एएमयू की पहली महिला उपकुलपति नईमा खातून

भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने नईमा ख़ातून को अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) का उपकुलपति नियुक्त किया है। यह अप्रत्याशित व ऐतिहासिक है। एएमयू के सौ वर्ष से अधिक के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है, जब एक महिला को इस केंद्रीय विश्वविद्यालय का उपकुलपति बनाया गया है। यह स्वागतयोग्य कदम है। अपनी नियुक्ति से पहले नईमा ख़ातून एएमयू महिला कॉलेज की प्रधानाचार्य थीं। वह शांतचित्त (लेवल-हेडेड) टीम प्लेयर हैं यानी सबको साथ लेकर चलती हैं और अपने सहयोगियों में ज़िम्मेदारी बांटना पसंद करती हैं। उनके सहकर्मी उन्हें प्रगतिशील शख्सियत के रूप में देखते हैं जो विश्वविद्यालय के धर्मनिरपेक्ष चरित्र को बरकरार रखेंगी और कैंपस पर जो चुनौतियां हैं, उनका सरल व सही समाधान निकाल लेंगी।
जो लोग चयन की लम्बी प्रक्रिया को करीब से देख रहे थे, उनके लिए नईमा ख़ातून की नियुक्ति आश्चर्य के रूप में नहीं आयी है। जब से एएमयू की छात्रा व सीनियर स्टाफ रहीं नईमा अख्तर को जामिया मिलिया इस्लामिया का उपकुलपति नियुक्त किया गया था, तब से यह मांग तेज़ होती जा रही थी कि एएमयू में भी किसी महिला को ही उपकुलपति बनाया जाये। जब नईमा ख़ातून का नाम एग्जीक्यूटिव काउंसिल से प्रस्तावित किया तब से उन्हीं का नाम सबसे आगे चल रहा था। काउंसिल ने पांच नाम पेश किये थे, जिनमें कानून के माहिर फैजान मुस्तफा का नाम भी शामिल था। बहरहाल, इसे केवल संयोग नहीं कहा जा सकता कि जिस दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अलीगढ़ में चुनावी सभा संबोधित करनी थी, उसी दिन केन्द्रीय शिक्षा मंत्रालय ने नईमा खातून का नियुक्ति पत्र जारी किया। इसलिए इस नियुक्ति को इस रूप में भी देखा जा रहा है कि भाजपा सरकार मुस्लिम महिलाओं में अपनी पैठ बनाने का प्रयास कर रही है। 
गौरतलब है कि एक वर्ष के एक्सटेंशन के बाद उपकुलपति तारिक मंसूर 2 अप्रैल, 2023 में रिटायर हो गये थे, इसके अगले दिन वह भाजपा के सदस्य बने और फिर उन्हें उत्तर प्रदेश की विधान परिषद का नामंकित सदस्य बना दिया गया। तारिक मंसूर के बाद प्रोफेसर मुहम्मद गुलरेज़ उपकुलपति की भूमिका निभा रहे थे। उन्होंने ही नईमा ख़ातून को चार्ज सौंपा है। मुहम्मद गुलरेज़ नईमा ख़ातून के पति हैं। दिलचस्प यह है कि 1920 में एएमयू की संस्थापक कुलपति सुल्तान जहां थीं, जो भोपाल की बेगम थीं। तब से अब तक एएमयू की कम से कम तीन छात्राएं देश के सर्वश्रेष्ठ विश्वविद्यालयों की उपकुलपति बन चुकी हैं, जिनमें नीलिमा गुप्ता भी शामिल हैं, जो वर्तमान में सागर विश्वविद्यालय, मध्य प्रदेश की उपकुलपति हैं, लेकिन एएमयू कोर्ट को इस सम्मानित पद के लिए योग्य महिला का नाम प्रस्तावित करने में सौ से अधिक वर्षों का समय लगा। जानकारों का कहना है कुछ परम्पराएं और एएमयू की रिहायशी प्रवृत्ति ने शायद किसी महिला को टॉप पोस्ट हासिल करने से रोके रखा। मालूम हो कि महिला को उपकुलपति बनाने का विचार नया है; क्योंकि शिक्षा का क्षेत्र भी पितृसत्तामकता से मुक्त नहीं है।
नईमा ख़ातून ओडिशा की रहने वाली हैं। वह हाई स्कूल करने के बाद 1977 में अलीगढ़ आयीं और हॉस्टल में शिफ्ट होने से पहले कुछ दिनों तक एएमयू के रिटायर्ड प्रोफेसर कफील अहमद कासमी के परिवार के साथ रहीं, जो स्वयं ओडिशा से हैं। उन दिनों ओडिशा की लड़की के लिए शिक्षा हेतु अलीगढ़ ट्रेवल करना व शिफ्ट होना दुर्लभ था। बहरहाल, नईमा ख़ातून ने एएमयू से मनोविज्ञान में पीएचडी की और उसी विभाग में 1988 में उनकी बतौर लेक्चरार नियुक्ति हो गई। वह 2006 में प्रोफेसर बनीं। वह अपने विभाग में निरंतर पदोन्नति पाती गईं और फिर 2014 में वह महिला कॉलेज की प्रधानाचार्य नियुक्त हुईं। उनकी सहकर्मियों का कहना है कि वह टीम व्यक्ति हैं, जो मनोविज्ञान में अपनी ट्रेनिंग का भरपूर इस्तेमाल करती हैं। वह इंसान की सोच को बहुत अच्छी तरह से समझती हैं और बिना किसी की भावनाओं को आहत किये हुए प्रशासनिक समस्याओं के समाधान करने का हुनर जानती हैं। नेतृत्व के गुण उनमें पैदायशी हैं। अपने कॉलेज के दिनों में वह छात्र यूनियन की नेता थीं और वह विभिन्न प्रशासनिक पदों पर सफलतापूर्वक कार्य कर चुकी हैं। 
इस बीच विभिन्न स्टेकहोल्डर्स चाहते हैं कि नई उपकुलपति विश्वविद्यालय में मनमज़र्ी की संस्कृति पर विराम लगाएं और जो अमान्यता प्राप्त तत्व रिहायशी होस्टलों में प्रवेश कर गये हैं, उन्हें बाहर निकालें। नईमा ख़ातून से एक अन्य उम्मीद यह है कि वह लोकतांत्रिक संस्थाओं जैसे छात्र यूनियन को फिर से पटरी पर लायें। नईमा ख़ातून के समक्ष कानूनी चुनौती भी हैं; क्योंकि उनकी नियुक्ति को इलाहाबाद हाईकोर्ट में इस आधार पर चुनौती दी गई है कि उनका नाम उस कमेटी ने शोर्ट लिस्ट किया, जिसके प्रमुख उनके पति मुहम्मद गुलरेज़ थे। गुलरेज़ का कहना है कि विश्वविद्यालय के नियमों का पालन किया गया था और उन्हें व नईमा ख़ातून को स्वतंत्र व्यक्तियों के रूप में देखा जाना चाहिए। अलीगढ़ मुस्लिम टीचर्स एसोसिएशन (एएमयूटीए), जिसने पहले चयन प्रक्रिया पर प्रश्न उठाये थे, ने अब नईमा ख़ातून की नियुक्ति का स्वागत किया है। एसोसिएशन ने एक पत्र के माध्यम से उम्मीद की है कि वह निष्पक्ष, पारदर्शी व वाजिब रहेंगी। -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर