गुल्लक ने की मदद

सिमरन और अमन भाई-बहन थे। दोनों गांव में अपने माता-पिता के साथ रहते थे। गांव के ही सरकारी विद्यालय में पढ़ते थे। सिमरन दसवीं और अमन आठवीं कक्षा में पढ़ता था। दोनों भाई-बहन मन लगाकर पढ़ते थे। उनके पिताजी भी पढ़े-लिखे थे। इसलिए वे उन दोनों को पढ़ाई के अलावा अनुशासन एवं शिष्टाचार के नियमों के पालन हेतु प्रेरित करते रहते थे। दोनों भाई-बहन कक्षा में शिक्षकों द्वारा पढ़ाई के अतिरिक्त उनके द्वारा दिए गए अन्य दिशा-निर्देशों को भी ध्यान से सुनते एवं उनका पालन करते थे। जिसका परिणाम था कि दोनों अपनी-अपनी कक्षा में प्रथम आते थे। गांव वाले ही नहीं बल्कि शिक्षक भी उन दोनों को उदाहरण के रूप में अन्य छात्रों के समक्ष प्रस्तुत करते थे।
उनके पिताजी गांव में ही सौंदर्य प्रसाधन की छोटी-सी दुकान चलाते थे। उनकी दुकान अच्छी चलती थी। दुकान की आय से पूरे परिवार की न्यूनतम आवश्यकता की पूर्ति हो जाती थी। कोरोना वायरस के कारण फैली महामारी की वजह से देश भर में लॉकडाउन हुआ, तो उनके पिताजी की दुकान भी बंद हो गई। लॉकडाउन की अवधि में तो उनके पिताजी की जमा पूंजी से घर का खर्च आराम से चल गया। लेकिन लॉकडाउन समाप्त होने के साथ उनकी जमा पूंजी भी खत्म हो गई। अब उन्होंने दुकान खोलना आरंभ कर दिया था। दुकान की बिक्री से होने वाली आय घर के खर्च में चली जाती थी। जिससे न वह बचत कर पा रहे थे और न ही दुकान में बिक्री के लिए नया सामान ला पा रहे थे। एक दिन उन्होंने नज़दीकी बाज़ार के थोक व्यापारी से दुकान के लिए सामान उधार लाने का निश्चय किया। वे जब थोक व्यापारी के पास गए तो उसने उधार देने से मना करते हुए कहा, ‘पहले पिछला उधार चुकता करो, फिर नया उधार मिलेगा।’ 
अब दुकान में सामान भी काफी कम हो गए थे। जिससे ग्राहक वापस लौटने लगे थे। लॉकडाउन की वजह से गांव के लोगों की आर्थिक स्थिति अत्यंत दयनीय हो गई थी। कोई उनकी सहायता करने की स्थिति में नहीं था। इन सबसे वह उदास रहने लगे थे। पिताजी को लगातार गुमसुम देखकर एक दिन सिमरन ने उनसे पूछा, ‘क्या बात है पिताजी? आजकल आप कुछ परेशान लगते हैं।’
‘ऐसा कुछ भी नहीं है। मेरी प्यारी बिटिया को ऐसा बिल्कुल नहीं सोचना चाहिए कि उसके पिताजी परेशान हैं। तुम तो बस अपनी पढ़ाई पर ध्यान दो।’ पिताजी ने हंसकर बात को टालते हुए कहा।
दरअसल उसके पिताजी यह नहीं चाहते थे कि दुकान की परेशानी जानकर बच्चों का ध्यान पढ़ाई से विचलित हो। इसलिए उन्होंने सिमरन को कुछ नहीं बताया। लेकिन सिमरन का मन नहीं माना। उसने अपनी मां से पिताजी की उदासी का कारण पूछा तो उसने सिमरन को सारी बातें बता दी। यह सब जानकार सिमरन बहुत चिंतित हुई। लेकिन जैसे ही उसे गुल्लक का ध्यान हुआ उसकी उदासी दूर हो गई। पिछले वर्ष मेले में सिमरन ने गुल्लक खरीदी थी। सिमरन के पिताजी दोनों भाई-बहनों को विद्यालय जाते समय कुछ रूपये अपनी इच्छानुसार खर्च करने के लिए देते थे। जिन्हें बचाकर सिमरन गुल्लक में जमा करती थी। जबकि अमन उन रुपयों को खर्च कर देता था। वह अपने कमरे में गई और गुल्लक को तोड़ कर रुपयों को निकाल लिया। सिमरन ने उन रुपयों को लाकर पिताजी को देते हुए कहा, ‘लीजिए पिताजी। इनसे आप दुकान के लिए सामान लेते आइए।’ सिमरन के पिताजी को न चाहते हुए भी रूपये लेने पड़े। उनके पास कोई और रास्ता नहीं था। 
सिमरन के पिताजी ने थोक व्यापारी का पिछला उधार चुकता कर अपनी दुकान के लिए काफी सामान नये उधार के रूप में ले लिया। उनकी दुकान पहले की तरह सौंदर्य प्रसाधनों से सज गई थी। अब कोई भी ग्राहक खाली हाथ वापस नहीं लौटता। उनकी दुकान अच्छी चलने लगी थी। अच्छी आय होने से उन्होंने थोक व्यापारी का नया उधार भी चुकता कर दिया। घर में सभी खुश थे। लेकिन अमन इधर कुछ दिनों से उदास दिख रहा था। मौका देखकर सिमरन ने अमन की उदासी का कारण पूछ ही लिया। अमन ने रूआंसा होकर उत्तर दिया, ‘दीदी! यदि मैंने भी बचत किया होता तो इस संकट की घड़ी में पिताजी की सहायता कर सकता था। मुझे दु:ख है कि मैं पिताजी के लिए कुछ नहीं कर सका।’ 
सिमरन ने उसे समझाते हुए कहा, ‘देखो! इसमें दु:खी होने वाली कोई बात नहीं है। बल्कि प्रसन्नता की बात यह है कि तुमने बचत के महत्त्व को समझ लिया। इस बार मेले से हमलोग दो गुल्लक लाएंगे। तुम भी गुल्लक में अपनी इच्छानुसार बचत करना।’
‘हाँ। मैं भी गुल्लक में अपनी पॉकेटमनी से बचत करूंगा। बचत संकट के समय बहुत उपयोगी सिद्ध होती है।’ अमन ने अपनी सहमति दी।
दोनों भाई-बहन की बातचीत चल ही रही थी कि पीछे से पिताजी की आवाज़ आई, ‘अमन! सिमरन! तैयार हो जाओ। हमलोग बाज़ार चल रहे हैं।’
‘क्यों पिताजी?’ सिमरन ने जिज्ञासावश पूछा।
‘देखो! तुम दोनों के जूते पुराने हो गए हैं। अब कुछ दिनों बाद विद्यालय भी खुलने वाला है। इसलिए तुम दोनों के लिए नया जूता खरीदना ज़रूरी है। अब बाज़ार चलने के लिए तैयार हो जाओ।’ पिताजी ने समझाते हुए कहा। यह सुनकर अमन और सिमरन बहुत खुश हुए और पिताजी के साथ बाज़ार की ओर चल पड़े। (सुमन सागर)