देश की राजनीति बदलने वाली है

2024 के आम चुनाव ने 4 जून की दोपहर बाद जो लकीरें खींच दी हैं, इससे यह स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि देश की राजनीति में बड़े परिवर्तन देखने को मिल सकते हैं। भारतीय राजनीति में 1989 के बाद का गठबंधन वाला दौर फिर से एक यथार्थ बनता चला जा रहा है। अब जनता की ताकत सामने आ चुकी है। वह किसी को भी तख्त पर बिठा सकती है, किसी को भी शिकस्त दे सकती है। उसने भाजपा जैसी सशक्त पार्टी को इसके मजबूती से संकेत दिये हैं। कांग्रेस जिसे गई गुजरी पार्टी मान लिया गया था, 100 सीटों के साथ नवजीवन पा गई है। लोकसभा की संरचना बदल चुकी है। एग्जिट पोल ने एन.डी.ए. के लिए जिस विशाल बहुमत की घोषणा की थी ज़मीनी हकीकत का सामना करना कठिन हो गया। 400 पार का नारा बेमानी साबित हुआ और भाजपा 272 के जादुई आंकड़े से भी कहीं पीछे छूट गई। लिहाजा एन.डी.ए. की सरकार बनाने के लिए बिहार से नितीश कुमार और आंध्र प्रदेश से चन्द्रबाबू नायडू पर निर्भर है जबकि 2014 और 2019 में उनके लिए ऐसी कोई स्थिति नहीं थी।
ऐसे लोग जो कल कह रहे थे भारतीय लोकतंत्र मर गया है अब कोई उम्मीद बाकी नहीं रही, उन्हें अब उभर कर आये सच से परेशानी होगी। ऐसे सज्जन जो कह रहे थे कि अब मतदाताओं का ध्रुवीकरण हो चुका है, उन्हें भारत के 64 करोड़ मतदाताओं के प्रति गुनाह की नज़र देखना चाहिए। भारतीय लोकतंत्र ने अपनी ताकत पूरी दुनिया के सामने साफ-साफ बता दी है। बड़ा सवाल है कि अयोध्या (फैजाबाद) में भारतीय जनता पार्टी को पराजय का मुंह क्यों देखना पड़ा। जनवरी 2024 में तो राम लल्ला की भव्य स्थापना हुई थी। भाजपा के सभी नेताओं ने इस बात को चैक की तरह भुनाना चाहा परन्तु लोगों ने धार्मिकता से बाहर आकर मतदान किया जिसकी बड़े-बड़े नेताओं को भी उम्मीद नहीं थी। 
लोकतंत्र के इस पर्व पर ई.वी.एम. या भारतीय चुनाव प्रणाली पर कोई सवाल नहीं उठाया गया। भारतीय चुनाव व्यवस्था की साख पर कोई सवाल नहीं उठा। शांतिपूर्ण, हिंसा मुक्त, विश्वसनीय ढंग से चुनाव करवा पाना वह भी ऐसे बड़े और विविधता भरे मुल्क में कोई आसान काम नहीं था। लाखों लोगों ने चुनाव ड्यूटी को अपना सबसे बड़ा फज़र् समझ कर अंजाम तक पहुंचाया जिसमें शांत लेकिन पक्के इरादे वाली जनता की भी बड़ी भूमिका है। वे अपने मन की बात मन में रखते हुए अनुशासन के साथ विविध बूथों पर पहुंचे और अपने फज़र् को पूरा किया है। किसी ने विरोध रखते हुए भी किसी नेता पर हमला नहीं किया? मैक्सिको का उदाहरण आपके सामने है। लगभग भारत के साथ ही चुनाव हुए परन्तु 37 उम्मीदवारों की हत्या कर दी गई, जोकि बेहद अफसोसजनक है।
अब सामान्य राजनीति का समय है। अगली लड़ाई का मैदान तैयार होने वाला है। महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड में चुनाव होने वाले हैं। इसके बाद जम्मू-कश्मीर में भी चुनाव होंगे। हर चुनाव लोकतंत्र में विशेष जगह रखता है अब ज़रूरत के मुताबिक भाजपा को सहयोगियों को जगह देनी होगी। भारतीय लोकतंत्र जिंदा है और जिंदा रहेगा। वह विश्व को अपनी कहानी सुना सकता है।