विदेशों तक ख्याति पा चुके हैं पोकरण के पोट्स

राजस्थान की मरुभूमि अपनी संस्कृति और कला के क्षेत्र में भी अपनी विशेष पहचान रखती है। ग्रामीण अंचलों में विषम परिस्थितियों के बीच जीवन-यापन करने वाले यहां के ग्रामीणों के पास कला के अनूठे भंडार है, जिसकी वजह से उनकी कला की ख्याति आज विदेशों तक पहुंच चुकी है। हस्तशिल्प के क्षेत्र में यहां के पारखी कलाकारों ने समय-समय पर देश-विदेश के कोने-कोने तक जाकर अपनी कला का लोहा मनवाया है। यही वजह है कि पोकरण के कुंभकारों के हाथों से निर्मित कलात्मक पोट्स विदेशों में इतने लोकप्रिय हो गए हैं कि जैसलमेर आने वाला हर पर्यटक कुम्हारों की कला का प्रेमी बन जाता है।
पोकरण को लाल मिट्टी से निर्मित बर्तन व विभिन्न आकृतियां यहां की अनूठी कला के बेजोड़ नमूने हैं जो देश-विदेश के पर्यटकों के ड्राइंगरुम की शोभा बढ़ा रहे हैं। यहां के कुम्हारों के मुहल्ले में मिट्टी के कलात्मक खिलौने व आकृतियों को रुप देने वाले सौ से एक सौ बीस परिवार हैं। ये कलाकार विगत एक दशक से विभिन्न कलाकृतियों का निर्माण करने में निमग्न हैं। पोकरण शहर के दक्षिण भाग में स्थित भवानी पोल के बाहर निकलते ही कुम्हारों के घरों के बाहर सजी ये मनमोहक कलाकृतियां बरबस ही सभी का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करती हैं। अपनी कल्पना से एक से बढ़कर एक सुंदर कलाकृतियों में ये कलाकार राष्ट्रीय पशु, पक्षी, राष्ट्रीय चिन्ह अशोक स्तंभ की प्रतिकृति, लोक बालाओं को मूर्तियां, प्रमुख महापुरुषों की मूर्तियां, देवी-देवता, घंटियां, जलचर के साथ उल्टा दीपक आदि ऐसी कलाकृतियां हैं जो इनके उच्च प्रतिमानों दर्शाती हैं। 
आज से दस वर्ष पूर्व तक ये कलाकार परंपरागत मिट्टी के बर्तन ही बनाते थे, लेकिन इनकी किस्मत ने तब पलटा खाया जब मिट्टी के इन बेजोड़ कलाकारों के सामने आने वाली समस्याओं के समाधान के लिए तथा इनकी कलाकृतियों को उचित मूल्य दिलाने के लिए जयपुर की एक संस्था ‘रुरल नॉनफॉर्म डेवलपमेंट एजेंसी (रुडा)’ ने यहां पर इनकी एक रजिस्टर्ड समिति का गठन कर यहां के कुम्हारों को समय-समय पर प्रशिक्षण शिविरों में मार्गदर्शन देने के साथ-साथ अत्याधुनिक सामान भी उपलब्ध करवाने की मुहिम शुरू की। रुडा संस्था के स्थानीय समिति के अध्यक्ष दुर्गाराम ने बातचीत के दौरान जानकारी देते हुए बताया कि हमें अब मिट्टी पीसने की मशीन, मिट्टी खुदाई की मशीन, मिट्टी की टाइल बनाने तथा कलाकृतियों पर रंग करने की स्प्रे मशीन उपलब्ध करवाने के साथ-साथ गैस भट्टियों में खिलौने पकाने की भी सुविधाएं मुहैया करवायी हैं। कलाकारों की समस्याओं के समाधान हेतु यहां रुडा संस्था का कार्यालय भवन तक बना लिया गया है। 
पोकरण के कुंभ कलाकार विदेशों में लगने वाले हस्तशिल्प मेलों तक में अपनी कला के साथ शिरकत कर आएं हैं। यहां के कलाकार जापान, फ्रांस, इटली, अमरीका व खाड़ी देशों तक जा चुके हैं। कला के इस पुश्तैनी धंधे से जुटने के बाद यहां के कुम्हारों की आर्थिक स्थिति सुधरी है। उन्हें अब गधों पर मिट्टी नहीं ढोनी पड़ती है, बल्कि ट्रेक्टरों पर आस-पास के तालाबों के पास की मिट्टी लाकर उसे मशीनों में पीसकर कलाकृतियों के लायक मिट्टी तैयार करने में मदद मिलती है। 
पोकरण के इन कुंभ कलाकारों को ख्याति दिलवाने के साथ कुछेक परेशानियां भी झेलनी पड़ती हैं। कुंभकारों को शिकायत है कि लघु हस्तकला शिल्पकला को प्रोत्साहन देने के लिए उन्हें मशीनें तो दिलवा दी गई हैं, लेकिन बिजली का खर्च अधिक आने से उसकी अदायगी संभव नहीं हो पाती है। इन कलाकारों को यह दु:ख भी है कि बड़ी-बड़ी पार्टियां हस्तशिल्प मेले में उनके द्वारा माल खरीदकर ऊंचे दामों में बेचकर मालामाल हो रही है। उनके अनपढ़ होने का बड़े व्यापारी पूरा लाभ उठाते हैं, जिससे इनकी मेहनत का बड़ा हिस्सा इन पार्टियों की जेबों में चला जाता है। हालांकि इन कुंभकारों की जीवनशैली में सुधार तो अवश्य आया है फिर भी कर्ज में डूबे कई परिवार अपनी किस्मत चमकाने के लिए रात-दिन एक से बढ़कर एक कलाकृतियां बनाकर बाज़ार में अलग पहचान बनाने में जुटे हैं।
मिट्टी में मिट्टी न हों इनकी कला तो निश्चय ही राज्य सरकार व लघु कुटीर उद्योग-धंधे से जुड़े बड़े-बड़े व्यवसायों को भी इन्हें भरपूर मेहनताना देना चाहिए, ताकि ये कलाकार और आगे बढ़ सकें। फिलहाल तो विदेशी पर्यटक ही ऊंचे दाम देकर इनकी कला को खरीद रहे हैं।


महामंदिर गेट, जोधपुर (राजस्थान)
मो-82094-74266