चुनावी बॉन्ड और इसकी अनुगूंज

अब जबकि चुनावी बॉन्ड रद्द हो चुके हैं, उनकी खरीददारी ने लोकतंत्र के बुनियादी आधार पर कहीं तो हमला किया जान पड़ता है। चुनावी बॉन्ड 2018 में लागू हुए थे। गृह मंत्री अमित शाह ने एक सम्मेलन में बताया कि इनके लाने का मकसद काले धन के चलन को हटाना है। यह भी कहा कि इस व्यवहार से पहले क्या धन का लेन-देन नहीं होता था। होता था परन्तु लेने वाला भी चुप था और देने वाला भी। इसके माध्यम से देने वाले के खाते में तथा पाने वाले के खाते में साफ अंकित होता है कि इतनी राशि दी गई। शीर्ष खरीददार, फ्यूचर गेमिंग एंड होटल सर्विसेज़ ने इसके माध्यम से तमिलनाडू की सत्तारूढ़ पार्टी द्रमुक को 309 करोड़ रुपये का दान दिया। निर्वाचन आयोग ने ये आंकड़े हाल ही में जारी किये हैं। भाजपा को 2018 में चुनावी बॉन्ड योजना लागू होने पर बॉन्ड के माध्यम से सबसे अधिक 6986.5 करोड़ की धन-राशि प्राप्त हुई है दूसरे नम्बर पर तृणमूल कांग्रेस है और तीसरे नम्बर पर कांग्रेस। इस संबंध में टिप्पणी करने कोई पार्टी के शीर्ष नेता नहीं आएंगे। क्योंकि इसका लेन-देन कम या ज्यादा सभी राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टियों ने किया है। 
आज तक विश्व भर में भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था की खूब प्रशंसा होती रही है। वह इसलिए कि आज़ादी के बाद यहां इक्का दुक्का घटना को छोड़ कर निष्पक्ष चुनाव करवाये जाते रहे हैं। एक ऐसी व्यवस्था जिसमें जिसकी लाठी उसकी भैंस की कोई जगह नहीं बनती। चुनाव आयोग भी चुनावी प्रक्रिया में जाने से पहले चुनाव में बल प्रयोग, धन प्रयोग के सख्त खिलाफ रहने की एडवाइज़री जारी करता है। अफ्रीका, यूरोप के देश सभी को भारतीय लोकतंत्र पर भरोसा है। लेकिन इस बार हुए खुलासे से जो तकनीकी चातुरी सामने आई है उसने  विश्वास और आस्था पर चोट की है। राजनीतिक पार्टियां तो स्मार्ट साबित हुई हैं परन्तु जनता का भरोसा छला गया है। भारतीय चुनाव व्यवस्था को लेकर जो सम्मान हासिल है, वह खंड-खंड हो जाएगा। भारत को यह रूतबा फिर से पाना होगा। आशंका इसलिए पैदा हुई कि उच्चतम न्यायालय ने 12 फरवरी, 2024 को चुनावी बॉन्ड योजना रद्द कर दी। फिर इस योजना के तहत बिके बॉन्ड, उनकी कुल राशि और किसके द्वारा खरीदे गये हैं तथा किसे वे मिले जैसी पूरी जानकारी मांग ली जिसके लिए पहले तो स्टेट बैंक ने टालने की कोशिश की। सुप्रीम कोर्ट ने कोई भी बहाना सुनने से इन्कार करते हुए जब सख्ती दिखाई और कहा कि इसके बिना सारा मकसद ही फालतू चला जाएगा और भारतीय स्टेट बैंक को सख्ती से बॉन्ड संबंधी  पूरी जानकारी देने को कहा तब जानकारी देने पर राजी हुआ। लेकिन अभी भी इस लिस्ट को पूरा नहीं माना जा रहा। अनुमान लगाया जा सकता है कि भारतीय स्टेट बैंक पर किसी किस्म के दबाव रहे होंगे। या उनको पता था कि ऊपर से सही लगने वाले बॉन्ड में कितना बड़ा घपला है और किस किस्म के नैतिक अंकुश? इस सूची से जो खुलासे हुये हैं इनमें मार्टिन सैंटियागो का नाम है। इस लाटरी किंग ने 1368 करोड़ का चंदा दिया है। कम्पनी ने ये बॉन्ड 21 अक्तूबर, 2020 से जनवरी 2024 के बीच खरीदे।
अब जबकि चीज़ें काफी हद तक साफ हो चुकी हैं। भारत में लोकतंत्र के निर्वाह के लिए प्रयत्न फिर से किये जा सकते हैं जिसके लिए भारत को बड़े लोकतंत्र वाले देश की शौहरत मिली है।