सिनेमा की फर्स्ट लेडी सुपर स्टार देविका रानी

 

देविका रानी चौधरी भारत की पहली महिला सुपरस्टार थीं। 1936 में हिंदी फिल्मोद्योग अपने शुरुआती दिनों में था और बॉम्बे टाकीज़ भारत का प्रमुख फिल्म स्टूडियो माना जाता था। हिमांशु राय इस इस स्टूडियो के बॉस थे और उनके प्रयासों से ही भारतीय फिल्मों का बेस कलकत्ता की बजाय बॉम्बे बन गया था। उनकी पत्नी देविका रानी ही उनकी सभी फिल्मों की हीरोइन हुआ करती थीं और उनका सिल्वर स्क्रीन पर ऐसा राज था कि वह देश की नंबर वन अभिनेत्री बन गईं थीं लेकिन ‘जीवन नैय्या’ फिल्म की शूटिंग के दौरान बहुत बड़ा स्कैंडल हो गया। विवाहित होने के बावजूद देविका रानी ने अपने सह-कलाकार नज्म-उल-हसन के साथ रोमांटिक संबंध स्थापित कर लिए और दोनों फिल्म को बीच में ही छोड़कर भाग गये। 
इस धोखे व पैसे के नुकसान पर हिमांशु राय को बहुत गुस्सा आया। उन्होंने अपने स्टूडियो के साउंड इंजीनियर सशधर मुखर्जी से मदद मांगी, जिन्हें देविका रानी अपना भाई मानती थीं। मुखर्जी ने देविका व हसन से संपर्क किया। देविका ने वापस लौटने के लिए मोटी रकम की मांग रख दी। हिमांशु राय पैसा देने के लिए तैयार हो गये, लेकिन बाद में उन्होंने हसन को फिल्म से निकाल दिया, और उनकी जगह सशधर के साले कुमुदलाल गांगुली को हीरो ले लिया, जो बॉम्बे टाकीज़ में लैब असिस्टेंट के रूप में काम करते थे। न चाहते हुए भी गांगुली देविका के हीरो बन गये और उन्होंने अपना स्क्रीन नाम अशोक कुमार रखा। इस तरह भारत के पहले दो सुपरस्टार्स ‘अशोक कुमार व देविका रानी’ का करियर आरंभ हुआ। ‘जीवन नैय्या’ से अपना करियर आरंभ करने के बाद अशोक कुमार ने अगले कुछ वर्षों में ‘किस्मत’ जैसी सफल फिल्में कीं और वह बॉलीवुड के नंबर वन अभिनेता बन गये। दूसरी ओर बॉम्बे टाकीज़ से निकाले जाने के बाद हसन को दूसरे स्टूडियोज में काम तलाशने के लिए संघर्ष करना पड़ा। बड़े निर्माता की विवाहित पत्नी से अफेयर करना उन्हें बहुत महंगा पड़ा। हसन पाकिस्तान चले गये, कुछ फिल्मों में वहां काम किया, लेकिन कोई खास सफलता न मिल सकी। 
देविका रानी फिल्मों में काम करती रहीं और बतौर हीरोइन उन्हें सफलता मिलती रही। 1941 तक वह बॉलीवुड का टॉप नाम व चेहरा बनी रहीं। हिमांशु राय के निधन (1940) के बाद जब उनकी कुछ फिल्में फ्लॉप हुईं तो 1945 में उन्होंने अभिनय को पूर्णत: अलविदा कह दिया। उनके रिटायरमेंट से जो खाली जगह बनी उसे अगली पीढ़ी के स्टार्स जैसे नर्गिस, मधुबाला, सुरैय्या आदि ने भरा। 1945 में देविका रानी ने स्वेतोस्लाव रोरिक से दूसरी शादी की। पहला दादा साहेब फाल्के पुरस्कार (1969) पाने वाली देविका रानी जिन्हें पदमश्री (1958) से भी सम्मानित किया गया, को फर्स्ट लेडी ऑफ इंडियन सिनेमा के तौर पर भी स्वीकार किया जाता है। देविका रानी का जन्म 30 मार्च, 1908 को वर्तमान विशाखापत्तनम (जो उस समय मद्रास प्रेसीडेंसी में था और अब आंध्र प्रदेश में है) में हुआ था। उनका संबंध बंगाल के अति सम्पन्न, रईस, शिक्षित व प्रभावी परिवार से था। उनके पिता कर्नल डा. मन्मथनाथ चौधरी मद्रास प्रेसीडेंसी के पहले भारतीय सर्जन-जनरल थे। उनकी मां लीला देवी चौधरी नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर की बहन सुकुमारी देवी की बेटी थीं। इस रिश्ते से देविका रानी टैगोर की नवासी थीं।
देविका रानी जब 9 साल की हुईं तो उन्हें इंग्लैंड के एक बोर्डिंग स्कूल में भेज दिया गया। स्कूली शिक्षा पूर्ण करने के बाद उन्होंने लंदन की रॉयल अकादमी ऑफ ड्रामेटिक आर्ट और रॉयल अकादमी ऑ़फ म्यूजिक से अभिनय व संगीत का अध्ययन किया। इसके अतिरिक्त आर्किटेक्चर, टेक्सटाइल डिज़ाइन आदि के भी कोर्स पूरे करके 1927 में टेक्सटाइल डिज़ाइन का जॉब करने लगीं। 1928 में देविका की मुलाकात बैरिस्टर से फिल्मकार बने हिमांशु राय से हुई, जो उस समय अपनी फिल्म ‘ए थ्रो ऑ़फ डाइस’ शूट कर रहे थे। देविका की असाधारण प्रतिभा से प्रभावित होकर हिमांशु ने उन्हें अपनी प्रोडक्शन टीम में शामिल कर लिया। फिर कुछ समय तक जर्मनी में फिल्म निर्माण की तकनीक सीखने के बाद देविका व हिमांशु भारत लौट आये। हिमांशु ने फिल्म ‘कर्मा’ (1933) का निर्माण किया, जिसमें उन्होंने देविका को हीरोइन लिया। 1934 में बॉम्बे टाकीज़ की स्थापना की गई। इस स्टूडियो ने ही भारत को दिलीप कुमार, लीला चिटनिस, मधुबाला, राजकपूर, अशोक कुमार आदि महान कलाकार दिए। देविका रानी ने ही युसूफ खान का नाम दिलीप कुमार रखा था। हिमांशु के निधन के बाद बॉम्बे टाकीज़ की कमान देविका व सशधर ने संभाली, लेकिन कुछ समय बाद अंदरूनी राजनीति के कारण सशधर व अशोक कुमार ने अलग होकर फिल्मिस्तान स्टूडियो की स्थापना की। अकेली पड़ने की वजह से देविका ने फिल्मोद्योग छोड़ने का निर्णय लिया और बॉम्बे टाकीज़ का पतन हो गया।
देविका ने 1945 में रुसी आर्टिस्ट निकोलस रोरिक के बेटे से शादी की और वह अपने पति के साथ मनाली, हिमाचल प्रदेश में रहने लगीं। लेकिन कुछ वर्षों बाद यह जोड़ा बेंगलुरु चला गया, 450 एकड़ की एस्टेट खरीदी और फिर अपने फार्म पर ही सारा जीवन व्यतीत किया। 1993 में रोरिक के निधन के बाद देविका रानी भी 9 मार्च, 1994 को यह दुनिया छोड़कर चली गईं। उनका पूर्ण राज्य सम्मान से अंतिम संस्कार किया गया। चूंकि उनका कोई वारिस नहीं था, इसलिए सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद उनकी एस्टेट कर्नाटक सरकार की सम्पत्ति हो गई। -इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर