‘हम भ्रष्टन के, भ्रष्ट हमारे’

हिन्दी के प्रख्यात व्यंग्यकार शरद जोशी की पुस्तक का शीर्षक ‘हम भ्रष्टन के, भ्रष्ट हमारे’ कैसी भी परिस्थिति हो, सटीक ही बैठता है। यह दस बीस या सौ पचास साल की स्थिति हो, ऐसा न लगकर महसूस होता है कि युगों से यही सत्य है। 
सुखद बयार का आनंद ही कुछ और है। चुनावी हवा चल रही है, झोंके से लेकर बादल गरजने और फिर तड़ातड़ मूसलाधार बारिश होने के संकेत मिल रहे हैं। न जाने कब और कहां वर्षा होने लगे, कुछ नहीं कहा जा सकता। सभी तरह के दृश्य बन और बिगड़ रहे हैं। प्रेम, करुणा, भय, आश्चर्य, निराशा और हास्य के प्रसंग उभर रहे हैं। पहले सुख प्राप्त होने जैसा लेकिन तुरंत ही दु:ख जैसा अनुभव होने लगता है।
हमारे देश की यह विडम्बना ही कही जाएगी कि यहां चुनाव को एक शौक की तरह लिया जाता है। उसे पर्व या त्यौहार की चाशनी में लपेटकर परोसा जाता है। हमें यह चुनने का अधिकार दिया जाता है कि हमारे भविष्य का निर्माण या उसके साथ खिलवाड़ करने की ज़िम्मेदारी किस को दें। यह कौन होगा अर्थात् किसी उम्मीदवार को तय करने में हमारी कोई भूमिका नहीं होती, यह वे लोग तय करते हैं जो अपने नफे -नुकसान का जोड़-घटा कर जनता के सामने आते हैं और घोषित कर देते हैं कि यही है जो हमारा पालनहार और देश का कर्णधार बनेगा। इसी व्यवस्था के कारण चुनाव लड़ने वालों में तरह-तरह का अपराध करने वाले मिल जाएंगे। हत्यारे मिलेंगे तो दुष्कर्मी भी, घोटाले करने वाले होंगे तो सज़ा प्राप्त भी होंगे। छिछोरेपन की सभी मर्यादाएं लांघते हुए और अपनी दबंगई के कारण आतंकित करने वाले भी मिलेंगे। आप खोजते रह जाएंगे कि कोई तो ऐसा हो जो बेदाग हो, वास्तव में जनहित के लिए समर्पित हो और जिसके चुने जाने पर अफसोस न हो। 
अपवाद सभी जगह होते हैं, इसलिए यहां भी हैं लेकिन काजल की कोठरी में कैसा ही भलामानुस जाये, वह बाहर निकलने तक भला ही बना रहेगा, इसकी कोई गारंटी नहीं है। इसलिए चुनाव ऐसा महंगा शौक है जिसे पूरा करने के लिए धन, बल और एक तरह का ऐसा दिमाग चाहिए जो रंग बदलने में माहिर हो। जब कभी आपको अवसर मिले तो अपने व्यवसाय, रोज़गार, काम या वैसे ही घूमने-फिरने जाने पर स्थानीय लोगों के मन की बात जानने के लिए उनसे पूछिए कि आपके यहां कैसा चल रहा है। थोड़ा-सा कुरेदने पर बहुत ही ऐसी बातें सुनने को मिलेंगी कि आश्चर्य से आपका मुंह खुला का खुला रह जाएगा।
 सोचने लगेंगे कि यह कह क्या रहा है, क्या यही सच है? पता चलेगा कि यहां के जो विधायक या सांसद हैं, उनका पढ़ाई-लिखाई से चाहे कोई वास्ता न हो लेकिन भीड़ जुटाने की कला में माहिर हैं। यह भी सुनने को मिलेगा कि घर में बहुत ज़्यादा लोग थे और पैसे की भी कमी नहीं तो घर में ऐसा लड़का जो निठल्ला है, उसे नेताई करने में डाल दिया। घर परिवार में ऐसे बहुत-से काम होते हैं जिनके लिए सरकारी मंज़ूरी चाहिए होती है तो यह लड़का वही सब करा लिया करेगा। साथ में इलाके के लोग भी प्रभावित होंगे कि देखो जिसे निकम्मा समझते थे, वही सबसे अधिक काम का निकला। 
एक सुझाव है अगर समझ में आये 
यह तो सब ही जानते हैं कि चाहे चुनाव का शौक हो या अपने क्षेत्र की दशा सुधारने की सोच अंगड़ाई ले रही हो, जो गलत होता दिख रहा हो, उसे ठीक करने की इच्छा पनप रही हो या फिर यह मन में आ रहा हो कि बहुत कर ली पढ़ाई-लिखाई, डिग्रियां भी ले लीं और अब शिक्षित होकर कुछ ऐसा किया जाये कि तस्वीर बदल सके। अब जैसा कि कहते हैं, सोचने में क्या जाता है, कौन से इसमें पैसे लगते हैं। 
सुझाव यह है कि व्यापार जगत से जुड़े एक निश्चित टर्नओवर हासिल करने के बाद अपने पंख फैलाने को आतुर व्यापारियों पर एक ऐसा टैक्स लगाया जा सकता है जो सिर्फ एक मद में जमा हो और वह है देश में होने वाले चुनावों में उम्मीदवारों द्वारा किया जाने वाला खर्चा। किसी पार्टी को चुनावी फंड या बॉन्ड खरीदकर देने से अलग इस व्यवस्था में सरकारी कोष से उन लोगों के चुनाव की फंडिंग की जाये जो राजनीति को अपना कैरियर बनाना चाहते हैं। एक अलग से चुनाव मंत्रालय जैसे किसी विभाग के गठन के बारे में राज्य और केंद्र सरकार एक पारदर्शी व्यवस्था करने के लिए विधान मंडल और संसद में इसके लिए नियम बना सकते हैं, बाकायदा बजट घोषित कर सकते हैं। जिस क्षेत्र में प्रत्याशी को जितनी सुविधाएं ज़रूरी हैं, वे उसे सरकारी स्तर पर मुहैया करा दी जायें तो फिर कौन शिक्षित या योग्य तथा राजनीतिक कौशल से दो-दो हाथ कर सकने की क्षमता रखता हो, चुनाव लड़ने से परहेज़ करेगा। 
यदि यह व्यवस्था हो जाये तो राजनीतिक चंदे, दो नंबर के पैसे और चुनाव के लिए सभी तरह से धन जुटाने की ज़रूरत वाली मानसिकता से मुक्ति मिल सकती है। अभी योग्यता को छोड़कर बाकी सब बातों जैसे मतदाताओं को प्रभावित करने की ताकत का ध्यान रखकर उम्मीदवारों का चयन किया जाता है। नई व्यवस्था में बिना पक्षपात, बिना रसूख और बिना किसी भय के चुनाव लड़ने की इच्छा और योग्यता रखने वाले सामने आ सकेंगे। a