एक्वालंग का आविष्कार किसने किया ?

‘दीदी, मेरा ख्याल है कि समुद्र के पानी के अंदर के संसार के रहस्यों को जानने के लिए इंसान हमेशा से ही इच्छुक रहा है, जैसा कि आज भी है।’
‘हां, यह बात तो है। इंसान हमेशा से ही जल संसार में क्या होता है को जानने का इच्छुक रहा है और इतिहास बताता है कि इस जानकारी को हासिल करने के अनेक प्रयास किये गये। लेकिन समस्या यह थी कि पानी के अंदर जाने के लिए सांस लेने हेतु हवा को साथ लेकर कैसे जाया जाये। यह मामला बहुत जटिल था।’
‘क्यों?’
‘पानी संसार में मूवमेंट करना अपने आपमें ही बहुत कठिन होता है और फिर निरंतर घटते बढ़ते दबाव की समस्याओं को भी हल करना था।’
‘फिर इंसान ने इसका हल कैसे निकाला?’
‘एयर सप्लाई के साथ केवल चंद अति प्रशिक्षित व्यक्ति ही डाइव कर रहे थे और वह भी जटिल, वज़नी डीप-सी सुइट्स और हेल्मेट्स के साथ, जिनमें हाई-प्रेशर एयर लाइंस होती थीं जो सतह से जुड़ी होती थीं। इस मुश्किल से निकलने के लिए एक्वालंग या जलफेफड़े का आविष्कार किया गया।’
‘एक्वालंग का आविष्कार किसने किया?’
‘कैप्टेन जैक-य्वेस कौस्तेयू और एमिले गैगनन ने 1943 में एक्वालंग का आविष्कार किया। यह एक ऐसी चाबी थी, जिससे अंडरवाटर वर्ल्ड के सारे राज़ खुल गये।’
‘एक्वालंग की विशेषता क्या है?’
‘एक्वालंग के कारण अब डाइवर्स को एयरलाइन से बंधना नहीं पड़ता और न ही उन्हें भारी भरकम उपकरण साथ ले जाने की ज़रूरत होती है। डाइवर्स की कमर पर हाई-प्रेशर सिलिंडर स्ट्रैप कर दिए जाते हैं, जिससे उन्हें नियमित एयर सप्लाई मिलती रहती है। इससे सांस लेना उतना ही आटोमेटिक व प्राकृतिक हो जाता है जितना कि ज़मीन पर होता है।’
‘वह किस तरह से?’
‘एयर सिलिंडर से डिमांड रेगुलेटर जुड़ा होता है जो सांस लेने वाली हवा को उसी प्रेशर का कर देता है जो आस-पास के पानी का प्रेशर होता है। एडजस्ट करने के लिए वाल्व नहीं होते हैं। डाइवर को सिर्फ सांस लेनी होती है। गहराई चाहे जितनी हो एक्वालंग से एकदम सही प्रेशर मिलता है। एक्वालंग के आविष्कार के बाद स्किन डाइविंग तेज़ी से पूरी दुनिया में फैल गई और उसके साथ के अन्य अनेक उपकरण भी बनाये जाने लगे।’
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर