हो गई है कि वर्ष 2022-23 में देश में सबसे अमीर एक प्रतिशत आबादी की राष्ट्रीय आय में भागीदारी 22 प्रतिशत से भी अधिक हो गई है। 1980 वाले दशक में यह तेज़ी से बढ़नी शुरू हुई थी, जो लगातार बढ़ती ही गई है तथा यह असमानता ब्रिटिश शासन के मुकाबले में कहीं अधिक हो चुकी है। इस ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार आज एक प्रतिशत लोगों के पास 40 प्रतिशत से अधिक पूंजी है। कांग्रेस ने इसके लिए मोदी सरकार को ज़िम्मेदार ठहराया है परन्तु देश की आज़ादी के समय भी यहां बिरला, टाटा तथा डालमिया मौजूद थे। उस समय उनकी गिनती सैकड़ों में थी। अब बढ़ कर हज़ारों में हो चुकी है।
आज चाहे करोड़ों ही लोगों को ़गरीबी से बाहर निकालने का दावा किया जा रहा है। करोड़ों ही लोगों को मुफ्त अनाज एवं अन्य सुविधाएं भी दी जा रही हैं परन्तु इसके साथ-साथ आर्थिक असमानता के लिए बड़े पग उठाने एवं गम्भीर योजनाबंदी की ज़रूरत होगी। नि:संदेह लगातार बढ़ रही यह आर्थिक असमानता जनतांत्रिक भावना को धूमिल कर रही है। ऐसी असमानता के होते हुये लोकतंत्र अधूरा प्रतीत होता है। आज हर यत्न से इस दरार को भरा जाना बेहद ज़रूरी है।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द