जम्मू-कश्मीर में लगातार हो रहे आतंकी हमले चिंता का विषय

जम्मू-कश्मीर में भारतीय सेना पर हाल ही के दिनों में एक के बाद एक कई सारे आतंकी हमले हुए हैं। महज 15 दिनों में घाटी 4 बड़े आतंकी हमलों से दहल गई है। इन हमलों में सेना के कई जवान शहीद हुए व कई घायल हैं। आतंकवादियों को पकड़ने के लिए सेना कई सारे सर्च ऑपरेशन भी कर रही है। इतना ही नहीं रविवार को भारतीय सेना ने जम्मू-कश्मीर के कुपवाड़ा ज़िले के केरन सेक्टर में नियंत्रण रेखा (एलओसी) पर घुसपैठ विरोधी अभियान में तीन आतंकवादियों को मार गिराया था। लेकिन फिर भी आतंकवादी हमले तेज़ी से बढ़ रहे हैं।  16 जुलाई को जम्मू-कश्मीर के डोडा ज़िले में आतंकवादियों के साथ पूरी रात चली मुठभेड़ में एक अधिकारी समेत चार सैन्यकर्मी शहीद हो गए थे। जबकि घायल पुलिसकर्मी जिंदगी और मौत की लड़ाई लड़ रहा है। इसके पूर्व 10 जुलाई को उधमपुर के बसंतगढ़ में एक पुलिस चौकी पर आतंकवादियों ने हमला किया था। 8 जुलाई को जम्मू-कश्मीर में कठुआ ज़िले के माचेडी इलाके में सेना के वाहन पर घात लगाकर आतंकवादियों ने हमला किया था। इस हमले में चार जवान शहीद हो गए थे और छह अन्य घायल हुए थे। 7 जुलाई को जम्मू-कश्मीर के राजौरी ज़िले में आतंकवादी गोलीबारी में एक सैनिक घायल हो गया था। आतंकियों ने राजौरी ज़िले के मंजाकोट इलाके के गुलाठी गांव में प्रादेशिक सेना के शिविर पर सुबह करीब चार बजे गोलीबारी की थी। सैनिकों ने जवाबी कार्रवाई की। आतंकी मौके से भागने में सफल रहे थे और बाद में तलाशी अभियान शुरू किया गया था।
यही नहीं इसके पहले 9 जून को केंद्र में नई सरकार के शपथ लेने के बाद से जम्मू-कश्मीर में 4 आतंकी हमले हुए थे, जिसमें रियासी में तीर्थयात्रियों को ले जा रही बस को निशाना बनाना भी शामिल है। ये सभी हमले जम्मू में हुए थे, जो कश्मीर से आतंकवादियों के ध्यान के केंद्र में बदलाव को दर्शाता है। चिंता की बात यह है कि पाकिस्तान स्थित आतंकवादी अब सुरक्षा बलों और निर्दोष नागरिकों दोनों को निशाना बना रहे हैं। 9 जून को लश्कर-ए-तैयबा के एक मॉड्यूल ने एक नागरिक बस पर आतंकी हमला किया, जिसके परिणामस्वरूप नौ लोगों की मौत हो गई थी और 41 लोग घायल हो गए थे।
शिव खोरी मंदिर से हिंदू तीर्थयात्रियों को कटरा स्थित माता वैष्णो देवी मंदिर ले जा रही बस अंधाधुंध गोलीबारी के कारण रियासी ज़िले में एक गहरी खाई में गिर गई। जम्मू-कश्मीर के पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) आर.आर. स्वैन के अनुसार एलओसी के पार लॉन्च पैड पर लगभग 60 से 70 आतंकी सक्रिय हैं। अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद, पाकिस्तान में स्थित आतंकी समूहों की रणनीति कश्मीर घाटी से हट गई, जहां सुरक्षा बलों की मज़बूत पकड़ है। पिछले 2-3 वर्षों से आतंकी जम्मू में रुक-रुक कर हमले करते रहे हैं, जहां हिंसा में वृद्धि देखी गई है, विशेष रूप से 2023 में 43 आतंकवादी हमले और 2024 में अब तक 24 हमले हुए हैं। आतंकवादी हमलों को जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव कराने से रोकने के कदम के रूप में भी देखा जा रहा है, जो 5 अगस्त, 2019 को अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद पहला चुनाव होगा।
जम्मू क्षेत्र के विशाल और जटिल भू-भाग का फायदा पाक स्थित आतंकी संगठनों द्वारा अंतर्राष्ट्रीय सीमा (आईबी) और एलओसी के पार हथियारबंद आतंकवादियों को भेजने के लिए उठाया जाता रहा है, कभी-कभी सुरंगों का इस्तेमाल करके। ड्रोन ने स्थिति को और जटिल बना दिया है, जिससे आतंकी आम नागरिकों के रूप में घुसने और स्थानीय गाइडों की सहायता से ठिकानों से हथियार इकट्ठा करने में सक्षम हो जाते हैं।
जम्मू-कश्मीर पुलिस और सुरक्षा बलों की महत्वपूर्ण सफलताओं के बावजूद, जम्मू क्षेत्र एक चुनौतीपूर्ण क्षेत्र बना हुआ है। लश्कर और जैश के मॉड्यूल को ट्रैक करना मुश्किल रहा है क्योंकि वे मोबाइल फोन से बचते हैं और न्यूनतम स्थानीय समर्थन के साथ आत्मनिर्भरता पर निर्भर हैं। इसने सुरक्षा बलों को अपने मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) को संशोधित करने के लिए प्रेरित किया है।सीमा क्षेत्र के एक सूत्र ने बताया था कि मानसून के मौसम से पहले ही भारी घुसपैठ शुरू हो गई है। आमतौर पर आतंकवादी कंसर्टिना तार और इंफ्रारेड लाइट जैसी सीमा निगरानी प्रणालियों को बाधित करने के लिए मानसून की बाढ़ का इंतजार करते हैं। कभी-कभी नीलगाय जैसे जानवरों का इस्तेमाल लालच के तौर पर किया जाता है।
कठुआ में हाल ही में हुई एक घटना में एक विशेष पुलिस अधिकारी (एसपीओ) ने कथित तौर पर एक आतंकी को बेअसर करने में मदद की। हालांकि, सभी प्रयास सफल नहीं हुए हैं। किश्तवाड़ क्षेत्र में सक्रिय हिजबुल मुजाहिदीन का 59 वर्षीय ‘ए++’ श्रेणी का आतंकवादी कमांडर जहांगीर सरूरी अभी भी फरार है। अधिकारियों का मानना है कि वह क्षेत्र में आतंकवाद के पुनरुत्थान के पीछे है। सरूरी 1992 से सक्रिय है, लेकिन उसकी गिरफ्तारी के लिए सूचना देने वाले को नकद इनाम देने के बावजूद वह पकड़ा नहीं जा सका। वह अपने धोखेबाज़ तरीकों के लिए जाना जाता है। आतंकवाद विरोधी प्रयासों में स्थानीय लोगों का समर्थन महत्वपूर्ण रहा है। 2018 में, पुंछ के पास सलानी के 50 ग्रामीणों ने आतंकवादियों द्वारा अपने दोस्त की हत्या का बदला लेने के लिए सुरक्षाकर्मियों के साथ मिलकर काम किया। एक अन्य उदाहरण में, एक नागरिक जिसका भाई 2003 में आतंकवादियों द्वारा मारा गया था, मारे गए आतंकवादी के शव को बरामद करने के लिए एक ऑपरेशन में सुरक्षा बलों में शामिल हो गया।
लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) के.जे.एस. ढिल्लों ने इन खतरों से निपटने के लिए सुरक्षा बलों के बीच तालमेल के महत्व पर बल देते है और कहते है कि पाकिस्तान कश्मीर में ज्यादा कुछ नहीं कर पा रहा है, इसलिए आतंकवादी सीमा और नियंत्रण रेखा पार कर रहे हैं। जम्मू-कश्मीर पुलिस के पूर्व डीजीपी दिलबाग सिंह का कहना है कि पाकिस्तान ने घुसपैठ की लाल रेखा पार कर ली है। ये स्थानीय आतंकवादी नहीं हैं, इसलिए ये लोग पाक सेना की जानकारी के साथ आते हैं। पैटर्न से ऐसा लगता है कि सांबा-हीरानगर और राजौरी-पुंछ से नई घुसपैठ हुई है और ऐसा लगता है कि सुरंगें सक्रिय हैं और घुसपैठ करने वाले आतंकवादी छोटे-छोटे समूहों में बंटे हुए हैं। चिंता है कि वे यहीं नहीं रुकेंगे। लक्ष्य बड़े होते जा रहे हैं। वे जम्मू में बड़े पैमाने पर शामिल रहे हैं।
बताया जाता है कि आतंकवादी घटनाओं का एक कारण जम्मू-कश्मीर में विधानसभा के होने चुनाव भी हैं। और जैसे ही चुनाव होंगे, आतंकियों के बचे-खुचे मददगारों का भी लोकतंत्र में यकीन पुख्ता हो जाएगा। लिहाजा आतंकी कभी नहीं चाहते कि चुनाव हों। और वो कभी घाटी तो कभी जम्मू में लगातार आतंकी वारदात करते ही जा रहे हैं। लिहाजा अब वक्त है अपने इतिहास को दोहराने का। 21 साल पुराना इतिहास जब सेना ने अप्रैल-मई 2003 में ऑपरेशन सर्प विनाश चलाया था जिसे पीर पंजाल के ही हिलकाका-पुंछ-सूरनकोट में अंजाम दिया गया था और तब वहां के सारे आतंकी एक साथ मार दिए गए थे। बाकी इन आतंकियों को जो स्थानीय लोग मदद कर रहे हैं, उनके लिए भी सेना का प्लान तैयार है। और अब सेना पूरे जम्मू-कश्मीर में 1917 में डोगरा के राजा के बनाए कानून एनिमी एजेंट्स ऐक्ट को लागू करना चाहती है, जिससे आतंकियों के मददगारों की संपत्ति को जब्त किया जा सके और उनको उम्रकैद से फांसी तक की सजा दिलाई जा सके।