आगरा में स्थित बेबी ताज यानि एत्माद्दौला

मैं ऐतिहासिक शहर यानी ताजमहल की नगरी आगरा में था। हालांकि अप्रैल व उसके बाद के महीनों में आगरा की गर्मी अधिकतर लोगों के लिए बर्दाश्त के बाहर होती है, इसलिए आगरा घूमने का सबसे अच्छा मौसम जाड़ा है, जब ठंड की दिलकश फिज़ा ऐतिहासिक ईमारतों को देखने के आनंद में चार चांद लगा देती है, लेकिन जब कोई आवश्यक काम हो तो मौसम की बेड़ियां रुकावट नहीं बनती हैं। बहरहाल, मेरा काम दोपहर से पहले ही खत्म हो गया था और दिल्ली लौटने के लिए मेरा रिजर्वेशन शाम को ताज एक्सप्रेस से था। मैं इस खाली समय का सदुपयोग करना चाहता था, कोई ऐसी जगह देखकर जो मैंने पहले न देखी हो। ताजमहल, चीनी का रोज़ा, आगरा फोर्ट, फतेहपुर सीकरी आदि मैं देख चुका था और अपने यात्रा अनुभवों को लिख भी चुका हूं। अचानक मुझे ख्याल आया कि मैंने एत्माद्दौला (राज्य का स्तंभ) नहीं देखा है। यह कैसे हो गया, जबकि यह यमुना के किनारे ताजमहल के ही काफी करीब स्थित है और इसे ‘बेबी ताज’, ‘श्रंगारदान’, ‘ताज महल का ड्राफ्ट’ आदि कहा जाता है। गौरतलब है कि इस सफेद संगमरमर के मकबरे ने ही ताजमहल के डिज़ाइन को प्रेरित किया था। 
खैर, मैंने जल्दी से थ्री व्हीलर की व्यवस्था की और एत्माद्दौला पहुंच गया, जो पर्यटकों के लिए सप्ताह में सातों दिन सुबह से शाम तक खुला रहता है। हम भारतीयों के लिए प्रवेश शुल्क कुछ खास नहीं है, लेकिन विदेशी पर्यटकों को 200 रूपये से अधिक का टिकट लेना पड़ता है। एत्माद्दौला का निर्माण (1622-1628) मुगल बादशाह जहांगीर की रानी नूरजहां ने अपने पिता मिज़र्ा ग्यास बेग के मकबरे के तौर पर कराया था, उनकी पत्नी की कब्र भी उनके बराबर में ही है। नूरजहां के अन्य रिश्तेदार भी इस मकबरे में दफन हैं। बेग फारस के अमीर थे, जो आगरा में निर्वासित जीवन जीते हुए जहांगीर के दरबार में मंत्री हो गये थे। बेग के पास 7000/7000 का मनसब था और उन्हें एत्माद्दौला का खिताब दिया गया था। वह मुमताज़ महल के दादा भी थे, जिनकी याद में ताजमहल का निर्माण कराया गया। इस तरह एत्माद्दौला और ताजमहल में एक गहरा संबंध स्थापित हो जाता है। एक दिलचस्प बात यह भी है कि नूर जहां इकलौती म़ुगल रानी हैं, जिन्होंने अपने नाम के सिक्के जारी कराये।
एत्माद्दौला के गेट में प्रवेश करते ही उसके डिज़ाइन व आर्किटेक्चर ने निश्चितरूप से मेरा ध्यान आकर्षित किया, लेकिन मकबरे को घेरे हुए जो फारस शैली के गार्डेन हैं उन्होंने तो मेरे होश ही उड़ा दिए। इतनी सुंदरता, वाह! एत्माद्दौला का मकबरा शुद्ध सफेद मार्बल में बना हुआ है। हालांकि मुख्य इमारत मकबरा ही है, लेकिन उसके प्रांगण में अन्य इमारतें भी हैं। एक दिलचस्प बात यह है कि इस मकबरे का आर्किटेक्चर म़ुगल आर्किटेक्चर में परिवर्तन के फेज़ का प्रतिनिधित्व करता है। पहले फेज़ में रेड सैंडस्टोन का इस्तेमाल अधिक था, जिसमें मार्बल सजावट के लिए प्रयोग किया जाता था, जिसकी सबसे अच्छी मिसाल दिल्ली में हुमायूं का मकबरा है। दूसरे फेज़ में सफेद मार्बल का इस्तेमाल ज्यादा है और इसमें पच्चीकारी वर्क (पत्थरों के टुकड़ों से पत्थर में चित्रकारी) शामिल किया गया है।
यह शैली अपने अल्टीमेट परफेक्शन को ताजमहल में पहुंचती है। इसमें कोई दो राय नहीं हैं कि एत्माद्दौला आगरा में सबसे सुंदर हेरिटेज इमारतों में से एक है। लेकिन मैं यह सोच रहा था कि इसे श्रंगारदान या ‘ज्वेल बॉक्स’ क्यों कहा जाता है? गौर से देखने के बाद महसूस हुआ कि यह ‘श्रंगारदान’ ही है जिसे गार्डन (चार बाग) के बीच में रख दिया गया है। मकबरा यमुना के किनारे है, जिसमें चहलकदमी के लिए रास्ते हैं और पानी की छोटी-छोटी नहरें बह रही हैं, जिनकी वजह से गर्मी का एहसास भी कम हो गया था। मकबरे के हर कोने में चार मीनारें खड़ीं हैं जोकि 13-13 मीटर ऊंची हैं। इस मकबरे में गुम्बद नहीं है। मकबरा लगभग 50 मीटर स्क्वायर चबूतरे पर बना हुआ है जोकि एक मीटर ऊंचा है। मकबरा चबूतरे का तकरीबन 23 मीटर स्क्वायर कवर करता है। मकबरे की दीवारें अर्द्ध-कीमती पत्थरों जैसे टोपाज़ आदि से सजी हुई हैं। उनकी नक्काशी विभिन्न इमेजों में की गईं हैं, शराब की बोतलों से लेकर गुलदस्तों तक। मकबरे के अंदर मार्बल की नक्काशी की गई जालियों से रोशनी आती है। छतें भी कभी हाथ से पेंट किये गये पैटर्न से सजी थीं, लेकिन अब उनमें पहली जैसी बात नहीं है, शायद देखभाल पर खास ध्यान नहीं दिया जा रहा है। 
एतिमाद-उद-दौला एक संभ्रांत ईरानी के व्यक्तित्व का प्रतिनिधित्व करता है, जोकि इसमें दफन है और इससे भी बढ़कर यह नूरजहां की पसंद को प्रदर्शित करता है, जिन्होंने पर्दे के पीछे से 16 वर्ष (1611-27) तक म़ुगल सल्तनत पर राज किया।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर