प्रधानमंत्री की कार्यशैली में नहीं आया कोई फर्क

आदत नहीं हमको कि अंदाज़ बदल जायें
हर कदम वही अपना, औ रक्स वही देखो।
चाहे इस बार लोकसभा चुनावों में विपक्ष बहुत मज़बूत होकर निकला है और भाजपा के पास अपने दम पर पूर्ण बहुमत भी नहीं है, लेकिन जिस प्रकार प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपना मंत्रिमंडल बनाया, जिस प्रकार उन्होंने मंत्रिमंडल में 80 प्रतिशत के करीब वही चेहरे नहीं रखे बल्कि सभी प्रमुख मंत्रालय भी पहले वाले मंत्रियों को ही दिए, जिस प्रकार लाख विरोध और बातों के बावजूद उन्होंने ओम बिरला को ही लोकसभा का स्पीकर बनाया और पहले ही दिन खुद भी और बाद में लोकसभा स्पीकर द्वारा भी कांग्रेस को घेरने के लिए एमरजैंसी के करीब 49 साल पुराने मामले को उभारा, उससे साफ होता है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपना 10 वर्ष पुराना अंदाज़ बदलने के लिए तैयार नहीं हैं। प्रधानमंत्री मोदी यह दिखाने की कोशिश कर रहे हैं कि उनको विपक्षी दल की मज़बूती की कोई परवाह नहीं है और न ही उनको आर.एस.एस. मुखी मोहन भागवत की दी गई सलाह या हिदायत की ही कोई परवाह है कि विपक्षी दल को दुश्मन नहीं ‘प्रतिपक्ष’ (विपक्ष) समझा जाए और सहमति की राजनीति की जाए। हालांकि एमरजैंसी के ज़िक्र ने खुद मोदी पर भी कई सवाल खड़े किये हैं, तथा आर.एस.एस. के तत्कालीन प्रमुख बाला साहिब देवरस की भूमिका पर भी कई प्रश्न चिन्ह लगा दिए हैं।
लेकिन यह पक्का है कि प्रधानमंत्री को पासा पलटना आता है। वह हर वृत्तांत को उलटा कर अपने पक्ष में प्रयोग करने के समर्थ हैं। चाहे इस बार आम चुनाव में उनका जादू पूरी तरह नहीं चला, फिर भी वह बिल्कुल विरीत हालात में भी सरकार बनाने में सफल रहे ही हैं। पिछले कुछ दिनों में ही यह स्पष्ट हो गया है कि वह अपना शासन करने का अंदाज़ नहीं बदलेंगे, बल्कि विपक्षी दल पर और भी ज्यादातर हमलावर होंगे। जानकार क्षेत्र तो यह भी कहते हैं कि वह महाराष्ट्र, हरियाणा और कुछ अन्य प्रदेशों के चुनावों से पहले-पहले भाजपा का  बहुमत पूरा करने की भी पूरी-पूरी कोशिश करेंगे। होता क्या है, यह तो समय ही बताएगा।
पंजाब के एम.पीज़ के ध्यानार्थ
खुदा के वास्ते ऐ हमदमो, अब कुछ तो बोलो तुम, 
तुम्हारे सर पे कज़र् बहुत है माटी तुम्हारी का।
चाहे इस बार पूरे पंजाब एम.पीज़ ने पंजाबी में शपथ ली है और कुछ ने तो फतेह भी बुलाई है, लेकिन सबसे अधिक खुशी की बात है कि प्रो. विश्वनाथ तिवाड़ी जो पंजाबी के अच्छे लेखक थे और अमृत कौर के बेटे मनीश तिवाड़ी जो चंडीगढ़ से कांग्रेस के लोकसभा सदस्य चुने गये, ने भी पंजाबी में शपथ ली है। चाहे इससे चंडीगढ़ पंजाब को मिल नहीं जाना लेकिन फिर भी यह खुशी की बात है कि एक पंजाबी ने पंजाबी होने को प्राथमिकता दी है। अब राष्ट्रपति के भाषण से धन्यावाद के मौके पर सभी राजनीतिक पार्टियों को बोलने का मौका मिलेगा। इस बार कांग्रेस के 98 एम.पी. हैं, इस लिए कांग्रेस को समय भी काफी मिलेगा। कांग्रेस के पंजाब से ही 7 एम.पी. हैं। हमारा निवेदन है कि वे सात ही आपस में बातचीत करके सबसे अच्छा बोलने वाला और पंजाब के मामलों की समझ रखने वाला एक व्यक्ति चुननें और अपने नेता राहुल गांधी को कांग्रेस को मिले समय में से उसको कुछ समय देने के लिए कहें। पंजाब के जिस एम.पी. को मौका मिले, वह पंजाब के मामले, पंजाब के साथ हो रही बे-इन्साफी और मांगों के बारे में तथ्यों एवं दलीलों सहित मुद्दे उठाएं, जिनमें पंजाब के पानी, फसलों, चंडीगढ़, पंजाब के सीमावर्ती राज्य होने के कारण हिमाचल जैसी व्यापारिक हिदायतों के मामले भी शामिल हों। कहा जा सकता है कि बहस तो राष्ट्रपति के भाषण पर होनी है, लेकिन सूझवान वक्ता हर बात तो हर संदर्भ को अपने ज्ञान से अपनी बात कहने के लिए कह ही जाते हैं। हमारे सामने है कि जम्मू-कश्मीर से लोकसभा सदस्य आगा रूहल्ला मेहदी ने स्पीकर को बधाई देते समय जैसे कश्मीर की बात की, उसकी प्रशंसा उसके विरोधी भी कर रहे हैं। उसने देश की बड़ी अखबारों में अच्छा स्थान भी लिया है। आम आदमी पार्टी के उम्मीदवार राज कुमार चब्बेवाल इस मौके पर बोलते हुए गच्चा खा गये और अपनी बात कह नहीं सके। वैसे तो ऐसा लगता है कि ‘आप’ ने 2024 के आम चुनावों में अपनी हार से कोई सबक नहीं सीखा। यह सब को पता है कि 2022 में देश-विदेश के सिखों ने पूरा ज़ोर लगाकर पंजाब में ‘आप’ को शानदार जीत दिलाने के लिए एक बड़ी भूमिका निभाई थी, लेकिन दिल्ली में ‘आप’ का सिखों को प्रतिनिधित्व देने के बारे में रवैया और पंजाब सरकार में भी सिख मामलों को दृष्टिविगत करने का ही यह परिणाम है कि जिन सिखों ने 1984 के बाद 40 साल तक कांग्रेस को वोट नहीं डाली थी, उनमें से भी कइयों ने इस बार कांग्रेस को  वोट डाली है। हैरानी की बात यह है कि ‘आप’ ने लोकसभा में भी शायद आम आदमी पार्टी की राष्ट्रीय राजनीति में जगह बनाने की इच्छा के कारण पार्टी के सबसे बढ़िया प्रवक्ता को पार्टी प्रमुखी नहीं बनाया। खैर, यह आम आदमी पार्टी का अंदरूनी मामला है। हम इस बारे में अपना प्रभाव तो लिख सकते हैं लेकिन कोई सलाह नहीं दे सकते। लेकिन ‘आप’ के नेताओं एवं तीनों संसद सदस्यों से निवेदन है कि वे भी इस बार बोलने वाले अपने साथी को पंजाब के मामलों को बारे बोलने के लिए तैयारी करके जाने के लिए कहें। बेशक वह अपने नेताओं की गिरफ्तारी का मामला भी उठाएं लेकिन अपनी जन्मभूमि और अपने राज्य के प्रति भी फज़र् ज़रूर निभाएं। रही बात अकाली लोकसभा सदस्य बीबी हरसिमरत कौर की, वह पार्टी की अकेली सदस्य हैं। उन्हें समय भी कम ही मिलेगा, परन्तु उनको भी पहले ही तैयारी करके जाना चाहिए और पंजाब के मामलों के साथ भाई अमृतपाल सिंह को शपथ दिलाने का मामला भी मानवीय अधिकार के तौर पर उठाना चाहिए, चाहे कि उनका अमृतपाल के साथ राजनीतिक विरोध है। इस तरह का निवेदन आज़ाद ‘पंथक’ लोकसभा सदस्य सरबजीत सिंह को भी है। वैसे तो अखबारों में खबरें हैं कि भाई अमृतपाल सिंह को शपथ लेने के लिए अस्थायी रिहाई की आज्ञा पंजाब सरकार ने देनी है, केन्द्र ने नहीं पर सबसे ज़रूरी है कि पंजाब के मामले लोकसभा में उभारे जाएं।
अकाली दल बारे स्थिति अभी तक अस्पष्ट
नि:संदेह यह तो अब स्पष्ट ही है कि अकाली दल बादल का दोफाड़ होना तय है। क्रियात्मक तौर पर तो यह दोफाड़ हो ही चुका है। बस, नए अकाली दल का ऐलान ही बाकी है। चाहे यह इस समय पंजाब का सबसे अधिक चर्चित राजनीतिक मामला है, लेकिन इसके बावजूद अभी इस बारे में कुछ ठोस और विस्तार में लिखना संभव नहीं है कि इन दोनों में से कौन-सा गुट जैसा-रुख अपनाएगा और कौन सा गुट सिखों और पंजाबियों में मकबूल हो सकेगा।
एक तरफ सुखबीर सिंह बादल के समर्थक इस बात पर अड़े हुए हैं कि सुखबीर सिंह बादल की प्रधानगी जारी रहे, चाहे हाल की बैठकों में बादल यह कह रहे हैं कि वह त्यागपत्र देने के लिए तैयार हैं, जबकि उनसे अलग होने वाला गुट अपने लिए अकाली दल से बाहर के किसी प्रधान की तलाश में लगा हुआ है। इस समय दो-तीन संतों के नाम, एक तख्त साहिब के जत्थेदार साहिब और शहीद भाई जसवंत सिंह खालड़ा की धर्मपत्नी के नामों के अलावा भी एक-दो और नामों पर विचार चर्चा जारी है जबकि इस बीच काम चलाने के लिए अनुपाततया नौजवान नेताओं की पांच सदस्यीय प्रीज़ीडियम बनाने की चर्चा भी सुनाई दे रही है, जिसमें गुरप्रताप सिंह वडाला, परमिंदर सिंह ढींडसा, बीबी किरनजोत कौर, चरणजीत सिंह बराड़ और प्रो. प्रेम सिंह चंदूमाजरा के बेटे के नामों की सदस्यों द्वारा चर्चा हो रही है।
इसलिए हम नहीं समझते कि अभी स्थिति इतनी स्पष्ट है कि यह लिखा जा सके कि कौन सा पक्ष कामयाब रहेगा। अभी तो दरिया का पानी बाढ़ जैसा गंदला है। यह गंदलापन बैठने के बाद ही अकाली दल के ऐसे मामलों के बारे में स्पष्ट रूप में कुछ लिखा जा सकेगा। अभी तो यह भी नहीं पता कि कौन सा पक्ष दूसरे पक्ष के कौन से नेता को तोड़ने में सफल हो जाएगा।
उठा के पहला कदम ही घरे ना इतराओ,
अभी तो इम्तिहां दर इम्तिहान बाकी हैं।

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