रूस के लिए लड़ रहे भारतीय कब लाए जाएंगे वापस ?

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने एक बार फिर भरोसा दिलाया है कि जबरिया तौर पर जिन भारतीयों को रूसी सेना में शामिल करके यूक्रेन के मोर्चे पर लगाया गया है, उन्हें जल्द और सुरक्षित वापस वतन लाया जाएगा। उनका यह बयान अल ज़ज़ीरा, द इंडिपेंडेट, द इकॉनमिस्ट जैसे अखबारों, वेबसाइटों और पत्रिकाओं में छपा है। हालांकि भारतीय मीडिया ऐसी खबरें 20 फरवरी से ही प्रकाशित रहा था कि रूस की इस कारगुजारी के कारण बहुत-से अप्रशिक्षित भारतीय जवानों की जान खतरे में है। 29 फरवरी को सरकार ने इसका संज्ञान लिया और तब विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रणधीर जायसवाल ने कहा था कि कुल 20 भारतीय फंसे हैं, जो ज्यादा वेतन पर नौकरी अथवा सेना में हेल्पर के बतौर काम करने के नाम पर युद्ध के हालात में रूस न जाने की हमारी चेतावनी को अनदेखा कर वहां गये। 
ये लोग रूस और संयुक्त अरब अमीरात में बैठे एजेंटों द्वारा रूस भेजे गये। एजेंटों की धरपकड़ और मानव तस्करी के आरोप में उन पर कार्यवाई जारी है। पर डेढ़ महीने बाद भी कोई उल्लेखनीय प्रगति नहीं हुई। अब जब अंतर्रष्ट्रीय मीडिया ने इस बावत रिपोर्टें प्रकाशित की हैं कि भारत, नेपाल, श्रीलंका, अफगानिस्तान, ताजिकस्तान वगैरह के बहुत से युवा रूसी सेना के लिये अग्रिम मोर्चे पर लड़ रहे हैं, तब इस ओर सरकार ने सक्रियता तेज़ की है और अब सरकार गंभीर भी दिख रही है। एस जयशंकर के बयान के बाद उम्मीदें बढ़ गई हैं कि जल्द ही भारतीय नौजवानों की सुरक्षित वापसी हो सकेगी और जटिल होते जा रहे इस मामले को सरकार सफलता पूर्वक निबटा लेगी। हालांकि यह इतना आसान नहीं है, विदेश मंत्रालय को अभी यह भी पता नहीं है कि कुल कितने भारतीय रूसी सेना के लिये काम कर रहे हैं। सूत्र इनकी संख्या सौ से अधिक बताते हैं तो विदेश मंत्रालय महज 20 बता रहा है। बहुत से भारतीय ऐसे दुर्गम इलाके में तैनात हैं, जहां सूचना पहुंचना और उनकी वापसी का प्रबंध करना दुष्कर है। रूसी सेना ने भारतीय जवानों को जिस नियम और शर्तों पर अनुबंधित किया है, वह संवैधानिक तौर पर बहुत पुख्ता नहीं है। अब चूंकि रूसी सेना की इस मामले में गलती है इसलिए बहुत सहयोग नहीं कर रही है। ऐसे में यह प्रक्रिया जटिल और लम्बी हो सकती है। 
भारतीय जवानों को एक महीने का सैन्य प्रशिक्षण देकर अग्रिम मोर्चे पर भेजे जाने की बात रूसी सेना ने कही थी, परन्तु उन्हें महज 15 दिनों का प्रशिक्षण दिया। ऐसे में उन अल्प प्रशिक्षित नौजवानों की जान पर निरन्तर खतरा बना हुआ है। मंत्रालय के प्रयासों में देरी से उनमें से कुछ की जान जा सकती है। अल ज़ज़ीरा के अनुसार 5 श्रीलंकाई, 12 नेपालियों के साथ दो भारतीय जवान अब तक मारे जा चुके हैं, कथित तौर पर कुछ यूक्रेनी सेना के बंदी भी हैं। घायलों और मृतकों की संख्या बढ़ने के साथ भारत पर दबाव बढ़ जायेगा। उधर अमरीकी और यूरोपीय मीडिया ऐसी खबरें प्रकाशित कर यह बताना चहता है कि रूस युद्ध में कमज़ोर पड़ रहा है। उसके पास सैनिकों की कमी है और वह भाड़े के सैनिक इस्तेमाल कर रहा है। यह भी कि भारत को अपने नागरिकों की जान की चिन्ता नहीं है।
भारतीयों की जान के अलावा ऐसी खबरों के जरिये देश की अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बदनामी की भी बात है। ज़्यादातर विदेशी मीडिया इस बात पर जोर देता दिख रहा है कि भारत सरकार विश्व में सबसे तेज़ विकास के दावे के साथ शीघ्र ही संसार की चौथी बड़ी आर्थिक शक्ति बनने की बातें करती है, लेकिन वहां के लोग रोज़गार और बेहतर पैसे की लालच में जान देने को तैयार हैं। उनके अनुसार भारत में गुणवत्तापूर्ण नौकरियां, बेहतर कमाई तथा अच्छे वेतन के अवसर बेहद संकुचित हैं। भारत सरकार ने निर्माण और नर्सिंग क्षेत्र में काम करने के लिये 40 हज़ार भारतीय मज़दूरों को इज़राइल भेजने का अभियान चलाया था। भर्ती हुए बहुत से मज़दूरों को असुरक्षित स्थितियों वाले युद्धग्रस्त क्षेत्रों में काम करने पर मजबूर किया गया। बांग्लादेश, पाकिस्तान, नेपाल तथा श्रीलंका, अफगानिस्तान वगैरह से मजदूरों का जाना आम हो सकता है, सभी गरीब या हालिया कुछ बरसों में आर्थिक तौर पर टूटे देश हैं,लेकिन भारत से पैसों के लालच में युवाओं का इस तरह पलायन करना उनके अनुसार यहां के नौजवानों में कामकाजी भविष्य के प्रति घोर निराशा का द्योतक है। अपनी बातों की पुष्टि के लिये वे भारत से पलायन की दर बहुत ज्यादा होने की दलील देते हैं। पंजाबी ब्रिटेन और कनाडा, तमिलनाडु के लोग सिंगापुर और दक्षिण भारतीय खाड़ी के देशों में जा रहे हैं। हालांकि ये लोग स्थाई नौकरियों और बेहतर अवसर के लिये इन सभी देशों में जा रहे और वहां बस रहे हैं, लेकिन तात्कालिक लाभ के लिये इज़राइल और रूस चले जाना भारतीय नौजवानों की रोज़गार के प्रति बेचैनी और पैसों की लालच के चरम को दर्शाता है। इस अवसर का लाभ उठाने के लिये सभी दलाल सक्रिय हैं। अफसरशाही को इनके प्रति सतर्क रहना होगा। भारत में विदेश जाकर कमाने का शौक कुछ ज्यादा है। विदेश जाने को आतुर लोग कोई भी रास्ता अख्तियार करने, लाखों खर्च करने को तैयार रहते हैं।
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