परीक्षा की घड़ी
प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी की रूस की दो दिवसीय यात्रा ने अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर बड़ी बहस को जन्म दिया है। इसका बड़ा कारण विगत 2 वर्ष से रूस तथा यूक्रेन के बीच चल रहा युद्ध है, जिसमें रूस ने न सिर्फ यूक्रेन के बड़े क्षेत्र पर कब्ज़ा ही कर लिया है, अपितु इस युद्ध में दोनों ओर से हज़ारों सैनिक भी मारे जा चुके हैं तथा इससे भी ऊपर बड़ी संख्या में यूक्रेन के आम नागरिक, जिनमें महिलाएं तथा बच्चे भी शामिल हैं भी मारे जा रहे हैं। रूस ने लगातार बमबारी कर यूक्रेन के बड़े भाग के मूलभूत ढांचे को पूरी तरह बर्बाद कर दिया है। वह प्रतिदिन यूक्रेन पर बम बरसा रहा है। यह बड़ा नुक्सान इस कारण भी हुआ है क्योंकि यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लोदिमीर ज़ेलेंस्की की सरकार ने तथा देश के लोगों ने यह कड़ा फैसला किया है कि वह पुतिन की ताकत के आगे नहीं झुकेंगे। उनके इस व्यवहार के कारण ही आज भी यह देश लगातार विनाश का निशाना बन रहा है।
इससे पहले ज़ेलेंस्की अमरीका तथा पश्चिमी यूरोप के देशों के सैनिक संगठन नाटो का सदस्य बनने का इच्छुक था। इस संबंध में नाटो द्वारा कार्रवाई भी शुरू कर दी गई थी, परन्तु पुतिन यह बात किसी भी स्थिति में बर्दाश्त करने के लिए तैयार नहीं थे कि उनका पड़ोसी देश जो कभी सांझे सोवियत यूनियन का हिस्सा रहा हो, वह नाटो संधि में शामिल हो जाए। नाटो अमरीका सहित पश्चिमी यूरोप के लगभग तीन दर्जन देशों की सैनिक संधि है, जिसमें किसी बाहरी हमलावर देश का सदस्य देशों की ओर से संयुक्त रूप में मुकाबला करने का समझौता किया गया है। 1949 के लगभग दूसरे विश्व युद्ध के बाद इन देशों की संधि अस्तित्व में आई थी। इसमें समय-समय पर यूरोप के और भी पड़ोसी देश मिलते गए। इस संधि को हुए लगभग 75 वर्ष हो गए हैं। सोवियत यूनियन के 1991 में टूटने के बाद रूस से दर्जन भर सोवियत यूनियन के देश अलग हो गए थे। सोवियत यूनियन के टूटने के बाद रूस की शक्ति कमज़ोर होती गई थी तथा यहां कम्युनिस्ट प्रशासन भी खत्म हो गया था। पिछले अढ़ाई दशकों से पुतिन किसी न किसी रूप में रूस के शक्तिशाली शासक बने आ रहे हैं। उन्होंने इस समय में ही यूक्रेन, साइबेरिया सहित कुछ अन्य क्षेत्रों को अपनी ताकत से रूस में शामिल कर लिया था। पिछले 2 वर्ष से इस रक्त-रंजित युद्ध में भारत की स्थिति तलवार की धार पर चलने वाली बनी हुई है।
भारत के 1947 में आज़ादी मिलने के बाद से ही रूस के साथ बेहतरीन दोस्ताना संबंध बने रहे हैं। इनका आपसी मेल-मिलाप भी लगातार बढ़ता और गहरा होता रहा है। रूस प्रत्येक नाज़ुक स्थिति में भारत के साथ खड़ा रहा है। चाहे भारत की आज़ादी के बाद अमरीका का झुकाव इससे अलग हुए देश पाकिस्तान की ओर अधिक रहा था तथा उसने पाकिस्तान की अधिक से अधिक सहायता की परन्तु बदलते हालात में अमरीका भी भारत का रणनीतिक सांझेदार बन चुका है। खास तौर पर चीन की भारत विरोधी नीतियों के सन्दर्भ में वह भारत के साथ खड़ा रहा है। चीन की ओर से दक्षिणी चीन सागर तथा पूर्वी चीन सागर पर अपना कब्ज़ा स्थापित करने की योजनाओं ने न सिर्फ उस क्षेत्र के दर्जनों देशों को ही चिन्ता में डाल दिया है, अपितु इन समुद्रों द्वारा होते अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के कारण भारत सहित बहुत-से अन्य देश भी उससे चिन्तातुर हैं। इसी कारण ही चीन की इस विस्तारवादी नीति वाली सोच को रोकने के लिए भारत, अमरीका, जापान एवं आस्ट्रेलिया ने क्वाड नामक समझौता किया है तथा इन देशों की ओर से समय-समय पर सांझे रूप में सैन्य तथा समुद्री अभ्यास भी किए जाते हैं।
चीन ने वर्ष 1962 में भारत पर हमला करके इसके बड़े भाग पर कब्ज़ा किया हुआ है। आज भी दोनों देशों की लम्बी सीमाओं पर भारी तनाव पैदा होता रहता है। अकसर ऐसी परिस्थितियों में अमरीका तथा जापान सहित बहुत-से पश्चिमी देशों ने इस मामले पर हमेशा भारत का समर्थन किया है। रूस एवं यूक्रेन युद्ध ने एक तरह से विश्व को दो भागों में बांट दिया है। ज्यादातर देश यूक्रेन का समर्थन कर रहे हैं तथा रूस के विरुद्ध हथियारों सहित हर तरह से उसकी सहायता कर रहे हैं। भारत के लिए पैदा हुई यह स्थिति कड़ी परीक्षा की घड़ी बन चुकी है। इस कारण प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की रूस की यात्रा संबंधी विश्व भर में बड़ा विवाद उठ खड़ा हुआ है। इस विवाद को कैसे हल करना है, यह भी भारत के लिए आज बड़ा सवाल बना दिखाई देता है।
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द